चावल के बाद अब करोड़ों का केरोसिन घोटाला
आईटीआई से मिली सूचना से हुआ खुलासा, तेल के खेल में पूर्ति विभाग के अधिकारी कर रहे वारे न्यारे
रुद्रपुर,27नवम्बर। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के जीरो टॉलरेंस के दावों के बीच प्रदेश में एक और घोटाला सामने आया है। गरीबों को सस्ता गल्ला विक्रेताओं के माध्यम से बांटा जाने वाला कैरोसिन लाभार्थियों तक पहुंचने से पहले ही गायब हो जाता है। वैसे तो यह खेल पिछले कई वर्षों से चल रहा था। करीब दो वर्षों से आलम यह है कि डिपो को आवंटित होने वाला पूरा कैरोसिन राशन कार्ड धारकों तक पहुंच ही नहीं पाता। इसका खुलासा आरटीआई से मांगी गयी एक सूचना से हुआ है। सूत्र बताते हैं कि बड़ी मात्र में सरकारी कैरोसिन पेट्रोल पम्पों पर मिलावट के रूप में खपाया जा रहा है। कुछ लोग अब इस मामले को लेकर हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। मामले की निष्पक्ष जांच की जाये तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं। प्रदेश में राशन वितरण में धांधली की शिकायतें समय समय पर मिलती रही है। गरीबों तक पहुंचने वाला राशन बीच में ही गायब हो जाता है। अब गरीबों के चूल्हे तक पहुंचने से पहले ही कैरोसिन भी गायब हो रहा है। आलम यह है कि कई स्थानों पर कागजों में ही कैरोसिन बांटा जा रहा है। कागजों में बंट रहे कैरोसिन के एवज में अधिकारी करोड़ों की बंदरबांट कर रहे हैं। बता दें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत राशन कार्ड धारकों को गेहूं चावल और चीनी के साथ ही कैरोसिन वितरित किया जाता है। शासन की नीति के अनुसार मैदानी क्षेत्रें में बिना एलपीजी राशन कार्ड धारकों को मैदानी क्षेत्र में तीन लीटर और पर्वतीय क्षेत्रें में पांच लीअर प्रति राशन कार्ड मिट्टी तेल वितरित किये जाने का प्रावधान है। वर्ष 2017 में शासन की ओर से मिट्टी तेल आवंटन के आंकड़ों पर नजर डालें तो जनवरी फरवरी एवं मार्च 2017 में पूरे प्रदेश में कुल 2548 लाख किलो लीटर मासिक मिट्टी तेल आवंटित किया गया। इसमें नैनीताल जनपद को सबसे अधिक 341 लाख किलो लीटर मिट्टी तेल आवंटन हुआ। जबकि उधरमसिंहनगर को 319, देहरादून को 322, अल्मोड़ा को 210, चम्पावत को 78 लीटर कैरोसिन आवंटित किया गया। जबकि अप्रैल, मई एवं जून माह में उत्तराखंड के सभी 13 जिलों को कुल 2111लाख लीटर मिट्टी का तेल आवंटित किया गया था जिसमें नैनीताल जिले को सबसे अधिक 443लाख लीटर और चम्पावत को सबसे कम 19लाख लीटर मिट्टी का तेल आवंटित किया गया था। उधमसिंहनगर जिले को 280 लाख लीटर मिट्टी का तेल आवंटित किया गया था। आवंटित कोटे को आयल डिस्ट्रीब्यूरों के माध्यम से राशन डिपो तक पहुंचाकर राशन कार्ड धारकों तक पहुंचाया जाता है लेकिन विडम्बना है कि यह कैरोसिन राशन कार्ड धारकों के पास पहुंचने से पहले ही गायब हो जाता है। उधमसिंहनगर के जनपद मुख्यालय रूद्रपुर की ही बात करें तो यहां पर कई राशन विक्रेताओं का कहना है कि वह खुद ही डिपो से कैरोसिन नहीं उठा रहे क्याेंं कि जितने राशन कार्ड धारक है उस हिसाब से कैरोसिन की आपूर्ति नहीं होती इसलिए वह कैरोसिन नहीं उठाते। ऐसे में जब राशन कार्ड धारकों तक तेल पहुंचता नहीं तो यह गायब कहा होता है? यह सबसे बड़ा सवाल है। आरटीआई के अंतर्गत मांगी गयी एक सूचना से पता चला है कि कागजों में मिट्टी तेल राशन कार्ड धारकों तक पहुंचाया गया है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। उत्तरांचल दर्पण की टीम ने कई स्थानों पर राशन कार्ड धारकों से बात की तो पता चला कि पिछले करीब दो वर्षों से मिट्टी का तेल की उन्हें एक बूंद तक नहीं मिली। पूर्ति विभाग के अधिकारी भले ही कैरोसिन वितरण के नाम पर कागजों का पेट भर रहे हों लेकिन सच्चाई यह है कि तेल के इस खेल में अधिकारी से लेकर कई लोग मिले हैं। थोक मिट्टी तेल विक्रेता और सस्ता गल्ला विक्रेताओं की भी इसमें सांठ गांठ से इनकार नहीं किया जा सकता। पूर्व में हुए चावल घोटाले की तर्ज पर अब कैरोसिन घोटाले ने अफसरशाही की भ्रष्ट कार्यप्रणाली की पेाल खोल दी है। आरटीटाई से मिली सूचना से हुए इस खुलासे के बाद मामले को लेकर कुछ लोग उच्चन्यायालय का दरवाजा खटखटाने की तैयारी भी कर रहे हैं। एक ओर प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपनी उपलब्धियों के नाम पर जीरो टोलरेंस का दावा कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर अधिकारी उनकी नाक के नीचे भ्रष्टाचार को खुलेआम अंजाम दे रहे हैं। यह घोटाला सीधे सीधे गरीब परिवारों के चूल्हे से जुड़ा है। एक ओर जहां गरीब लोग दो जून की रोटी के लिए दिन-रात मेहनत कर अपना गुजारा कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर अधिकारी उनके हिस्से का तेल पीकर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं। सस्ता गल्ला विक्रेताओं पर पूर्व से ही चावल, गेहूं, चीनी की कालाबाजारी को लेकर उंगलियां उठती रही हैं लेकिन अब कैरोसिन का मामला सामने आया है। आरटीआई से हुए खुलासे में जो जानकारी आयी है उसमें उधमसिंहनगर जिले में मिट्टी के तेल का वितरण खानापूर्ति के नाम पर ही किया गया है। इसकी निष्पक्ष जांच की जाये तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं।