विधवा शिक्षिका शिक्षिका की निलंबन से सामने आई भाजपा की हकीकत
सीएम की कार्यप्रणाली से मोदी के अभियान को लगा झटका,सरकार की तबादला नीति पर उठ रहे सवाल
पंकज वार्ष्णेय ‘निर्भय’
हल्द्वानी।देवभूमि उत्तराखंड की भाजपा सरकार कितनी संवेदनशील है, इसका अंदाजा दो दिन पूर्व उस समय लग गया जब एक विधवा शिक्षिका सरकार द्वारा नहीं सुनने पर जनता दरवार में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास अपनी गुहार लेकर पहुंची तो मुख्यमंत्री हत्थे से उखड़ गए। उन्होंने अपनी महिलाओं व विधवाओं के प्रति संवेदन शीलता का ऐसा हास्यास्प्रद परिचय दिया कि एक विधवा शिक्षिका को गिरफ्रतार कराने व निलंबित करने के फरमान जारी करने में जरा भी सहानुभूति व संवेदनशीलता नहीं दिखाई। उन्होंने कठोरता के साथ विधवा शिक्षिका के साथ कार्रवाई करने के आदेश दिए। जिसकी आज पूरे देवभूमि उत्तराखंड में ही नहीं पूरे देश में कड़ी निंदा की जा रही है। आज भले ही भाजपा का चश्मा पहने भाजपाई विधवा शिक्षिका की हरकतों को गलत ठहरा रहे हैं, लेकिन पिछले 25 सालों से दुर्गम क्षेत्र में नौकरी करने वाली एक शिक्षिका और विधवा द्वारा अगर अपनी गुहार लगाई जा रही थी तथा कुंभकर्णी नींद में सो रही सरकारों के कान पर जूं नहीं रेंगी। ऐसा लगता है कि सभी सरकारें संवेदनहीन हो चुकी हैं। आज वर्तमान समय में भाजपा की सरकार बनने के बाद लोगों को उम्मीद व आशा थी कि सरकार उनकी सुनेगी, लेकिन जिस तरह का व्यवहार और आचरण एक विधवा शिक्षिका के साथ देहरादून में मुख्यमंत्री के जनता दरवार में हुआ वह बेहद शर्मनाक है। आज ऐसा लगता है कि मानवीय संवेदनाओं की दुहाई देने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार भी अब संवेदनहीन हो चुकी है। उसे भी मातृशक्ति व विधवाओं की मानवीय संवेदनाओं से कोई सरोकार नहीं है। जो बहुत निंदनीय है।अगर सरकारी कर्मचारियों व शिक्षिकाओं तथा विधवाओं व महिलाओं के साथ ऐसा व्यवहार भारतीय जनता पार्टी की सरकार में होगा तो अब पूरे देश की आम जनता को भाजपा के प्रति अपने नजरिये पर दोबारा विचार करना पड़ेगा। तबादला एक्ट बनाने का ढिंढोरा पीटने वालीभाजपा सरकार से हमाराएक सवाल है। 25 साल दुर्गम क्षेत्र में नौकरी करने वालीविधवा शिक्षिकाका तबादला न होना किस जुर्म में आएगा। सरकार इसे स्पष्ट करे। अगर तबादले की गुहार लगाने वाली शिक्षिका की मांग जायज है तथा तबादला एक्ट के अनुसार उसकी मांग है तो सरकार को ऐसे अधिकारियों को भी चिन्हित करना चाहिए जो एक विधवा शिक्षिका के तबादला रोकने के लिए नाग की तरह कुंडली मारकर बैठे हुए हैं। और तो और बड़ी हैरत की बात यह है कि जब मुख्यमंत्री के ही जनता दरवार में सरकारी कर्मचारियों की सुनवाई नहीं होगी तो आम जनता की सुनवाई क्या होती होगी यह सब सवालों के घेरे में है। ऐसा लगता है कि इस घटना के बाद अब प्रतीत होता है कि जनता दरवार ढकोसला मात्र होता है। सिर्फ पार्टी व नेताओं के अपने प्रचार तक ही जनता दरवार सीमित रहता है।
सीएम की कार्यप्रणाली से मोदी के अभियान को लगा झटका
हल्द्वानी। उत्तराखंड की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के जनता दरवार में एक विधवा शिक्षिका के साथ जो दुर्व्यवहार का मामला सामने आया उससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा द्वारा बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान तथा मातृ शक्ति के उज्ज्वल भविष्य जैसे अभियान को पलीता लगा है। शिक्षिका को गिरफ्रतार करने व निलंबन करने के सीएम के आदेश के बाद ऐसा लगता है कि आज पूरे उत्तराखंड में भाजपा के प्रति लोगों का विश्वास टूटा है। जिसका भविष्य में होने वाले चुनाव में खामियाजा उत्तराखंड की पूरी भाजपा सरकार को उठाना होगा। आने वाले लोकसभा व निकाय चुनाव में इस घटना के बाद पूरे उत्तराखंड में भाजपा वोटों का भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। वोटरों का मोह भंग भाजपा से होता जा रहा है। उनका कहना है कि जब एक विधवा के साथ भाजपा नेताओं का यह व्यवहार सामने आ रहा है तो वह आम जनता के साथ कैसा व्यवहार करेंगे इसका अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है।