मैं ज्यों ही सुनता हूं कि साहब एक टेलीफोन तो कर दीजिए,फौरन कुछ बचते-बचाते संस्तुति कर ही देता हूं !

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अब स्पीकर ऋतु खंडूरी के ओएसडी की नियुक्ति का लेटर सोशल मीडिया में वायरल
देहरादून(उद ब्यूरो)। उत्तराखंड विधानसभा में बैकडोर की नियुक्तियों की आंच अब मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी तक पहुंच गई है। सोशल मीडिया में वायरल एक लेटर में उनके ओएसडी की नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े किए जा रहें हैं। वहीं विपक्ष ने भी इस मसले पर ऋतु खंडूरी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दरअसल आज सोशल मीडिया में एक लेटर वायरल हुआ। इस वायरल लेटर में दिल्ली निवासी किसी अशोक शाह को विधानसभा अध्यक्ष का विशेष कार्याधिकारी बनाए जाने का आदेश जारी किया गया है। ये नियुक्ति 26 मार्च 2022 से दिखाई गई है। हालांकि ये पत्र 19 अप्रैल 2022 को जारी हुआ दिख रहा है। दिलचस्प ये है कि ये लेटर विधानसभा के सचिव मुकेश सिंघल की आज्ञा से जारी हुआ है। मुकेश सिंघल विधानसभा सचिव थे और ऋतु खंडूरी ने हाल ही में उन्हे सस्पेंड किया है। वहीं इस लेटर के वायरल होने के बाद सोशल मीडिया के साथ साथ विपक्ष ने भी ऋतु खंडूरी को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। कांग्रेस की प्रवक्ता गरिमा माहरा दसौनी ने पूछा है कि क्या ऋतु खंडूरी को पूरे राज्य में कोई एक ऐसा शख्स नहीं मिला जिसे वो अपना व्ैक् बना पाती। आखिर दिल्ली से एक व्यक्ति को बुलाकर ओएसडी का पद क्यों दिया गया? हालांकि हम इस लेटर की पुष्टि नहीं करते हैं लेकिन सोशल मीडिया से लेकर विपक्ष तक अब जिस तरह से ऋतु खंडूरी को लेकर हमलावर हुआ है उससे निपटना न सिर्फ ऋतु के लिए मुश्किल होगा बल्कि सरकार के लिए अब एक और असहज स्थिती पैदा हो रही है। वहीं पूर्व सीएम हरीश रावत ने शुक्रवार को सोशल मीडिया पर अपनी प्रक्रिया व्यक्त करते हुए विधानसभा में भाजपा और कांग्रेस के कार्यकाल में हुई तदर्थ नियुक्तियों को लेकर एक पोस्ट साझा की है। पूर्व सीएम हरीश रावत के अनुसार विधानसभा बैकडोर भर्ती प्रकरण में मेरा यह अंतिम पोस्ट/ट्वीट है। मैंने अपने पूर्ववर्ती ट्वीट्स में नियुक्ति कर्ता विधानसभा अध्यक्षों और राजनेता जिन्होंने नियुक्तियां करवाई हैं उन पर कुछ टिप्पणियां की। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम नौकरी आदि में संस्तुति नहीं करते हैं। मैं संस्तुति करने में गले-गले तक डूबा हुआ हूं और आनंद महसूस करता हूं। मैं ज्यों ही सुनता हूं कि साहब एक टेलीफोन तो कर दीजिए। मेरे अंदर का सामाजिक कार्यकर्ता हरीश रावत, फौरन टेलीफोन उठाकर कुछ बचते-बचाते संस्तुति कर ही देता हूं। कभी-कभी तो मैं इतनी बड़ी गलती कर देता हूं कि संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति को भी टेलीफोन कर देता हूं। चाहे वह टेलीफोन उपनल के माध्यम से मैसेंजर के पद पर लगाने का ही क्यों न हो! उत्तराखंड में नौकरी, भगवान मिलने के बराबर मानी जाती है तो यहां के सार्वजनिक जीवन का व्यक्ति सिफारिश करने से और सिफारिश मानने से कैसे इंकार कर सकता है! मैं सभी स्पीकर महोदयान और संस्तुति करने वाले प्रभावशाली व्यक्तियों की विडंबना को समझता हूं। मगर गलत तो गलत है। सन् 2001 से हम गलती करते आए हैं। उच्च स्तरीय अधिकारियों की कमेटी को चाहिए था कि ऐसी सभी नियुक्तियों को चिन्हित कर उन पर क्या कार्रवाई की जाए, इसका आदेश माननीय विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री जी से लेते। राज्य के लोगों को यह जानने का पूरा हक है कि हम में से किन लोगों ने नियुक्तियों के मामले में नैतिक आधार पर ही सही गलती की है। इस सारे जांच के निष्कर्ष में उस गरीब निरीह उत्तराखंडी का गला तो कट गया, जिसके लिए नौकरी पाना ही जीवन का लक्ष्य है। हम लोगों ने जिन्होंने अपने अधिकारों व पद का विवेक सम्मत उपयोग नहीं किया, कमेटी उन चेहरों को सामने नहीं लाई। हमने स्पीकर दर स्पीकर, मुख्यमंत्री दर मुख्यमंत्री गलती की। हम नौकरी दिलवाना और नौकरी देना, संविधान सम्मत अधिकार मान बैठे। जबकि ऐसा है नहीं। मैं माननीय स्पीकर व मुख्यमंत्री जी की परिस्थिति को समझता हूं। संतोषजनक समाधान के अभाव में यह विवाद गूंजता रहेगा। मैं अच्छा, तू बुरा होता रहेगा और यह सत्य दब जाएगा कि प्रक्रियात्मक नियुक्तियां और दोषपूर्ण नियुक्तियां, कहां-कहां हुई हैं और किसने की हैं? क्या धन का आदान-प्रदान हुआ है? क्या जाली प्रमाण पत्र लगाए गए हैं? क्या बिना प्रक्रियात्मक अनुमोदन के माननीय स्पीकर साहिबान ने अपने विवेक का निर्मम तरीके से दुरुपयोग कर दिया?

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