पहाड़ के नेताओं का पहाड़ से मोह भंग

विजय बहुगुणा ,हरदा, यशपाल, हरक सहित तमाम नेताओं ने मैदानी क्षेत्र से लड़ा चुनाव

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नरेश जोशी
रुद्रपुर। उत्तराखंड राज्य में पलायन एक बहुत बड़ी समस्या है। यहां के नेताओं ने इसे मुद्दा बनाकर सियासत तो खूब की पर इस मामले पर किसी भी दल की सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। जब भी किसी नेता ने इसे सुलझाने का वादा किया उत्तराखंड की जनता ने उसे सिर आंखों पर बिठाया। चप्पल पहनकर इन पथरीले पहाड़ों की खाक छानने वाले नेता आज जनता के समर्थन से महंगी कारो में तो घूमने लगे लेकिन पलायन नहीं रुका। पलायन आयोग की रिपोर्ट की मानें तो अब तक पहाड़ से हजारों गांव खाली हो चुके हैं और 400 गांव ऐसे हैं जहां पर रहने वालों की संख्या सिर्फ 10 है और नेता पहाड़ से पलायन रोकने का वायदा कर रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों का हाल यह है कि राज्य के ज्यादातर नेता चुनाव जीतने के बाद गांव का रुख तक नहीं करते। यही बड़ा कारण है कि आज पहाड़ी जनता अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रही है। हैरानी की बात यह है कि राज्य आंदोलन के समय पर्वतीय क्षेत्रों के हकों की बात करने वाले ऐसे तमाम बड़े सियासी चेहरे हैं जो पहाड़ की माटी को भूल चुके हैं। चुनाव के दौरान पहाड़ से पलायन को रोकने का दावा करने वाले तमाम नेता आज मैदानी क्षेत्र में आकर अपनी सियासत कर रहे हैं। लोगों का मानना है कि जब पहाड़ के हितों की बात करने वाले नेता स्वयं मैदानी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेंगे तो पहाड़ के हको की बात कौन करेगा? उत्तराखंड की सियासत के इस मामले की सबसे बड़ी मिसाल स्वयं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत है पहाड़ की सियासत और मुद्दों पर बात करने का कोई मौका न चूकने वाले हरीश रावत ने चुनाव लड़ने के लिए ऐसी सीटों को चुना जिनका पहाड़ों से कोई वास्ता नहीं है। वह किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। यही नहीं हरदा लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए भी मैदान में उतर गए थे। हरीश रावत के अलावा तमाम ऐसे बड़े नेता है जिन्होंने अपनी सियासत पहाड़ से शुरू की थी। पर आज मैदानी क्षेत्र में आकर राजनीति कर रहे हैं इनमें सूबे के बड़े दलित चेहरे यशपाल आर्य भी शामिल है। वह दूसरी बार उधम सिंह नगर जनपद की बाजपुर सीट से विधान सभा का चुनाव लड़ चुके हैं। वही गढ़वाल के पौड़ी क्षेत्र से राजनीति करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने भी सितारगंज विधानसभा सीट को चुन लिया। यही नहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने पुत्र सौरभ बहुगुणा की पैरवी कर उन्हें भी सितारगंज विधानसभा सीट से भाजपा से टिकट दिलवा दिया। गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्र के संघर्षों की बात करने वाले दिग्गज नेता हरक सिंह रावत ने भी अब कोटद्वार को अपना सियासी रण बना लिया है। ऐसे में पहाड़ी जनता का मानना है कि उनके हकों की बात करने वाले नेता जब पहाड़ छोड़कर मैदान की सियासत करेंगे तो पहाड़ से पलायन कैसे रुकेगा? बता दें कि उत्तराखंड राज्य को बने हुए 19 वर्ष बीतने जा रहे हैं जिसमें अब तक चार बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। इन विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा कांग्रेस के अलावा उत्तराखंड क्रांति दल ने भी उत्तराखंड में पलायन रोकने की बात की थी। हर चुनाव में पलायन राजनीतिक दलों का बड़ा सियासी मुद्दा रहता है राज्य के हर विधानसभा चुनाव में नेता गैरसैण को स्थाई राजधानी बनाने की बात करते हैं किंतु नतीजा वही ढाक के तीन पात। विदित हो कि जब से उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया है तब से निरंतर पलायन बढ़ता ही जा रहा है। पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के हजारों गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं वही 400 से अधिक गांव ऐसे हैं जहां 10 से भी कम लोग रहते हैं। इस मामले पर जब जनता सवाल खड़ा करती है तो भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे को इसका जिम्मेदार बताते हैं।

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