किसान पंचायत में मोदी सरकार के खिलाफ गरजे कई संगठन
हल्द्वानी। अखिल भारतीय किसान महासभा द्वारा बुद्धपार्क हल्द्वानी में किसान पंचायत का आयोजन किया गया जिसमें किसान आंदोलन के समर्थक विभिन्न संगठनों ने भागीदारी की। वक्ताओं ने कहा कि भारत की खेती और खाद्य सुरक्षा को काॅरपोरेट व बहुराष्ट्रीय निगमों का गुलाम बनाने वाले मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देश के किसानों का ऐतिहासिक आन्दोलन आज पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया है। इस आन्दोलन के ऐजेंडे में तीन कृषि कानूनों के अलावा बिजली के निजीकरण और वायु प्रदूषण से जुड़े दो अध्यादेशों को वापस लेने की मांग भी है। किसानों का यह संघर्ष सीधे-सीधे केन्द्रीय सत्ता के खिलाफ है। यह किसान आंदोलन आर्थिक सुधार के नाम पर काॅरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों देश के संसाधनों को लुटाने के विरोध में खड़ा है। भारत की सत्ता के केंद्र दिल्ली को घेरे लाखों किसानों ने आजाद भारत के इतिहास में और खासकर भारत में बढ़ते फासीवादी निजाम के दौर में जनता के प्रतिरोध की एक नई इबारत लिख दी है। अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष आनन्द सिंह नेगी ने किसान पंचायत को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि, यह आन्दोलन आर्थिक सुधार के नाम पर देश को कारपोरेट और बहुराष्ट्रीय निगमों का गुलाम बनाने के खिलाफ लक्षित है। इसीलिए यह पहली बार है कि न सिर्फ किसान केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ लड़ रहे हैं, बल्कि भारत में कारपोरेट के चेहरे बने और प्रधानमन्त्री मोदी के चहेते अम्बानी-अडानी समूहों के खिलाफ भी सीधे संघर्ष कर रहे है। भाकपा ;मालेद्ध राज्य सचिव राजा बहुगुणा ने किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा, कोरोना संकट की आड़ लेकर मोदी सरकार ने देश के संसाधनों के निजीकरण और काॅरपोरे टीकरण को रफ्तार देने के लिए आर्थिक सुधारों के नाम पर एक के बाद एक काले कानूनों की झड़ी लगा दी। उसी कड़ी में चार श्रम कोड बिलों के साथ ही खेती के काॅरपोरेटीकरण और अन्न के व्यापार व भंडारण को काॅरपोरेट के हाथ सौंपने सहित तीन कृषि अध्यादेशों को लाकर भारत के किसानों पर अपना ऐजेंडा थोप दिया। इन तीन कानूनों के साथ ही मोदी सरकार बिजली सुधार अध्यादेश 2020 में बिद्युत विभाग के पूर्णतः निजीकरण का प्रावधान ले आई. इन कानूनों ने किसान आन्दोलन के पूरे स्वरूप को ही बदल दिया. जो किसान आन्दोलन पिछले साढे तीन साल से कर्ज मुत्तिफ और लागत का डेढ़ गुना दाम की मांग पर केन्द्रित था, वह अब खेती के कारपोरेटीकरण और खाद्य सुरक्षा पर खतरे के खिलाफ मुड़ गया है। किसान नेता बहादुर सिंह जंगी ने कहा कि, सरकार कह रही है कि अब किसान अपनी फसल किसी को भी और कहीं भी बेचने को आजाद हो गया है। इसका मतलब क्या है? इस बदलाव के बाद अब केंद्र सरकार राज्य सरकारों को किसानों की फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने के लिए न तो बैंकों से ‘कैश क्रेडिट’ दिलाएगी और न ही राज्य की मंडियों द्वारा खरीदी गई फसल को एफसीआइ के माध्यम से खरीदने की गारंटी देगी. ऐसी स्थिति में राज्य सरकारें वर्तमान मंडियों के माध्यम से फसल नहीं खरीद पाएगी और किसान मंडी के बाहर बैठे कारपोरेट के दलालों के हाथ अपनी फसल कौड़ियों के भाव बेचने को मजबूर होंगे। इसलिए प्राइवेट मंडियों की स्थापना के साथ सरकार अगर कहती है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रहेगा तो वह सिर्फ किसानों को धोखा दे रही है। ट्रेड यूनियन ऐक्टू के प्रदेश महामंत्री के के बोरा ने किसानों के आंदोलन का समर्थन में कहा कि, आज कोरोना संकट के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं पूरी तरह चरमरायी हुई हैं। बेरोजगारी बढ़ रही है। आम लोगों की क्रय शत्तिफ लगातार घट रही है। इससे दुनिया भर में उपभोत्तफा उत्पादों की मांग में भारी कमी आ गई है। सिर्फ एक क्षेत्र है खाद्य वस्तुएं, जिनकी मांग मनुष्य के जीवित रहने के लिए हर स्थिति में बनी रहेगी। इसलिए दुनिया की बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और देशी कारपोरेट कम्पनियों की नजर अब खेती की जमीन और खाद्य पदार्थों के व्यवसाय पर है। अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन ‘ऐपवा’ की वरिष्ठ नेता विद्या रजवार ने कहा कि, ष्भारत जैसे कृषि प्रधान और बड़ी आबादी वाले देश की खेती, अन्न भंडारण और अन्न बाजार को अपने नियंत्रण में लेने के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और काॅरपोरेट कम्पनियों में होड़ मची है। यही वह क्षेत्र है जहां इस वैश्विक संकट के दौर में अभी भी मांग है और पूंजी निवेश की संभावनाएं बची हुई हैं। इसलिए हर तरफ से निराश मोदी सरकार किसी भी हाल में यहाँ काॅरपोरेट व बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की राह आसान करना चाहती है। पर देश का किसान ऐसा हरगिज नहीं होने देगा। क्रालोस के मोहन मटियाली ने कहा कि, मोदी सरकार भारतीय कृषि को अमेरिकी कृषि के रास्ते पर ले जाना चाहती है।भारत जैसे कृषि प्रधान और विशाल आबादी के देश की खेती और खाद्य बाजार पर अब बहुराष्ट्रीय कम्पनियां और बड़े कारपोरेट घराने अपना एकाधिकार जमाना चाहते हैं। माले जिला सचिव डाॅ कैलाश पाण्डेय ने कहा कि, चोटी की 10 वैश्विक बीज कम्पनियां दुनियां के एक-तिहाई से ज्यादा बीज कारोबार पर काबिज है। भारत के 75 प्रतिशत बीज, कीटनाशक बाजार पर भी मोसोंटो और करगिल जैसी अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का कब्जा हो चुका है। अब मोदी सरकार पूरी तरह कृषि क्षेत्र को बड़े पूंजीपतियों के हवाले करना चाहती है इसी के खिलाफ किसान आंदोलन में उतरे हैं। किसान नेता बलजीत सिंह ने कहा कि, किसानों के साझे मोर्चे द्वारा किये जा रहे आन्दोलन के आ“वानों पर कश्मीर से लेकर तमिलनाडु और असम, मणिपुर से लेकर गुजरात तक देश के लाखों किसानों का एक साथ सड़क पर उतरना इस आन्दोलन के राष्ट्रीय चरित्र को सामने ला रहा है। सरकार की कोशिश किसानों की इस राष्ट्रव्यापी चट्टðानी एकता को तोड़ने की है। वह उसमें कहीं से भी कामयाब नहीं हो पा रही है। देश भर में किसानों के लिए लड़ने वाले सभी संगठन इन तीन काले कृषि बिलों के खिलाफ एकजुट हैं। देश के किसानों का इन बिलों को वापस कराने के दृढ़ निश्चय ने ही किसान संगठनों की एकता को इतना विस्तार दिया है। देश के 21 राज्यों में बड़े पैमाने पर किसान सड़कों में उतरे हैं। प्रदेश अध्यक्ष आनंद सिंह नेगी की अध्यक्षता में हुई ष्किसान पंचायतष् में देश में चल रहे किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए किसान विरोधी तीनों कानूनों को रद्द करने, स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट अनुसार किसानों की कुल लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर सरकारी खरीद करने का कानून बनाये जाने, किसानों की कर्ज माफी, बिजली निजीकरण अध्यादेश वापस लेने व वायु प्रदूषण के नाम पर किसानों से करोड़ों रुपये का जुर्माना वसूलने कानून वापस लेने की मांग के प्रस्ताव पारित किये गये। किसान पंचायत में आनन्द सिंह नेगी, बहादुर सिंह जंगी, राजा बहुगुणा, विद्या रजवार, के के बोरा, उमरदीन, परमजीत सिंह, माया सिंह, हरबीर सिंह, मोहन मटियाली, डाॅ कैलाश पाण्डेय, हरनाम सिंह, बलजीत सिंह, नारायण सिंह, भुवन जोशी,आनंद सिंह सिजवाली, गणेश दत्त पाठक, प्रकाश फुलोरिया, विमला रौथाण, एडवोकेट दुर्गा सिंह मेहता, हेमा रजवार, पुष्कर ऐरी, गिरीश मठपाल, मोहन लाल आर्य, गोविंद जीना, बसंती बिष्ट, हयात राम, पुष्कर दुबड़िया, शाहिद हुसैन, जावेद अंसारी, किशन बघरी, विनोद कुमार, एडवोकेट एस डी जोशी, ललित मटियाली, राजेन्द्र शाह, गोपाल गड़िया, चंदन राम, मोहम्मद इस्लाम, नैन सिंह कोरंगा, स्वरूप सिंह दानू, नारायण नाथ, बिशन दत्त जोशी, गंगा सिंह, त्रिलोक राम, हरीश राम, मदन धामी, प्रवीण दानू, शशि गड़िया, शांति देवी, ममता, ललिता, मानुली देवी, निखिल सिंह, आनंद सिंह दानू, कमलापति जोशी,बचन सिंह, शेर सिंह पपोला, एन डी जोशी, मुरलीधर, खीम सिंह वर्मा, ललित जोशी, रीता धीरज कुमार आदि मुख्य रूप से शामिल रहे।