उत्तराखंड में आए दिन ‘डोलती धरती’ : वैज्ञानिकों के लिए भूकंप का सटीक पूर्वानुमान लगाने की बड़ी ‘चुनौती’
भूगर्भीय अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों को भारत सरकार का भरपूर सहयोग एवं प्रोत्साहन मिल रहा
देश के विभिन्न इलाकों में 32 नये डिजिटल स्टेशन स्थापित किये जायेंगे और छह स्टेशनों का विकास किया जायेगा
-अर्श-
रूद्रपुर। विगत रोज यानी तीन अक्टूबर को दोपहर ढाई से तीन बजे के बीच, थोड़े-थोड़े अंतराल में महसूस किए गए भूकंप के दो बड़े झटकों ने, तकरीबन समूचे उत्तर भारत में आमजन के मध्य एक बार फिर भय का वातावरण निर्मित कर दिया। भूकंप के झटके महसूस होते ही लोग हर बार की तरह अपने-अपने घरों एवं कार्य स्थल से खुले स्थान में जमा हो गए और स्थिति सामान्य होने पर ही अपने-अपने स्थान पर लौटे । लगभग आधा घंटे के भीतर दो बार आए भूकंप की तीव्रता रिएक्टर स्केल पर प्रथम बार 4.2 एवं दूसरी बार 6.2 मापी गई तथा भूकंप का केंद्र नेपाल में चिन्हित किया गया। उत्तराखंड सहित देश के विभिन्न हिमालयन राज्यों में कुछ माह के अंतराल में महसूस किए जाने वाले भूकंप के झटकों ने भारतीय वैज्ञानिकों को बेहद चिंतित कर दिया है और वह भूकंप का सटीक पूर्वानुमान लगाने की कोई भरोसेमंद वैज्ञानिक प्रणाली विकसित करने की कोशिश में जी-जान से जुटे हुए हैं । बताना होगा कि नीदरलैंड के वैज्ञानिक एवं भूगर्भ शास्त्री Úैंक हूगरबीट्स, जिन्होंने कुछ समय पूर्व अफगानिस्तान में आए 6।6 तीव्रता वाले गुना विनाशकारी भूकंप की 24 घंटे पूर्व ही भविष्यवाणी कर दी थी, द्वारा भारत के हिमालयन राज्यों विशेष कर उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू कश्मीर में अफगानिस्तान जैसी तीव्रता वाला भूकंप आने की आशंका व्यत्तफ करने के बाद, भारतीय वैज्ञानिक भूकंप के पूर्वानुमान की सटीक प्रणाली विकसित करने कि दिशा में दिन-रात एक कर रहे हैं। बावजूद इसके अभी तक यह सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाया है कि कब और कहां ,कितनी तीव्रता वाला भूकंप आ सकता है ? मगर समूची दुनिया सहित भारतीय वैज्ञानिकों के प्रयास इस दिशा में लगातार जारी है। देश के विभिन्न इलाकों के भूकंप संवेदी होने की वजह भारत एक ऐसी प्रणाली पर काम कर रहा है, जिससे भूकंम्प का पूर्वानुमान लगाया जा सके। ताकि भूकंप के कारण होने वाले नुकसान को कम किया जा सके। आईआईटी रूड़की और ताइवान द्वारा मिलकर किया जा रहे भूगर्भीय अध्ययन को भारत सरकार का भरपूर सहयोग एवं प्रोत्साहन मिल रहा है। नतीजतन इस समय नेशनल सेंटर फार सिस्मोलॉजी के देशभर में 84 स्टेशन और 150 वेधशालाएं अस्तित्व में हैं। सभी केंद्र इस विषय पर अध्ययन कर रहे हैं। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, विगत 30 वर्षाे के भूंकप के डाटा के विश्लेषण से भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया है कि इस अवधि के दौरान भूंकप की दर में कोई वृद्धि अथवा कमी नहीं आई है। भूकंप का अध्ययन करना एक विस्तृत विषय है और इस बारे में कोई समिति गठिन नहीं की गई है हालांकि कई संस्थान इस विषय पर अध्ययन कर रहे है। लिहाजा 84 डिजिटल केंद्रों को इस इतना सक्षम बना लिया गया है कि देश में कहीं भी 3 से अधिक तीव्रता के भूकंप का पांच मिनट के भीतर पता लगाया जा सके। इसमें और भी सुधार की कोशिश से जारी है। ताकि जल्द ही तीन मिनट के भीतर भूकंप की जानकारी एकत्र की जा सके। अभी इन केंद्रों के विकास के लिए दूसरे चरण का काम चल रहा है। इसके तहत 32 नये स्टेशन स्थापित किये जायेंगे और छह वर्तमान स्टेशनों का विकास किया जायेगा। फलस्वरुप देश में नेशनल सेंटर फार सिस्मोलॉजी के 116 स्टेशन हो जायेंगे। जो राष्ट्रीय नेटवर्क का हिस्सा होगा। इन स्टेशनों और वेधशालाओं को परिचालन केंद्र के जरिये वीसैट संचार प्रणाली से जोड़ा जायेगा। उल्लेखनीय है कि भूकंप का खतरा देश में हर जगह अलग-अलग है। इस खतरे के हिसाब से देश को चार हिस्सों में बांटा गया है। सबसे कम खतरे वाला जोन 2 है तथा सबसे ज्यादा खतरे वाला जोन-5 है।नार्थ-ईस्ट के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन-5 में आते हैं। उत्तराखंड के कम उंचाई वाले हिस्सों से लेकर उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्से, दिल्ली जोन-4 में आते हैं। मध्य भारत अपेक्षाकृत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है, जबकि दक्षिण के ज्यादातर हिस्से सीमित खतरे वाले जोन-2 में आते हैं। अभी तक वैज्ञानिक पृथ्वी के अंदर होने वाली भूकंपीय हलचलों का पूर्वानुमान लगाने में असमर्थ रहे हैं। इसलिए भूकंप की भविष्यवाणी करना फिलहाल संभव नहीं है। वैसे विश्व में इस विषय पर सैकड़ों शोध चल रहे हैं। हाल ही में भारतीय मूल की वैज्ञानिक दीपा मेले वीदू के नेतृत्व में एक रिसर्च टीम ने धरती की प्लेटों के हिलने के कारण पैदा हुए स्लो फॉल्ट मूवमेंट्स के आधार पर भूकंप के पूर्वानुमान का नया रास्ता खोज निकाला है।अब तक वैज्ञानिकों का मानना था कि स्लो फॉल्ट मूवमेंट्स या छोटे कंपनों के कारण रिक्टर स्केल पर 2 की तीव्रता वाले झटकों या भूकंप से बड़े भूकंप के आने की संभावना नहीं होती है।लेकिन अब न्यायांग टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी ;एनटीयूके रिसर्चर्स ने पाया कि ये छोटे कंपन भूकंप आने का संकेत देते हैं। इस टीम ने इसे समझने योग्य पैटर्न भी खोज निकाला है । एनटीयू के एशियन स्कूल ऑफ द एनवायरमेंट ऐंड ऐन अर्थ साइंटिस्ट ऐट अर्थ ऑब्जरवेटरी ऑफ सिंगापुर ;ईओएसद्ध की सिल्वेन बारबोट के अनुसार ,अगर सिर्फ स्लो मूवमेंट्स की पहचान की जाए तो इसका यह मतलब नहीं है कि वहां कोई बड़ा भूकंप नहीं आ सकता है। इसके उलट,फॉल्ट के उसी क्षेत्र में एक विनाशकारी भूकंप का विस्फोट हो सकता है।श् स्पष्ट है कि इस निष्कर्ष से संभावित बड़े भूकंपों के बारे में ज्यादा सटीक अनुमान लगाया जा सकता है।भले ही अभी भूकंप के पूर्वानुमान के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी हो ,लेकिन निश्चित तौर पर यह खोज आशा की किरण तो जगाती ही है।भारत में ज्यादातर भूकंप टैक्टोनिक प्लेट में होने वाली हलचलों के कारण आते हैं क्योंकि भारत इसी के ऊपर स्थित है, इसलिए खतरा और बढ़ जाता है। टैक्टोनिक प्लेट में होने वाली हलचलों के बारे में फिलहाल गहन शोध चल रहे हैं ,ताकि इसका पहले ही अंदाजा लगाया जा सके।