स्टिंग की फांस: वायरल आॅडियो स्टिंग में ओपी का नाम !! बैकफुट पर भाजपा
बेआवाज हथौडा: तो कुदरत ने ले लिया हरीश का बदला,भाजपा के स्टिंग मास्टर पत्रकार की गिरफ्तारी पर कांग्रेस की जुगलबंदी से सरकार असहज
देहरादून।स्टिंग किंग उमेश कुमार और आयुष गौढ़ का आडियो वारल होने से उत्तराखंड शासन में हड़कंप मचा हुआ हैं। सचिवालय में अपर मुख्य सचिव पद पर तैनात ओपी यानी ओमप्रकाश को तथाकथित स्टिंग में फंसाने का आॅडिया सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा हैं इसमें उमेश और स्टिंगर आयुष के बीच लंबी वार्ता चल रही है। जिसमें प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का भी नाम लिया जा रहा है। इतना ही नहीं ओपी को हर हाल में फंसाने के लिये लाखों के लेन की बात भी इस आॅडियों में रिकार्ड है जिससे इस बात की आशंका भी प्रबल हो गई कि अगर ओपी का स्ंिटग हो चुका है तो फिर इस डील में और किन किन लागों को शामिल किया गया है। वहीं पूर्व में भी सरकार के दो बड़े नताओं को फंसाने की की बात भी सामने आयी। जबकि मुख्यमंत्री को फंसाने के लिये उनके करीबियों के साथ ही ओपी के साथ ही एक निलंबित अफसर का भी स्टिंग किया जा चुका है। उल्लेखनीय है कि हरीश की हार में सबसे अहम किरदार निभाने वाले स्टिंग किंग और भाजपा का मास्टर मैन उमेश कुमार आज जेल की सलाखों के पीछे बंद है। यह कुदरत का ही करिश्मा कहा जायेगा कि पत्रकारिता जैसेे पवित्र पेशे की आड़ लेकर देवभूमि में भ्रष्टचार की बुनियाद खोदने वाले उमेश का अब अपने पाप और पुण्य का हिसाब देना ही पड़ेगा। इतना ही नहीं उमेश कुमार ने स्टिंग के जाल में पहले भी बहुत बड़ी खुरापात मचायी हैं। वर्ष 2016 में उत्तराखंड में लगाया गया अल्पकालीन आपातकाल को कौन भुला सकता है। तत्कालीन हरीश रावत सरकार में नेताओं की बगावत के बाद उमेश कुमार ने अपना षडयंत्र सिर्फ इसलिये किया था क्योंकि उसके निजी स्वार्थ सिद्ध हो सके न कि भ्रष्टाचार का खुलासा। यह सर्वविदित है कि उमेश कुमार के बुलावे पर ही हरीश रावत अपनी सरकार बचाने के लिये उसके पास चले गये थे। लेकिन स्टिंग के दौरान उमेश के खुल्लम खुल्ला पैसों की डिमांड करने से ही वह खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा था। इसके बावजूद वह अपने मकशद में तो कामयाब हो गया मगर अब कुदरत की बेआवाज चोट से उमेश बेहाल है। हरीश तब तो अपनी साखबचाने में कामयाब हो गये मगर विस चुनाव में करारी हार वह भी दो दो सीटों से हुई जिसका गम हरदा के साथ ही उनके समर्थकों को आज भी सात रहा है। हरदा समर्थकों ने भी उमेश की गिरफ्तारी पर सरकार की सराहना तो की है साथ ही इस कार्यवाही को हरदा के खिलाफ उमेश की साजिश का कुदरती बदला बता रहे है। जबकि उमेश द्वारा जब भाजपा के ही नेताओं का स्टिग किया गया तो उन्हें गुप्त रखने पर विपक्ष के सवालों में घिरी भाजपा पूरी तरह से बैकफुट पर आ गई है। इतना ही नहीं कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले भाजपा के अधिकांश दिग्गज नेता तब खुली आवाज में उमेश की पैरवी करते रहे। इतना ही नहीं भाजपा नेता अजय भट्ट के कहने पर ही पूर्ववर्ती विजय बहुगुणा की सरकार में उमेश के खिलाफ दर्ज कई मुकदमे वापिस भी हो गये। अब भले ही भाजपा के नेता स्टिंग किंग के जाल में फंसने के बाद दबी जुबान में उसे षडयंत्रकारी बता कर सभी स्टिंगों का खुलासा जल्द से जल्द करने की बात कहती नहीं थक रही हो मगर फिर भी उमेश की साजिशों में फंसने वाले पूर्व सीएम हरीश रावत के समर्थक भाजपा के इस दावे को महज जुमला बताकर सवाल उठाने में जुट गये है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने भी भाजपा सरकार से इस मुद्दे को लेकर पारदर्शिता दिखाने की मांग कर दी है। हांलाकि भ्रष्टचार के जाल में फंसने वाले या फिर जिन अफसरों और मुख्यमंत्रियों के करीबियों का स्टिंग होने की बात सामने आयी है उस पर त्रिवेंद्र सरकार अब तक खामोश है। स्टिंग किंग की साजिश में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह को भी ठीक उसी प्रकार शिकंजे में लेने की तैयारी चल रही थी जिस प्रकार पूर्व में हरीश रावत को उमेश ने खुद अपना शिकार बनाया था। इस बार भी उमेश के स्टिंगर यानि इस पूरे मामले का खुलासा करने वाले आयुष गौड़ ने स्व्यं यह बात स्वीकार की है कि उसे सिर्फ मुख्यमंत्री को शिकार बनाने के लिये मोहरा बनाया गया था। बहरहाल भाजपा नेताओं के स्टिंग मास्टर की गिरफ्तारी के बाद त्रिवेंद्र सरकार भी सवालों के घेरे में आ गयी हैं। विपक्षी हावी हो गये हैं, क्योंकि अब तक इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री ने चुप्पी साधे हुई है जबकि कार्यवाही के नाम पर सिर्फ उमेश की गिरफ्तारी कर भाजपा खुद को पाक साफ साबित करने में जुट हुई है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के अनुसार ब्लैकमेलिंग करने वाले चैनल के सीईओ की गिरफ्तारी से अपने गाल न बजाये, बल्कि उसके द्वारा कराये गये स्टिंग के फुटेज को जनता के सामने लाये। आखिर क्या कारण है कि सीएम आवास व कार्यालय की इतनी किलेबंदी की जा रही है। उन्होंने इस बात पर भी सवाल उठाये कि स्टिंग करने वाले चैनल मालिक ने जब हरीश रावत का स्टिंग किया था तो भाजपा ने उसे देशभक्त कहकर केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों की सुरक्षा भी दे दी थी, लेकिन आज उसे ही गिरफ्तार कर लिया। आखिर ऐसा क्या हो गया है, उसे जनता के सामने लाना चाहिए। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक समय भाजपा के बहुत निकट रहे उमेश शर्मा आज सलाखों के पीछे हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सरकार कांग्रेस की रही हो या भाजपा की, इक्का-दुक्का बार छोड़ कर उमेश शर्मा सरकार के करीबी ही रहे। वैसे कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के साथ उमेश शर्मा की गलबहियों की कहानी बहुत लंबी है। यह बात और है कि जिस उमेश जे कुमार के पीछे एक समय प्रदेश की भाजपा यानी निशंक सरकार पड़ी थी। वहीं खंडूड़ी सरकार के कार्यकाल में सचिवालय में उमेश शर्मा नमूदार हो गए थे। 8 अगस्त 2012 को तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष और मौजूदा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट कांग्रेस सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को पत्र लिखकर कहा था कि उन पर प्रशासन की ओर से दर्ज मुकदमों को वापस ले लिया जाए। यही नहीं विजय बहुगुणा सरकार ने मुकदमे वापस भी ले लिए थे। भाजपा से उनकी यह करीबी तब और बढ़ी, जब बगावत के कारण कांग्रेस की हरीश रावत सरकार संकट में थी और संकट दूर करने के लिए उमेश शर्मा से मिलने जॉलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंचे हरीश रावत भी उमेश शर्मा के स्टिंग की गिरफ्त में आ गए। बाद में इस मामले में कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट का स्टिंग भी सामने आया। इन स्टिंग को आधार बनाकर केंद्र ने हरीश रावत की सरकार को बर्खास्त कर दिया। इसी दौरान भाजपा के कई केंद्रीय नेताओं के भी उमेश शर्मा करीब हो गए। माना जा रहा था कि 2017 के चुनाव में उमेश शर्मा भाजपा सरकार बनने के बाद अपने मकसद के प्रति आास्त थे, लेकिन त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री बनने से उनके सपनों पर तुषारापात हो गया और यही दोबारा प्रदेश के मंत्रियों व अफसरों के दोबारा स्ंिटग करने की वजह बना। उनकी सत्ता से करीबी की मिसाल तो यह भी है कि उमेश शर्मा के बेटे की बर्थ डे पार्टी में सरकार के तमाम बड़े दिग्गज व यहां तक कि कई आला अफसर भी शामिल हुए थे।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा उमेश और आयुष का ऑडियो
देहरादून। सोशल मीडिया पर उमेश कुमार और आयुष गौड़ का कथित ऑडियो भी वायरल हो रहा है। जिसमें शासन के वरिष्ठ अफसर ओमप्रकाश या ओपी के स्टिंग को लेकर वार्ता चल रही है। हांलाकि इस वार्ता के बाद ओपी का स्टिंग हुआ है या नहीं यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा मगर उमेश की गिरफ्तारी के बाद अचानक सोशल मीडिया में वायरत हो रहे इस आॅडियो से सियासी भूचाल भी मच सकत है। इस ऑडियो में उमेश कुमार अपने जर्नलिस्ट आयुष को समझा रहे हैं कि स्टिंग कैसे किया जाना है। यदि सीएम से मुलाकात न हो सके तो सचिव से बात कर उसे ही फंसाने की तैयारी की जाए। केवल सचिव को रुपये थमा कर इतना बुलवाना है कि सीएम से बात हो चुकी है। तीन माह से चल रही गुपचुप कार्यवाही के बाद उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश पुलिस की संयुक्त कार्यवाही में उमेश कुमार को उनके गाजियाबाद स्थित आवास से गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के दौरान उनके आवास से 40 लाख की नकदी, 16 हजार से ज्यादा के अमेरिकी डालर, 11 हजार से ज्यादा थाई मुद्रा, फोन, हार्ड डिस्क, आईपैड व लैपटॉप आदि बरामद हुआ था। शिकायत में आयुष गौड़ ने सीईओ उमेश जे कुमार और चैनल के एक अन्य रिपोर्टर राहुल भाटिया के साथ ही अन्य चर्चित हस्तियों को भी नामजद किया था। पुलिस को आयुष ने बताया कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश समेत कई लोगों का स्टिंग करवाने की कोशिश की जा रही थी। उसने बताया कि उमेश शर्मा, सौरभ साहनी, प्रवीण साहनी, मृत्युंजय मिश्रा, राहुल भाटिया और कुछ सरकारी कर्मचारी और नेता साजिश कर प्रदेश की राजनीति में अस्थिरता का माहौल पैदा करना चाहते थे। आरोपित सीईओ उमेश कुमार की गिरफ्तारी के बाद सोमवार को उन्हें कोर्ट में पेश कर पुलिस ने रिमांड मांगी थी। जिस पर अदालत ने सात घंटे की पीसीआर मंजूर की है।
लैपटाॅप का पार्सवड,खुफिया जैकेट हासिल करेगी पुलिस, पास्पोर्ट जब्त
देहरादून। स्टिंग किंग उमेश कुमार की सात घंटे की मिली पीसीआर में पुलिस टीम उनके इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स हासिल करने के साथ उनके लैपटॉप के पार्सवड हासिल करने के लिए मशक्कत करेगी।वहीं सूत्रों के मुताबिक उमेश को जमानत मिलने की दशा में पुलिस ने उसके विदेश भागने की आशंका पर भी अपनी तैयारी कर दी है। बताया जा रहा है कि उमेश को सिद्धोवाला जेल में रखा गया है। जबकि उसका पास्पोर्ट भी जब्त किया गया है। बृहस्पतिवार सुबह दस बजे से शाम पांच बजे के बीच की रिमांड अवधि में पुलिस को समाचार प्लस चैनल के सीईओ और मालिक उमेश कुमार के गाजियाबाद स्थित निवास जाने का समय भी शामिल है। ऐसे में माना जा रहा है कि सात घंटे की रिमांड अवधि पुलिस के लिए कम पड़ सकती है। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि पुलिस आरोपित उमेश कुमार की दोबारा पुलिस कस्टडी रिमांड की मांग अदालत से कर सकती है। उमेश कुमार की रिमांड हासिल करने के लिए अभियोजन की ओर से अधिवक्ता अल्पना थापा और उनके सहयोगी अधिवक्ताओं यशपाल पुण्डीर, आरएस राघव औरएसके धर ने प्रभावी तर्क दिए। आरोपित की पांच दिन की रिमांड मांगते हुए उन्होंने कहा कि राजनीतिक शख्सियतों और शासन के अधिकारियों का स्टिंग करने के लिए इस्तेमाल किए गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों (मोबाइल फोन, खुफिया कैमरे, टी-शर्ट बटन और कैमरायुक्त पैन आदि) आरोपित से बरामद किये जाने हैं।
कहीं खुशी तो कहीं खामोशी,उठने लगे सियासी सवाल
देहरादून। गौरतलब है कि भाजपा की निशंक सरकार के जमाने में प्रशासन की ओर से उमेश जे कुमार के विरुद्ध तमाम तरह के मुकदमे ठोके गए थे। यहां तक कि तब उनके खिलाफ पुलिस ने लुक आउट नोटिस भी जारी किया था और प्रदेश की पुलिस ने उनकी गिरफ्तारी के दिल्ली नोएडा में छापे मारे थे। उमेश जे कुमार उस वक्त भूमिगत हो गए थे। उनकी संपत्ति की कुर्की की कोशिश भी की गई। हालांकि तब के नेता प्रतिपक्ष डॉ. हरक सिंह रावत खुल कर उमेश जे. कुमार के पक्ष में खड़े हो गए थे और उन्होंने बाद में जब भाजपा के आला नेतृत्व ने विधानसभा चुनाव की रणनीति के चलते निशंक को हटाकर पूर्व मुख्यमंत्री खंडूड़ी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी तो मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। सूत्रों की मानें तो प्रदेश पुलिस से बचने के लिए भूमिगत रहने के दौरान उमेश जे कुमार भाजपा के ही एक बड़े दिग्गज नेता के घर रह रहे थे। यही वजह थी प्रशासन उन्हें गिरफ्तार करने से हिचकता रहा और नाकाम रहा। बाद में मुख्यमंत्री बदल जाने के बाद उमेश जे कुमार सचिवालय और चतुर्थ तल में खुले आम घूमते पाए गए लेकिन पुलिस ने उन पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं की। तब जब तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष से पूछा गया कि उनके पत्र से क्या यह साबित नहीं होता कि तब उनकी पार्टी की सरकार ही गलत थी तो उन्होंने कहा कि उमेश जे कुमार पर सरकार ने मुकदमे दर्ज नहीं किए थे, बल्कि प्रशासन ने मुकदमे दर्ज किए थे। उमेश जे. कुमार को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था। उनका कहना था कि दुर्भावना या अन्य राजनीतिक कारणों से पुलिस- प्रशासन राजनीतिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर झूठे मुकदमे दर्ज करता रहता है। किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध दुर्भावना से मुकदमे दर्ज नहीं होने चाहिए।
पत्रकारिता हो रही शर्मसार,इलेक्ट्रानिक मीडिया संकट में
देहरादून। प्रदेश में आये दिन रंगदारी और भ्रष्ट्राचार के मामले सामने आ रहे है। लेकिन राज्य की अर्थव्यवस्था पर चोट पहुंचाने वाले लोगों का पर्दाफाश करना भी अब मुश्किल होता दिख रहा है। गौर हो किचैनल के सीईओ द्वारा मंत्रियों व अफसरों के स्टिंग का सनसनीखेज प्रकरण सामने आने के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो गये हैं। हांलाकि उमेश इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुडा रहा है जबकि स्टिंग की साजिश रचने के आरोप में वह अब पूरी तरह से फंस चुके है। उमेश भले ही अपने पेशे की आड़ में यह सब करता रहा हो मगर स्टिंग करना भी किसी ऐरे गैरे की बस की बात नहीं है। अगर उमेश ने ईमानदारी से भी स्टिग का खुलासा किया होता शायद आज सरकार उसे जेल में नहीं बल्कि वह खुद जनता की आंखो का तारा बना होता। बहरहाल ईमानदारी तो उमेश के पेशे में नहीं देखी जा सकती है मगर उसकी गिरफ्तारी के बाद इलेक्ट्रानिक मीडिया के साथ प्रदेश के हर प्रत्रकार के लिये मुश्किलें खड़ी हो गई है। स्टिंग कांड की साजिशों का पर्दाफास होने के बाद सरकार और नेता मीडिया से दूरी बनाने लगे है। मीडिया जगत इस मामले से आहत है जबकि भविष्य में इस प्रकार के भ्रष्टाचार के मामले सबके सामने कैसे लाये जायेगे यह भी बड़ा सवाल बन चुका है। मुख्यमंत्री आवास से लेकर तमाम सरकारी कार्यालयों में पत्रकारों को अपने सूत्र बनाने में दिक्कत आ सकती है। जबकि सबसे अहम तो यह है कि पत्रकारों के समक्ष अब अपने सोर्स के सामने विश्वसनीयता बनाये रखने की चुनौती भी खड़ी हो गयी है। मीडिया का काम पूरी तरह भरोसे पर आधारित रता हैै। जबकि सिस्टम में होने वाली गड़बड़ियों को अंदर के लोग ही मीडिया को इस भरोसे के साथ देते हैं कि वे इसे सामने लाएंगे तो गड़बड़ियां दूर होंगी। यही वो भरोसा है, जिसके चलते मंत्री, विधायक, सांसद व अफसर मीडिया के लोगों के साथ जहां सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी लेना भी मुश्किल हो जायेगा। बहरहाल अब स्टिंग कांड का पूरा खुलासा होना बाकी है। देखना होगा कि सरकार अब अपनी निगरानी करने वालों से कितनी दूरी बनाती है या फिर साजिशकर्ताओं पर ही कार्यवाही कर पत्रकारिता को निष्पक्ष बनाने में लोकतंत्र के इस चैथे स्तंभ को मजबूती प्रदान करने में सहयोग करती है।