नहीं रहे गंगोत्री के प्रमुख संत स्वामी सुंदरानंद,सीएम ने दी श्रद्धांजलि
हिमालय की ढाई लाख तस्वीरों का संग्रह सदैव बने रहेंगे प्रेरणास्त्रोत
उत्तरकाशी। गंगोत्री के प्रमुख संत स्वामी सुन्दरानंद ने 95 वर्ष की आयु में बुधावार की रात को शरीर छोड़ दिया है। आज गुरुवार को उनका शरीर गंगोत्री लाया जाएगा तथा उनकी तपोवन कुटिया के पास समाधिा बनायी जाएगी। स्वामी सुन्दरानंद को बीते अक्टूबर माह में कोरोना संक्रमण भी हुआ था। जिससे स्वस्थ होकर अस्पताल से वह अपने परिचित डाॅक्टर अशोक लुथरा के घर चले गए थे। रात को भोजन करने के बाद कुछ देर तक उन्होंने बातचीत की और फिर अपना शरीर छोड़ दिया। गौरतलब है कि हिमालय में अपने सफर के दौरान उन्होंने करीब ढाई लाख तस्वीरों का संग्रह किया है। जिसमें अधिाकांश फोटो गंगोत्री में स्थित उनकी आर्ट गैलरी में प्रदर्शित हैं। वर्ष 2002 में उन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक ‘हिमालय: ए लेंस आॅफ ए साधाु ;एक साधाु के लैंस से हिमालय दर्शनद्ध में प्रकाशित किया। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन प्रधाानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। अब तक इस पुस्तक की साढ़े तीन हजार प्रतियां बिक चुकी हैं। आंधा्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में 1926 में जन्मे स्वामी सुंदरानंद को पहाड़ों के प्रति बचपन से ही आकर्षण था। प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 1947 में वह पहले उत्तरकाशी और यहां से गोमुख होते हुए आठ किलोमीटर दूर तपोवन पहुंचे। कुछ समय तपोवन बाबा के सानिध्य में रहने के बाद उन्होंने संन्यास ले लिया। 1955 में 19,510 फुट की ऊंचाई पर कालिंदी खाल से गुजरने वाले गोमुख-बदरीनाथ पैदल मार्ग से स्वामी सुंदरानंद अपने साथियों के साथ बदरीनाथ की यात्रा पर थे। अचानक बर्फीला तूफान आ गया और अपने सात साथियों के साथ वे किसी तरह बच गया। बस, यहीं से उन्होंने हिमालय के विभिन्न रूपों को कैमरे में उतारने की ठान ली। गंगोत्री हिमालय के हर दर्रे तथा ग्लेशियर एवं गाड़-गदेरों ;बरसाती नालेद्ध से परिचित स्वामी सुंदरानंद वर्ष 1962 के चीनी आक्रमण में भारतीय सेना की बार्डर स्काउट के पथ प्रदर्शक रह चुके हैं। भारत-चीन यु( के दौरान वह सेना के पथ प्रदर्शक भी रहे। एक माह तक साथ रहकर उन्होंने कालिंदी, पुलमसिंधाु, थागला, नीलापाणी, झेलूखाका बार्डर एरिया में सेना का मार्गदर्शन किया। प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गंगोत्री के प्रमुख संत स्वामी सुंदरानंद के निधान पर श्रद्धांजलि संदेश में कहा है कि परम पूज्य स्वामी सुंदरानंद जी के ब्रहमलीन होने पर विनम्र श्रद्धांजलि एवं कोटि-कोटि नमन। स्वामी जी सच्चे मायनों में हिमालय के योगी थे। उन्होंने हिमालय की दिव्यता, पवित्रता और सुंदरता को अपने कैमरे के माध्यम से दुनिया के सामने रखा। उनके द्वारा स्थापित गंगोत्री स्थित तपोवनम हिरण्यगर्भ आर्ट गैलेरी और पुस्तक ;एक साधाु के लैंस से हिमालय दर्शनद्ध विश्व को एक अनुपम देन है। उनका पूरा जीवन हिमालय के लिए समर्पित रहा। वे हम सभी के लिये सदैव प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे। शांति शांति शांति!