‘शरद पूर्णिमा’ पर इस बार चंद्र ग्रहण का साया, रखनी होगी यह विशेष सावधानी..
रूद्रपुर। अश्विन मास की पूर्णिमा से ही शरद ऋतु प्रारंभ होती है और इसी कारण इसे शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा का हिंदू धर्म में खास महत्व है, कहते हैं कि इस दिन मां लक्ष्मी एवं मां तुलसी विचरण करने के लिए धरती पर आती हैं और इसी दिन आकाश से अमृत वर्षा भी होती है। इसी कारण लोग इस दिन खीर बनाते हैं और उसे भगवान को अर्पित करने के बाद रात भर खुले आकाश के नीचे रखते हैं तथा दूसरे दिन इस खीर का प्रसाद के रूप में सेवन करते हैं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में आकाश से जो अमृत वर्षा होती है, उसके विशिष्ट गुण खुले आसमान के नीचे रखी गई खीर में समाहित हो जाते हैं। इस खीर का सेवन करने से व्यक्ति पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है साथ ही खीर में समाहित हुए अमृत के प्रभाव से व्यक्ति की काया पूरे वर्ष निरोगी बनी रहती है। मगर शरद पूर्णिमा की विशिष्ट एवं शुभ प्रभाव वाली इस बार की खीर विषाक्त भी हो सकती है। वह इसलिए क्योंकि शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि को ही चंद्र ग्रहण भी है और यदि चंद्र ग्रहण के समय खीर खुले आसमान के नीचे रखी रह गई, तो उसमें ग्रहण के दुष्प्रभाव भी समाहित हो सकते हैं और उसके सेवन से कोई बड़ा अनिष्ट भी हो सकता है। लिहाजा इस दफे खीर को बनाने से लेकर उसे खुले आसमान के नीचे रखने और उसे समय रहते खुले आसमान के नीचे से हटाने के लिए कुछ विशेष सावधानियां रखनी होगी। तभी शरद पूर्णिमा की इस विशिष्ट एवं शुभ प्रभाव वाली खीर का लाभ लिया जा सकेगा। क्योंकि इस बार की शरद पूर्णिमा पर ही खंडग्रास चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है ,ऐसे में इसका सूतक काल 9 घंटे पहले लागू हो जाएगा। बता दें कि सनातन मान्यता के अनुसार इस काल में पूजा पाठ एवं शुभ धार्मिक अनुष्ठान नहीं किए जाते, ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर खीर कब बनेगी और कैसे उसे रात भर आकाश के नीचे रखा जाए ? इसका सीधा सा समाधान ये है कि खीर सूतक काल आरंभ होने से पहले ही बना ली जाए और रात्रि कल में चांदनी छिटकते ही इसमें गंगाजल, कुश एवं तुलसी के पत्ते डालकर ,खीर को चांद की रोशनी में खुले आसमान के नीचे रख दिया जाए तथा चंद्र ग्रहण आरंभ होने के पूर्व ही इसे खुले आसमान के नीचे से हटा भी लिया जाए। जिससे ग्रहण के दौरान खाद्य पदार्थों में घुल जाने वाले हानिकारक प्रभाव शरद पूर्णिमा की खीर में ना घुल सके। यहां पर एक विशेष सावधानी यह भी अपेक्षित है कि खीर का सेवन ग्रहण काल के बाद ही किया जाए। यथा संभव अगले दिन। हम अपने पाठकों को बता दें कि भारत में चंद्र ग्रहण 28 अक्टूबर को रात 11.30 बजे से आरंभ होगा और 29 अक्टूबर की रात 02 बजकर 24 मिनट तक चलेगा और इसका सूतक काल 28 अक्टूबर को दोपहर 4ः05 पर शुरू होगा तथा चंद्र ग्रहण समाप्त होते ही सूतक काल भी समाप्त हो जाएगा। चंद्र ग्रहण की कुल अवधि एक घंटा 19 मिनट की है। भारत में चंद्र ग्रहण अपने पूर्ण प्रभाव में रात्रि 1ः05 से रात्रि 2 बज कर 24 मिनट तक देखा जा सकेगा। इस बार शरद पूर्णिमा 28 अक्टूबर को 04 बजकर 17 मिनट से शुरू होकर 29 अक्टूबर को रात 01 बजकर 53 मिनट पर समाप्त होगी। पूर्णिमा की पूजा इस दौरान ग्रहण कल को छोड़कर कभी भी की जा सकती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान-पुण्य शुभ फलदाई होता है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होता है। इसलिए चंद्र दर्शन एवं उसकी विधि विधान से पूजा करने पर विशेष शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। पौराणिक कथाओं के मुताबिक शरद पूर्णिमा की रात को भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज की धरती में गोपियों संग रास रचाया था। इसलिए शरद पूर्णिमा प्रेंमी युगल और दांपत्य जीवन के लिए काफी खास है। इस दिन राधा कृष्ण की पूजा करने से इंसान के प्यार की उम्र बहुत लंबी होती है। शरीर शरद पूर्णिमा से जुड़ी एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि आज के दिन ही समुद्र मंथन में मां लक्ष्मी प्रकट हुई थी। इसलिए आज के दिन मां लक्ष्मी की पूजा आराधना करने का भी रिवाज है। विष्णुप्रिया मां लक्ष्मी की पूजा करने से इंसान को धन और यश की प्राप्ति होती है, तो वहीं इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से इंसान को सुख-शांति की प्राप्ति होती है। जबकि चंद्रमा की पूजा करने से इंसान सुंदर काया का भागीदार होता है और साल भर उसकी काया निरोगी बनी रहती है।