खोखले सरकारी दावों के बीच बंद हो रही चीनी मिलें

 उत्तराखंड राज्य के 19 साल (पार्ट-1) -चीनी मिलों को बचाने के लिए सरकारी स्तर पर नहीं हुए सार्थक प्रयास -चीनी मिलों में अलग से ईथेनॉल व पावर प्लांट लगाए जा सकते  थे -किसानों की कर्ज माफी की तर्ज पर चीनी के टैक्स में छूट दी जा सकती थी

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नरेश जोशी 

रुद्रपुर । राज्य गठन के 19 साल पूरे होने जा रहे हैं और प्रदेश में गन्ना किसानों  के हालात खराब होते जा रहे हैं। उधम सिंह नगर जनपद जैसे मैदानी क्षेत्र में तीन चीनी मिलें बंद हो चुकी हैं। शेष तीन मिलों पर कभी भी ताले लटक सकते हैं। पर सूबे के इन सियासी दोनों को अपनी इस नाकामी के पीछे कोई कारण नजर नहीं आता। राज्य गठन के बाद सत्ता में बैठे लोगों को अगर इन उद्योगों की चिंता होती तो शायद सितारगंज काशीपुर और गदरपुर की चीनी मिलें बंद नहीं होतीं। वही सरकारी उदासीनता के चलते हालात यह हो चुके हैं कि किच्छा नादेही और बाजपुर की चीनी मिलों पर कभी भी ताले पड़ सकते हैं और सूबे के दोनों ही बड़े राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस  राज्य स्थापना वाले रोज स्वयं अपनी पीठ थपथपा कर खुश हो जाते हैं। बता दें कि उत्तराखंड राज्य का गठन बड़े ही संघर्षों से हुआ है नवगठित उत्तराखंड राज्य से देवभूमि के लोगों को बहुत उम्मीद थी वर्ष 2000 में राज्य गठन होते ही केंद्र सरकार द्वारा उत्तराखंड राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देते हुए विशेष पैकेज भी दिया गया था। विदित हो  कि राज्य गठन के समय उत्तराखंड का नाम उत्तरांचल रखा गया था। तब केंद्र व प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। 2002 में चुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता में आ गई और इसका नाम बदलकर उत्तराखंड रख दिया गया। उत्तराखंड राज्य के गठन को 19 वर्ष पूरे हो चुके हैं इन 19 वर्षों के बीच भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों को सरकार चलाने का बराबर का मौका मिला किंतु चुनाव के दौरान दोनों ही दलों के लोग राज्य की बर्बादी का ठिकारा एक दूसरे के  ऊपर फोड़ते आए हैं। किंतु जमीनी हकीकत यह है कि गन्ना किसानों की भाजपा और कांग्रेस दोनों ही सरकारें दोषी है विकास पुरुष के नाम से पहचाने जाने वाले नेता स्वर्गीय एनडी तिवारी ने उधम सिंह नगर जनपद में छह चीनी मिला लगाई थी। बताया जाता है कि राज्य गठन से पूर्व इन मिलों के हालात इतने खराब नहीं थे जितने खराब राज्य गठन के बाद हो गए। हैरानी की बात यह है कि उद्योग के क्षेत्र में आगे बढ़ने की जगह सरकारे और पीछे चली गई वह तो गनीमत रही कि  एनडी तिवारी जैसे नेता ने मुख्यमंत्री रहते हुए रुद्रपुर में सिडकुल का निर्माण कराकर राज्य के विकास को गति देने का काम किया नहीं तो बेरोजगारी के नाम पर उत्तराखंड राज्य अपनी अलग पहचान बना चुका होता। सरकारी सिस्टम का इससे बुरा हाल और क्या होगा कि किसानों को सीधा लाभ पहुंचाने वाली उधम सिंह नगर जनपद की सितारगंज गदरपुर और काशीपुर की चीने मिले मंदी के चलते बंद हो गई। यही नहीं किच्छा बाजपुर और नादेही की चीनी मिलों पर इतना कर्जा हो गया है कि यह मिले कभी भी बंद हो सकती हैं। सीधे शब्दों में कहें तो राज्य गठन के बाद से तमाम प्रकार के दावे कर रही यह सरकारें एनडी तिवारी द्वारा लगाए गए उद्योगों को बचाने में पूरी तरह नाकाम साबित रही है। बावजूद इसके भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के लोग राज्य के विकास को लेकर तमाम प्रकार के दावे करते हैं। चीनी मिलों के लगातार घाांटे के  कारणों पर सरकार का तर्क रहता है कि सरकार महंगा गन्ना खरीदकर सस्ती चीनी बेचती  है जिस करण आज मिलो की यह दुर्दशा हो गई है। पर सरकार ने कभी अपने खराब सिस्टम का रोना नहीं रोय।ा बता दें कि निकटवर्ती राज्य उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बंद पड़ी चीनी मिलों को पुनः चलाने जा रही है पर उत्तराखंड में और कोई काम नहीं किया जा रहा जो राज्य के लिए चिंता का विषय है।

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