जहां चिकित्सकीय उपकरण है वहां टेक्नीशियन नहीं ,जहां लैब मौजूद वहां पैथोलॉजिस्ट नहीं
उधम सिंह नगर के शासकीय चिकित्सा तंत्र में विसंगतियों की भरमार ,विशेषज्ञों के स्वीकृत पदों में से 76 खाली
रूद्रपुर। उत्तराखंड बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक का सफर तय करने के बाद अब युवावस्था को प्राप्त कर चुका है, लेकिन राज्य निर्माण के दो दशक के बाद भी सरकारी इलाज की विडंबनाएं आज भी लाइलाज सी जान पड़ती है और सूबे में स्वास्थ्य सुविधाओं की गाड़ी किसी तरह हिचकोले खा खा कर चल रही है। राज्य के अधिकांश बड़े अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टर तो दूर, सामान्य ड़घक्टर तक उपलब्ध नहीं हैं। प्रदेश की सरकार मरीज को अस्पताल से ही दवाएं देने का दम भरती है परंतु सरकारी दवा वितरण की व्यवस्था अपने आप में एक बड़ी बीमारी का शिकार जान पड़ती है ।
सरकारी डॉक्टर और दवा कंपनियों का गठन जोड़ कुछ इस कदर मजबूत है कि तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद शासकीय चिकित्सक ना तो जेनेरिक दावों दवाइयां को बढ़ावा देते हैं और ना ही चिकित्सा पर्ची पर ऐसी दवाई ही लिखते हैं, जो अस्पताल में उपलब्ध हों। सरकारी चिकित्सकों द्वारा लिखीं जाने वाली दवाई अक्सर अस्पताल में नहीं मिलती हैं परिणाम स्वरूप तीमारदारों को बाहर केमिस्ट की दुकान से महंगी और ब्रांडेड दवाएं लेनी पड़तीं हैं । उत्तराखंड के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा उपकरण तकनीशियनों के अभाव में या तो धूल खा रहे हैं या ताले में बंद हैं और कहीं-कहीं तो तकनीशियन उपकरण के इंतजार में हैं। यही वजह है कि मामूली से एक्सरे और अल्ट्रासाउंड के लिए भी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को निजी चिकित्सालयों की शरण में जाना पड़ता है। सरकार के चिकित्सा तंत्र के आंकड़ों पर अगर विभागवार नजर डालें, तो स्वास्थ्य सेवाओं की बड़ी ही डरावनी हकीकत सामने आती हैं। बात कुमाऊं मंडल की करें तो कुमाऊं के अस्पताल में सृजित 674 पदों में से सिर्फ 301 पर ही विशेषज्ञ चिकित्सक उपलब्ध है और शेष 376 पद रिक्त हैं। इसी प्रकार उधम सिंह नगर जिले में विशेषज्ञों के 106 पद स्वीकृत हैं और केवल 30 पदों पर विशेषज्ञ चिकित्सक उपलब्ध हैं और 76 पद खाली पड़े हैं। उधम सिंह नगर के जिला अस्पताल में विशेषज्ञों के 13, चिकित्साधिकारी के 6 पद, स्त्री रोग विशेषज्ञ, जनरल सर्जन, फिजिशियन, मनोरोग, चर्म रोग, एनेस्थेटिस्ट, बाल रोग, ईएनटी का एक-एक पद पैथोलॉजिस्ट के दो, फोरेसिंक का एक, माइक्रो बायोलॉजिस्ट का एक, आयुष का एक पद खाली पड़े हैं। तकरीबन यही दशा उधम सिंह नगर जिले के अन्य सरकारी अस्पतालों की भी है ।एलडी भट्टð राजकीय उप जिला चिकित्सालय काशीपुर में फिजिशियन, फिजियो थैरेपिस्ट, सर्जन, निश्चेतक, फिजिशियन, हîóी रोग विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ, मेडिकल ऑफिसर 6, स्टाफ नर्स 17, फार्मासिस्ट एक, लैब टेक्नीशियन के दो पद रिक्त हैं। वही जसपुर सीएचसी के तीन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर नहीं हैं। जसपुर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी दो डॉक्टरों की कमी हैं तथा दो फार्मासिस्ट, 4 वार्ड बॉय, 2 स्वीपर के पद भीतर रिक्त हैं ।इसके अलावा नानकमत्ता सीएचसी में से एक चिकित्सक जून से लंबे अवकाश पर हैं। वर्तमान में यहां केवल एक आयुर्वेदिक चिकित्सा, एक फार्मासिस्ट, दो वार्ड बॉय, दो स्वच्क्षक ही तैनात हैं। बताया जाता है कि यहां अल्ट्रासाउंड की सुविधा नहीं है और विधायक निधि से मिली एम्बुलेंस पहिए भी 2 साल से जाम है। ले-देकर एक एक्स-रे मशीन है भी तो उसे चलाने वाला कोई नहीं ।बात दिनेशपुर की करें तो दिनेशपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में केवल एक प्रभारी चिकित्साधिकारी, एक आर्युर्वेद चिकित्सक, एक फार्मासिस्ट, एक अस्थायी वार्ड बॉय, एक स्वच्छ कर्मी, दो एएनएम, चार स्टाफ नर्स ही तैनात है । दिनेशपुर में के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में महिला चिकित्सक, बाल रोग विशेषज्ञ, लैब टेक्नीशियन, स्थायी वार्ड बॉय, तथा अल्ट्रासाउंड मशीन नहीं एक्सरे मशीन है, टेक्नीशियन नहीं। लैब टैक्नीशियन नहीं होने के कारण लोगों को खून की जांच के लिए हल्द्वानी जाना पड़ता है इसके अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पर्याप्त मात्रा में दवाइयां भी उपलब्ध नही है जहां तक गदरपुर का सवाल है तो गदरपुर में स्त्री रोग विशेषज्ञ, ईएमओ के दो पद रिक्त पड़े हुए हैं ।यहां सर्जन एवं डर्मेलॉजिस्ट के साथ- साथ सीटी स्कैन एवं अल्ट्रासाउंड की सुविधा भी नहीं है तथा चीफ और फार्मासिस्ट का एक-एक, वार्ड बॉय के दो, स्वच्छक का एक और स्टाफ नर्स के चार पद रिक्त पड़े हैं। उधर बाजपुर सीएचसी में चिकित्सकों के 23 पदों से 15 रिक्त फार्मेसिस्ट और वार्ड बॉय के दो-दो पद रिक्त ।सितारगंज सीएचसी में महिला चिकित्साधिकारी,सर्जन, रेडियोलॉजिस्ट , महिला रोग विशेषज्ञ के पद खाली पड़े हैं। मजे की बात तो यह है कि यहां चिकित्साधिकारी के दो पद है पर कार्यरत तीन है। साथ ही होमियोपैथिक चिकित्साधिकारी का एक, नर्सिंग अधिकारी के दो पद खाली पड़े हुए हैं । इन तामम विसंगतियों के बावजूद सरकारी दावा तो यह है कि कोरोनाकाल के बाद सभी अस्पतालों में व्यवस्थाओं में सुधार हुआ है ।अस्पतालों के भवनों के साथ मशीन भी अपग्रेड हुईं है । सभी अस्पतालों में ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट और आक्सीजन कंसनट्रेटर भी चालू अवस्था में हैं। खाली पदों के संबंध में खाली पड़े पदों के संबंध में जवाब का दावा है कि रिक्त पदों को भरने के लिए सरकार से लगातार पत्राचार किया जा रहा है और डॉक्टर उपलब्ध होते ही सारे पद भर दिए जाएंगे। सरकारी दावे की हकीकत का अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि समूचे कुमाऊं मंडलके जिला अस्पतालों से लेकर मेडिकल कॉलेजों तक दिल के दर्द को दूर करने के लिए केवल एक ही डॉक्टर है और वह भी नैनीताल के बीडी पांडे अस्पताल में तैनात हैं। ऐसे में दूर दराज के इलाकों में अगर किसी को हृदयघात होता है तो उसका बचना मुश्किल ही नहीं लगभग नामुमकिन होता है।