कांग्रेस के भीतर अब भी गुटबाजी,कैसे होगी वापसी?
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम ,इंदिरा और हरीश की आपसी दूरी से उठ रहे सवाल
देहरादून। लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ी कांग्रेस के भीतर गुटबाजी बढ़ती जा रही है। जबकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह, नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा हृद्येश जहां पूर्व सीएम हरदा से दूरी बनाते दिख रहे हैं वहीं हरदा की पार्टी के कार्यक्रमों में अपनी अलग टााईमिंग को लेकर भी सवाल उठने लगे है। माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की यह गुटबाजी भाजपा के लिये राह आसान कर रही है वहीं पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा सकती है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और सबसे पावरफुल मानी जाने वाली कांग्रेस वर्किग कमेटी के सदस्य बनने के बाद हरीश रावत को प्रदेश के कुछ कांग्रेसी दिग्गज अब बाहरी नेता की तरह देख रहे है। हांलाकि सियासी गलियारों में चर्चा है कि राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी होने के बावजूद हरदा कभी दबाव में नहीं दिखे है मगर जब से उन्हें दिल्ली और असम में नई जिम्म्ेदारी दी गई है उसके बाद प्रदेश कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं का गुट अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिये रणनीति बना रहे है। कुछ नेता जहां अपनी नई पीढ़ी को आगे कर अपना सियासी करियर मजबूत करना चाह रहे हैं तो दूसरी तरफ दिल्ली की टीम में शामिल हरीश भी अपने पुत्र के साथ ही पुत्री को भी आगे कर चुनावी जिम्मेदारियों को उन्हें सौंपने की बात कहते रहते है। लेकिन अपने उत्तराधिकारियों का राजनीतिक कैरियर बनाने में जुटे इन नेताओं की गुटबाजी कहीं आगामी लोकसभा के चुनाव में आरजी की वापसी के लिये संकट पैदा न कर दे। क्योंकि गत दिवस राजधानी दून में आयोजित कांग्रेस कमेटी की प्रदेश स्तरीय पदाध्किारियों की बैठक में हरीश रावत की गैरमौजूदगी चर्चा का विषय बनी हुई है। वहीं ठीक एक दिन बाद पूर्व सीएम हरीश रावत द्वारा कांग्रेस मुख्यालय में बुलायी गई पत्रकार वार्ता के दौरान यह संकेत मिले हैं कि यहां कोई किसी को नेता मानने को तैयार नहीं है।राज्य के विभिन्न विषयों को नई धार देकर हरीश रावत प्रदेश के कांग्रेसियों के लिए पिच तो तैयार कर गये, लेकिन केंद्र में पार्टी की अहम जिम्मेदारी संभाल रहे हरीश रावत को टीम प्रीतम भाव देने को तैयार नहीं दिखी। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के क्षत्रप आपसी लड़ाई में उलझकर ही लोकसभा की पांचों सीटें जीतने का सपना बुन रहे हैं। केंद्रीय राजनीति में जाने के बाद रावत पत्रकारों से अपने आवास या फिर कहीं बाहर ही मिलते रहे हैं। निकाय चुनावों में एक दूसरे पर हार का दोषारोपण करने के बाद रावत ने पहली बार कांग्रेस भवन में पत्रकार वार्ता का आयोजन किया। कार्यक्रम जहां रावत के मीडिया प्रभारी सुरेन्द्र कुमार की ओर से जारी किया गया, वहीं टीम प्रीतम की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी सूर्यकांत धस्माना की ओर से भी उनकी पत्रकार वार्ता का कार्यक्रम पीसीसी से जारी करवाया गया। धस्माना की ओर से आमंतण्रमिलने से यह उम्मीद की जा रही थी कि गुटीय राजनीति में उलझे कांग्रेस क्षत्रप लोकसभा चुनावों की नजाकत को देखते हुए गिले शिकवे भूलने के प्रयासों में लग गये हैं। मगर रावत की पत्रकार वार्ता में न तो प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह पहुंचे और न ही आमंतण्रजारी करने वाले उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना। यही नहीं कांग्रेस के आयोजनों में प्रमुख भूमिका निभाने वाले महानगर अध्यक्ष लालचंद शर्मा ने भी दूरी बनायी। उनके साथ जो लोग वहां पहुंचे थे, उनमें रावत के करीबी सुरेन्द्र कुमार, राजीव जैन, मनोज रावत, हरीश धामी, मनोज तिवारी, गरिमा दसौनी, सुशील राठी, कैप्टन बलबीर सिंह रावत, प्रभुलाल बहुगुणा और मनीष नागपाल के साथ ही महिला कांग्रेस की अध्यक्ष कमलेश रमन अपनी टीम के साथ पहुंची थी।
चुनाव से पहले हरदा ने उछाले सियासी मुद्दे
देहरादून। हरदा ने राज्य सरकार के खिलाफ कई ऐसे मुद्दों को हवा दे दी है, जिन्हें प्रदेश के कांग्रेस नेता अब तक ठीक से छू भी नहीं पाये थे। जाते-जाते रावत पत्रकारों को बोल भी गये, वे सलाहकार बुजुर्ग की तरह काम कर रहे हैं। पिच उन्होंने बना दी है और खेलना जवान लोगों का काम है। रावत की इस बात के यह भी मायने निकाले जा सकते हैं कि अगर उत्तराखंड पीसीसी द्वारा उनको तवज्जो न दी गयी तो वे लोकसभा चुनाव के दौरान खेल के मैदान से दूरी बना सकते हैं क्योंकि उनके पास लोकसभा चुनाव में खेलने के लिए असम जैसे बड़े राज्य के साथ ही बंगाल का एक बड़ा हिस्सा भी है। उन्होंने जाते-जाते दावा भी किया कि असम की 14 लोकसभा सीटें जीत रहे हैं और वहां पंचायत चुनावों में कांग्रेस को मिले रिस्पांस से यह साफ हो गया है। तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने का असर उत्तराखंड में भी पड़ने की उम्मीद कर रही प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह की टीम को हरदा जाते-जाते काफी कुछ मसाला दे गये।