एक ही डॉक्टर के नाम पर चल रही कई पैथोलॉजी लैब
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियोें -कर्मचारियों की मिलीभगत से मानकों की अनदेखी कर जिले में चल रहे कई सेेन्टर
उत्तरांचल दर्पण ब्यूरो
रूद्रपुर। स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के चलते जिले में अवैध रूप से चल रहे कई पैथोलॉजी लैब मरीजों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। नियमानुसार पैथोलॉजी की जांच रिपोर्ट विशेषज्ञ चिकित्सक के हस्ताक्षर के माध्यम से दी जानी चाहिए। लेकिन कई पैथोलॉजी लैबों में चिकित्सक बैठते ही नहीं। ऐसे पैथोलोजी लैबों में चिकित्सक की गैरमौजूदगी में मोहर लगाकर या स्कैन किये हस्ताक्षर से ही रिपोर्ट दे दी जाती है। आलम यह है कि जिला मुख्यालय में ही कई पैथोलॉजी लैब प्रदेश से बाहर के एक चिकित्सक के नाम से चल रहे हैं। यह चिकित्सक बैठता तो उत्तर प्रदेश में है लेकिन उसके तथाकथित हस्ताक्षर या मोहर से पैथोलॉजी जांच रिपोर्ट रूद्रपुर में भी जारी हो जाती है। आधुनिक जीवन शैली में जिस तरह से मरीजों की संख्या बढ़ रही है उसी तरह अब निजी क्लीनिक और पैथोलौजी लैबों की भी बाढ़ आ गयी है। रोज नई नई बिमारियां सामने आने से अब पैथोलॉजी जांच के बाद ही मरीज का ट्रीटमैंट करना चिकित्सकों का नया ट्रैंड हो गया है। अधिकांश चिकित्सक अब पहले मरीज के स्वास्थ्य की पूरी जांच कराने के बाद ही उसका उपचार शुरू करते हैं। चिकित्सकों के इस ट्रैंड का फायदा पैथोलॉजी लैब उठा रहे हैं। यही वजह है कि अब गली मोहल्लों में भी पैथोलॉजी लैब खुलने लगे हैं। चिंता की बात यह है कि कई पैथोलॉजी लैब मानकों को ताक पर रखकर संचालित किये जा रहे हैं। कई पैथोलौजी लैबों में अकुशल स्टाफ से रक्त या अन्य जांचें कराई जा रही है। नियमानुसार हर पैथोलॉजी लैब में एक विशेषज्ञ चिकित्सक होना चाहिए। लैब का पंजीकरण ही विशेषज्ञ चिकित्सक के नाम पर किया जाता है। विशेेषज्ञ चिकित्सक के हस्ताक्षर के बाद ही पैथोलॉजी जांच रिपोेर्ट मरीज को दिये जाने का प्रावधान है लेकिन इस नियम की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है। अधिकांश पैथोलॉजी सेन्टर जिस विशेषज्ञ चिकित्सक के सहारे रजिस्ट्रर्ड है,वह वहां नाम मात्र के लिए भी नहीं बैठते। यही नही एक ही विशेषज्ञ डाक्टर का नाम अलग-अलग तरीके सेे लिख कर पैथोलॉजी सेेन्टरों द्वारा रिपोर्ट दी जा रही है। ऐसा ही चैंकाने वाला मामला उधमसिंहनगर जिलेे मेें सामने आया है। रूद्रपुर और आस पास की अधिकांश पैथोलॉजी लैब एक ऐसे चिकित्सक के सहारे रजिस्टर्ड है जो आस-पास कहीं नही है। उक्त चिकित्सक का नाम कहीं डा- मनीष कुमार तो कहीं डा- मनीष तो कहीं डा- एम-के-वार्ष्णेेय दिखाकर पैथोलॉजी सेेन्टरों द्वारा रिपोर्ट दी जा रही है। बताया जाता है कि उक्त चिकित्सक के नाम से बरेली,हल्द्वानी सहित कई अन्य शहरोें में भी लैब संचालित हो रही हैं। रूद्रपुर और आसपास के क्षेत्रेें में एक ही चिकित्सक के अलग अलग नामोें से पैथोलॉजी लैैब चलने की जानकारी होेने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग की खामोशी आम जनता केे जीवन सेे खिलवाड़ को बढ़ावा दे रही है।
अधिकांश लैबों की रिपोर्ट होती है भिन्न
रूद्रपुर। शहर में कई मामले सामने आ चुके हैं जब रक्त की जांच कराने पर जांच रिपोर्ट अलग अलग आने के कई मामले सामने आ चुके हैं। एक ही दिन किसी मरीज के रक्त की जांच दो अलग-अलग लैबों में कराई जाती है तो दोनों में रिपोर्ट अलग अलग मिलती है। ऐसी स्थिति में मरीज के सामने असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है। इसकी वजह से भी मरीजों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। लोगों के समझ नहीं आ रहा कि आखिर वह किस लैब की रिपोर्ट को सही माने।
बरेली मेें अवैैध पैैैथोलॉजी सेन्टरोें के खिलाफ कार्रवाई की तैेयारी
रूद्रपुर। बरेेेली मेें एक ही डाक्टर के ेनाम पर कई अवैेध पैथोेलॉजी सेेन्टरोें चलाये जाने की खबरों के बाद स्वास्थ्य विभाग ने अपने कार्रवाई शुरू कर दी है। अवैध रूप से चल रही पैथोलॉजी के मामलेे में स्वास्थ्य विभाग की मिलीभगत सामने आयी थी। वहां पर एक पैथोलोजी लैब में डा- मनीष कुमार के नाम से रिपोर्ट दी जा रही थी तो दूसरे में डा- एमके वार्ष्णेय के नाम से। इस मामले में बरेेली केे सीएमओ डा-बीके शुक्ल का कहना है कि पैैथोलॉजी सेन्टरों के खिलाफ जांच कराकर उनका रजिस्ट्रेशन निरस्त किया जायेेगा औेर धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराया जायेगा।
लैब स्वामी और चिकित्सकों के बीच होती है सैटिंग
रूद्रपुर। शहर और आस पास की कई पैथोलॉजी लैब चिकित्सकों के सहारे चल रही है। अधिकांश चिकित्सक मरीज को रक्त या अन्य जांचें करने के लिए मजबूर कर देते हैं। जहां जरूरत न हो वहां भी पैथोलॉजी जांच कराना अब चिकित्सकों की आदत बन गयी है। जिसका आर्थिक दबाव मरीज पर पड़ता है। यही नहीं कई मरीज चिकित्सकों तो अपने किसी खास लैब पर पर जांच कराने पर जोर देते हैं। बकायदा इसके लिए पर्चे पर लिख कर दिया जाता है कि किस लैब से जांच करानी है। कई बार तो चिकित्सक की मनमुताबिक लैब से जांच नहीं होने पर चिकित्सक रिपोर्ट को ही गलत करार दे देते हैं।