इस बार मैदानी क्षेत्र से होगा भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष !
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में मैदानी क्षेत्र से बलराज पासी, अरविंद पाण्डे, राजू भण्डारी, पुष्कर सिंह धामी और विश्वास डाबर का नाम शामिल
उत्तरांचल दर्पण ब्यूरो
देहरादून। प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष का चुनाव शीघ्र ही संभावित है। ऐसे में भाजपा के सामने इस प्रदेश में लंबे समय से चले आ रहे जातीय और क्षेत्रीय संतुलन को साधना एक बड़ी चुनौती है। तमाम सियासी हालात और संतुलन को साधने पर गौर करें तो लग रहा है कि इस बार भाजपा जातीय संतुलन की बजाय क्षेत्रीय संतुलन को बनाने की कोशिश में है। अगर ऐसा होता हो तो प्रदेश अध्यक्ष का पद राज्य के मैदानी हिस्से में जा सकता है। मैदानी क्षेत्र से प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में पूर्व सांसद बलराज पासी, कैबिनेट मंत्री अरविंद पाण्डेय, भाजपा नेता राजू भण्डारी , विधायक पुष्कर सिंह धामी और विश्वास डाबर का नाम सामने आ रहा है। राज्य गठन के बाद से ही दोनों प्रमुख सियासी दलों भाजपा और कांग्रेस के सामने कुमाऊं और गढ़वाल के बीच जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने की चुनौती रही है। सीधा सा फार्मला रहा है कि मुख्यमंत्री अगर गढ़वाल का ब्राह्मण नेता है तो प्रदेश अध्यक्ष कुमाऊं का ठाकुर नेता होगा। इसी तरह अगर विपक्ष का प्रदेश अध्यक्ष गढ़वाल का ठाकुर है तो नेता प्रतिपक्ष कुमाऊं का ब्राह्मण होगा। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल अब तक इसी तरह संतुलन साधते रहे हैं। इस समय सत्ता पक्ष की ओर से मुख्यमंत्री का पद गढ़वाल के ठाकुर नेता के पास है तो प्रदेश अध्यक्ष कुमाऊं के ब्राह्मण नेता के पास है। मुख्यमंत्री बदलने की अभी कोई संभावना नहीं है, ऐसे में भाजपा को प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए कुमाऊं का ब्राह्मण नेता चाहिए। 15 दिसंबर तक नए प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होना है। इस बार भाजपा के लिए नए सिरे से संतुलन साधने की चुनौती है। पहली बात तो इस समय भाजपा के पास कुमाऊं में इस कद का कोई ब्राह्मण नेता नहीं है। फिर भाजपा को इस वत्तफ मैदानी क्षेत्र की उपेक्षा की बात अंदरखाने झेलनी पड़ रही है। इसकी बड़ी वजह यह है कि हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर की मैदानी क्षेत्र की दोनों लोकसभा सीटों पर पर्वतीय मूल के नेता काबिज हैं। फिर राज्यसभा की सभी सीटें भी पर्वतीय लोगों के पास है। मुख्यमंत्री भी पर्वतीय हैं और कैबिनेट में महज एक अरविंदं पांडेय (कुमाऊं) और मदन कौशिक (गढ़वाल) ही मैदानी मूल के हैं। इसके अलावा मैदानी क्षेत्र की जनसंख्या भी पर्वतीय क्षेत्र की तुलना में काफी है। 2026 में प्रस्तावित नए परिसीमन में मैदानी क्षेत्र में विस सीटों की संख्या पांच तक और बढ़ सकती है। सूत्रों का कहना है कि भाजपा का थिंक टैंक इस मुद्दे पर शिद्दत से मंथन कर रहा है कि कहीं ये हालात मैदानी क्षेत्र की उपेक्षा का माहौल न बना दें। बताया जा रहा है कि भाजपा इस बार जातीय संतुलन की बजाए क्षेत्रीय संतुलन पर फोकस कर सकती है। मैदानी मूल के एक नेता ने तो संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों के सामने इस मुद्दे पर बेहद मुखर अंदाज में मैदानी क्षेत्र से ही अध्यक्ष बनाने की पुरजोर पैरवी भी की है। संघ पदाधिकारियों को बताया गया है कि मैदानी मूल के लोग किस तरह से खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं और इस बार प्रदेश अध्यक्ष पद पर मैदान का ही दावा बनता है। ऐसे में मैदानी क्षेत्र से प्रदेश अध्यक्ष बनना लगभग तय माना जा रहा है। हालाकि प्रदेश अध्यक्ष पर वर्तमान अध्यक्ष एवं सांसद अजय भट्ट को पुनः कमान सौंपने की भी संभावनायें जतायी जा रही हैं। लेकिन अजय भट्ट की व्यस्तता को देखते हुए इसकी संभावना कम ही हैं। मैदानी क्षेत्र से प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में जिन नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं उनमें पूर्व सांसद बलराज पासी, शिक्षा मंत्री एवं गदरपुर के विधायक अरविंद पाण्डेय, भाजपा के वरिष्ठ नेता राजू भण्डारी, खटीमा के विधायक पुष्कर सिंह धामी और विश्वास डाबर का नाम शामिल हैं। बलराज पासी 1991 के लोस चुनाव में कांग्रेसी दिग्गज एनडी तिवारी को पराजित कर चुके हैं। प्रखर वत्तफा हैं और विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल से जुडे रहे। राम जन्मभूमि आंदोलन में हिस्सा लिया। जेल भी गए हैं। 1991 के बाद से भाजपा ने इन्हें दावेदारी के बाद भी किसी भी चुनाव में टिकट नहीं दिया। इस बार लोकसभा चुनाव में टिकट के लिए उनकी मजबूत दावेदारी थी, उन्हें टिकट मिलना तय माना जा रहा था लेकिन खुद प्रदेश अध्यक्ष की इस सीट पर दावेदारी होने के चलते बलराज पासी को कदम पीछे खींचने पड़े। इससे पहले जब इस सीट से भगत सिंह कोश्यारी सांसद चुने गये थे तब भी टिकट के लिए बलराज पासी मजबूत दावेदार थे। लेकिन उस समय भी पासी को निराश होना पड़ा था। अब माना जा रहा है कि पार्टी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है। वहीं मैदानी क्षेत्र से शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डे को भी प्रदेश अध्यक्ष का दावेदार माना जा रहहा है। अरविंद पांडेय वर्तमान में शिक्षा और खेल मंत्री हैं और शुरुआती दौर से ही संघ पृष्ठभूमि के रहे हैं। राज्य के मैदानी क्षेत्र में खासी पकड़ रही है। राष्ट्रीय सह महामंत्री संगठन शिवप्रकाश के नजदीकी भी हैं। अरविंद पाण्डे कार्यकर्ताओं में गहरी पैठ रखते हैं। ऐसे में पार्टी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद का दायित्व सौंप सकती है। वहीं खटीमा निवासी राजू भण्डारी भी प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से उनके गहरे ताल्लुकात माने जाते हैं। हिंदू जागरण मंच और भाजपा के कई बड़े पदों पर भी आसीन रह चुके हैं। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल विश्वास डाबर का संघ से गहरा रिश्ता रहा है। इनका पूरा परिवार आरएसएस से जुड़ा है। भाजपा के प्रदेश प्रवत्तफा भी रहे हैं। अटलजी समेत भाजपा और संघ के प्रमुख पदाधिकारियों का इनका परिवार खासा नजदीकी रहा है। वहीं खटीमा के विधायक पुष्कर सिंह धामी का नाम भी प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल है। धामी भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं और पूर्व सीएम एवं महाराष्ट्र के वर्तमान राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के बेहद करीबी हैं।पिछले दिनों पुष्कर सिंह धामी का नाम कैबिनेट मंत्री पद की दौड़ में भी शामिल रहा है। धामी की कार्यकर्ताओं में अच्छी पकड़ मानी जाती है। ऐसे में पार्टी उन्हें भी प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान सौंप सकती है।
30 दिसंबर तक होगी प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा
देहरादून। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव अब 30 दिसंबर तक होगा। चार जिलाध्यक्षों की घोषणा में विलंब के साथ ही अन्य संतुलन साधने की कवायद को इसकी वजह माना जा रहा है। पहले प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव को 15 दिसंबर तक की तिथि तय की गई थी। अब अध्यक्ष के नाम पर सहमति बनाने के मद्देनजर पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षक वरिष्ठ नेता शिवराज सिंह चैहान 20 दिसंबर को दून में रायशुमारी कर सकते हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार इन सब परिस्थितियों को देखते हुए प्रदेश को 30 दिसंबर तक ही नया अध्यक्ष मिल पाएगा। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए अभी तक तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं हो पाई है। यह भी अध्यक्ष पद का चुनाव पीछे खिसकाए जाने की वजह मानी जा रही है। असल में प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए पार्टी को क्षेत्रीय और जातीय संतुलन साधना है। सूत्रों के मुताबिक यह तय है कि अध्यक्ष कुमाऊं मंडल से ही बनेगा।
चार जिलों में अभी भी फंसा है पेंच
देहरादून। सांगठनिक चुनाव के तहत मंडल अध्यक्षों की घोषणा के बाद अब भाजपा ने 14 सांगठनिक जिलों में से 10 के जिलाध्यक्षों की घोषणा कर दी। अलबत्ता, चार जिलों के अध्यक्षों को लेकर अभी पेच फंसा हुआ है। हालांकि, प्रदेश भाजपा नेतृत्व का कहना है कि शेष चार जिलाध्यक्षों के निर्वाचन की घोषणा जल्द कर दी जाएगी। भाजपा में जिलाध्यक्षों के चुनाव के लिए पार्टी नेतृत्व ने चार से सात दिसंबर तक सभी जिलों में रायशुमारी की। आठ दिसंबर को जिलाध्यक्षों की घोषणा की जानी थी, लेकिन कई जिलों में सहमति न बनने के कारण ऐसा नहीं हो सका था। हालांकि, इस विलंब को प्रदेश अध्यक्ष को लेकर हर स्तर पर चल रही लाबिंग और जोड़-तोड़ से भी जोड़कर देखा गया। इस बीच प्रदेश चुनाव अधिकारी बलवंत सिंह भौंर्याल ने 10 जिलाध्यक्षों की घोषणा कर दी। इनमें रघुवीर सिंह (चमोली), दिनेश उनियाल (रुपद्रयाग), विनोद रतूड़ी (टिहरी), शमशेर सिंह पुंडीर (देहरादून जिला), संपत सिंह रावत (पौड़ी), वीरेंद्र वल्दिया (पिथौरागढ़), शिव सिंह बिष्ट (बागेश्वर), रवि रौतेला (अल्मोड़ा), दीपचंद्र पाठक (चंपावत) व प्रदीप बिष्ट (नैनीताल) शामिल हैं। चार जिलों देहरादून महानगर, उत्तरकाशी, ऊधमसिहनगर व हरिद्वार के जिलाध्यक्षों की घोषणा नहीं की गई है। बताया जा रहा कि इन जिलों में अध्यक्ष पद पर सर्वानुमति के लिए कसरत चल रही है। हालांकि, भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी डाॅ.देवेंद्र भसीन ने कहा कि इन जिलों के जिलाध्यक्षों की घोषणा जल्द कर दी जाएगी।