वाह रे ,सरकारी सिस्टम तेरा जवाब नहीं
बच्चे घर से लाकर दे रहे सरकारी शिक्षकों की तनख्वाह
नरेश जोशी
उधम सिंह नगर। पूर्व की केंद्र सरकार ने देश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू करते हुए यह मैसेज दे दिया कि केंद्र सरकार देश में शिक्षा को लेकर कितनी चिंतित है । सरकार का मानना था कि निर्धन परिवार के लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजना उचित नहीं समझ रहे थे जिसको लेकर पूर्व की केंद्र सरकार ने पूरे पूरे देश में एक साथ सभी सरकारी विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन की मुफ्त व्यवस्था भी कर दी । अगर गणना की जाए तो प्रदेश व केंद्र सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने के मकसद से कई कल्याणकारी योजनाएं चला रखी हैं जिसमें शिक्षा का अधिकार अधिनियम सहित सब पढ़े सब बढ़े , बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ सहित न जाने कितनी योजनाओं के नाम पर प्रतिवर्ष लाखों करोड़ों महज प्रचार व प्रसार के नाम पर खर्च कर दिया जाता है किंतु सरकारी सिस्टम की घोर लापरवाही के चलते जमीनी हकीकत कुछ और ही है । लाख दावों और हजारों कोशिशों के बाद भी देश की शिक्षा व्यवस्था पटरी पर आने का नाम नहीं लेती। उत्तराखंड की त्रिवेंद्र रावत सरकार ने सूबे में शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई कड़े कानून बनाए बावजूद इसके हालात अब भी बद से बदतर है। इसका जीता जागता उदाहरण उधम सिंह नगर जनपद के किच्छा शहर में देखा जा रहा है किच्छा के दोनों अर्ध सरकारी व सरकारी इंटर कॉलेजों में बच्चे सरकारी टीचरों की फीस अपने घर से लाकर दे रहे हैं। यह सिलसिला पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है। लेकिन शहर मे सरकार से जुड़े लोग कुछ नहीं कर पा रहे। यह हालत तब है जब सूबे के शिक्षा मंत्री इसी जनपद से ताल्लुक रखते हैं और मौजूदा विधायक सत्ता पक्ष से जुड़े हैं। किच्छा शहर के एकमात्र राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में शिक्षकों की बेहद कमी है। यहां पीटीए के तहत नौकरी कर रहे शिक्षकों की तनख्वाह स्कूली बच्चों से ली जाती है। हालात यह हो गए हैं कि अगर स्कूली बच्चे घर से अध्यापकों की तनख्वाह ना दें तो स्कूल में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह लड़खड़ा जाएगी ठीक ऐसा ही हाल शहर के श्री कृष्ण मरचेंट्स एसोसिएशन इंटर कॉलेज का है। यह इंटर कॉलेज अर्ध सरकारी माना जाता है किंतु यहां अध्यापकों की तैनाती सरकार के द्वारा की जाती है और उनकी तनख्वाह भी सरकार देती है। यहां भी शिक्षकों की भारी कमी है और राजकीय बालिका इंटर कॉलेज की तरह इस इंटर कॉलेज में भी विद्यार्थी अस्थाई रूप से रखे गए शिक्षकों की तनख्वाह देते हैं। ऐसा नहीं है कि शहर के इन विद्यालयों के हालातों की जानकारी शासन प्रशासन में बैठे लोगों को नहीं है लंबे समय से शिक्षकों की तैनाती को लेकर कागजी घोड़े दौड़ते रहे पर आज तक शिक्षकों की कमी को पूरा नहीं किया गया। बालिका इंटर कॉलेज में शिक्षकों की तैनाती को लेकर कई बार आदेश भी हुए पर नतीजा वही ढाक के तीन पात। सूबे के मैदानी क्षेत्र हो या फिर पर्वतीय क्षेत्र प्राथमिक शिक्षा हो या फिर उच्च प्राथमिक शिक्षा प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह लड़खड़ाए हुई है। राज्य गठन के बाद कांग्रेस की सरकार ने शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए कई दावे किए जिसके बाद फिर भाजपा फिर कांग्रेस और अब फिर त्रिवेंद्र सरकार के रूप में भाजपा सरकार एक बार पुनः सत्ता पर काबिज है सरकार से जुड़े प्रतिनिधि शिक्षा के नाम पर कई कड़े कानून बनाने का दावा कर रहे हैं पर हालात कुछ और ही है।