लॉकडाउन सेें गहराया आर्थिक संकट,चिंता में डूबी सरकार!

उत्तराखंड सरकार को पर्यटन,जीएसटी,खनन,शराब,परिवहन ठप होने से भारी नुकसान

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-उत्तरांचल दर्पण ब्यूरो-
देहरादून। कोरोना महामारी की रोकथाम के लिये लागू देशव्यापी लॉकडाउन से उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाना बड़ी चुनौती साबित हो सकती हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उच्चाधिकारियों से आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाने के लिये मास्टर प्लान तैयार करने के निर्देश दिये हैं जबकि केंद्र सरकार से आर्थिक राहत पैकेज के लिये प्रस्ताव भी तैयार किया जायेगा। वहीं दूसरी तरफ कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने पीएम नरेंद्र मोदी से राज्यों का विशेष आर्थिक पैकेज जारी करने की अपील की है। उल्लेखनीय है कि लाॅकडाउन से उत्तराखंड का स्थानीय एवं सबसे प्रमुख पर्यटन व्यवसाय पूरी तरह से ठप हो गया है। पहाड़ की वादियों में उमड़ने वाले देश विदेश के लाखों पर्यटकों के जरिये होने वाली आय ही प्रदेश सरकार के आर्थिकी का स्रोत माना जाता है। राज्य की कुल आमदनी के 60 फीसद से ज्यादा हिस्सेदार करों से होने वाली आय है, लेकिन हालत ये है कि करों की वसूली 15 फीसद भी नहीं हो पाई है। वर्ष 2019-20 में सिर्फ 5100 करोड़ कर्ज लिया गया, जबकि वर्ष 2018-19 में 6300 करोड़ कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ा था। अब राज्य सरकार पहली बार इस साल 10 से 12 हजार करोड़ कर्ज उठाने को मजबूर हो गई है। आर्थिक सुधार के लिये अब प्रदेश सरकार ने आरबीआई से कर्ज की सीमा बढ़ाने के लिए कसरत शुरू कर दी है। कोरोना से उपजे संकट में कर्मचारियों के वेतन-भत्तों, पेंशन, मानदेय पर करीब 1000 करोड़ से ज्यादा का बोझ हर महीने सरकारी खजाने पर है। सरकार के सामने इस वक्त स्वास्थ्य सुविधाओं के ढांचे को मजबूत करना है, जिससे कोविड के खतरे से निपटा जा सके। ऐसे में आने वाले हर महीने बाजार से कर्ज उठाना तय माना जा रहा है। वित्त सचिव अमित नेगी के अनुसार कोरोना संक्रमण से स्थिति बदल गयी है। आगे की परिस्थितियों के मद्देनजर कर्ज लेने के लिए केंद्र और आरबीआई से नए सिरे से अनुमति मांगी जा रही है। औरतलब है कि राज्य के पास पहले से ही खर्च की तुलना में आमदनी के स्रोत बेहद सीमित हैं। केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के साथ ही विभिन्न योजनाओं में केंद्र से मिलने वाली मदद समेत केंद्र सरकार के राजस्व अनुदान के बूते राज्य को अपने खर्चों को निपटाने में मदद मिलती रही है। यह हिस्सेदारी कुल आमदनी का 30 फीसद से ज्यादा है। करीब डेढ़ माह यानी पूरा अप्रैल माह और मार्च महीने के दूसरे पखवाड़े में जीएसटी से सिर्फ 88 करोड़ राज्य को मिले। प्रतिमाह करीब 450 करोड़ की आमदनी इससे होती है। इस आमदनी का बड़ा हिस्सा मार्च महीने का है। अप्रैल में जीएसटी की वसूली नगण्य है। वजह खाद्य पदार्थो में जीएसटी या तो नहीं है, या न के बराबर है। केंद्र सरकार ने कारोबारियों को राहत दी है कि वह अप्रैल व मई से संबंधित जीएसटी आगामी जून के पहले हफ्ते तक दाखिल कर सकते हैं। पेट्रोल व डीजल और शराब पर वैट को मिलाकर राज्य को डेढ़ माह में करीब 108 करोड़ मिले हैं, जबकि हर महीने यह आमदनी करीब 1050 करोड़ है। इसी तरह आबकारी से हर माह मिलने वाला करीब 270 करोड़ का राजस्व अभी शून्य है। स्टांप-रजिस्ट्रेशन और व्हीकल टैक्स के रूप में आमदनी रुकी हुई है। खनन, परिवहन, वन उत्पादों समेत विभिन्न करों की वसूली भी अप्रैल माह में पूरी तरह ठप रही है। लॉकडाउन-तीन यानी मई माह के पहले हफ्ते में ढील बढ़ने से राजस्व में कुछ वृद्धि होने की उम्मीद है। कोरोना की जंग में केंद्र सरकार की आर्थिक हालत खुद अच्छी नहीं है, ऐसे में राज्य सरकार केंद्र से केंद्रीय करों में ज्यादा हिस्सेदारी और अन्य मदद को लेकर आशंकित हैं। हालांकि केंद्र से पैकेज मिलने की उम्मीद लगाई गई है। केंद्र सरकार और आरबीआई चालू वित्तीय वर्ष के लिए बाजार से कर्ज की सीमा भी तय कर चुकी है।

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