अच्छा चलते हैं.. दुवाओं में याद रखना..!

18 अक्टूबर 1925....18 अक्टूबर 2018 ----भुला नहीं पायेंगे तुमको तिवारी

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अच्छा चलते हैं.. दुवाओं में याद रखना…यह वाक्य देवभूमि उत्तराखंड की धरती में जन्मे हिंदुस्तान के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश  के विकास पुरूष व देश की सियासत के सितारे पंडित नारायण दत्त तिवारी जी के जो आज ‘अपनों से मीलों दूर दिल्ली के एक निजी अस्पताल में’उपचार करवा रहे थे दुनिया से विदा होते वक्त उनके मन से जरूर निकले होंगे! उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों में मौजूद उनके कई समर्थक व शुभचिंतक भले ही  उनकी आत्मा की शांति के लिये ईश्वर से प्राथना कर रहे हैं। कई ऐसे भी हैं जो दूर से ही मगर सही उनके करीब जाकर आंसू नहीं बहा सकते!
देहरादून। एनडी तिवारी चल बसे..!  18 अक्टूबर 1925….18 अक्टूबर 2018 –यकीन ही नहीं हो रहा है अभी अभी तो सोशल मडिया पर पंडित तिवारी को सभी लोग जन्मदिन की शुभकनाओं के साथ उनकी  दीर्घायु की कामनायें की जा रही थी, फिर चंद पलों में ऐसी मनहूश खबर (एनडी का निधन ) पर संवेदनायें देने की सूचनायें आने लगी। जिससे समूचे उत्तराखंड में शोक की लहर छा गई है। आज देश ने एक महान नेता खो दिया है। पढ़िये…देवभूमि में विकास पुरूष के नाम से जाने जाने वाले हर दिल अजीज सख्श की कुछ पुरानी यादों और वर्तमान वाकयों से अवगत करा रहे है। भारत के राजनीतिक और सियासी इतिहास में शायद ही कोई ऐसा शख्स  होगा जो पंडित एनडी तिवारी के राजनैतिक सफर की बराबरी कर पायेगा। स्वतंत्रता आंदोलन के बाद जनप्रतिनिधि बनकर दौड़ भाग भरी जिंदगी जीने वाले लगभग 93 वर्षीय  वयोवृ़द्ध नेता पंडित एनडी तिवारी का जन्म 1925 में नैनीताल जिले के बलूती गांव में हुआ था। बचपन से ही पढ़ाई और समाजिक सेवा के क्षेत्र में बढ़चढ़कर भागीदारी करने वाले तिवारी छोटी से उम्र में ही लोगों के नेता बन गये। तिवारी के राजनैतिक कैरियर की शुरूआत शीर्ष राजनैतिक पदों पदों से हुई। उच्च पदों पर आसीन रहने के दौरान वह देश के कोने कोने में विकास के पत्थर गाढ़ते रहे। पंडित एनडी तिवारी की राजनीतिक सक्रियता और लोकप्रियता काफी पुरानी बतायी जाती है। पंडित तिवारी की पत्नी सुशीला तिवारी का निधन कैंसर जैसी घातक बीमारी के कारण हुआ था। पत्नी की मृत्यु के बाद वह कई दिनों तक चिंतित रहते थे। लेकिन इस चिंतन के साथ वह आगे बढ़े और दुखभरे जीवन के कारणों को दूर करने के प्रयास शुरू किये। उन्हेंने पत्नी की याद में एसटीएच जो कुमायूं क्षेत्र का एकमात्र आधुनिक स्वास्थ्य उपकरों से सुव्यवस्थिति चिकित्सालय है का निर्माण करवाया। यह आज भी प्रदेश के लाखों लोगों को चिकित्सा सुधार के लिये सेवा दे रहा है। तिवारी के पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के आह्वान पर पूर्णानंद ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। अपने पिता की तरह ही वे भी आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। 1942 में वह ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ नारे वाले पोस्टर और पंपलेट छापने और उसमें सहयोग के आरोप में पकड़े गए। उन्हें गिरफ्तार कर नैनीताल जेल में डाल दिया गया। इस जेल में उनके पिता पूर्णानंद तिवारी पहले से ही बंद थे। 15 महीने की जेल काटने के बाद वह 1944 में आजाद हो गये। बाद में तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने राजनीतिशास्त्र में एमए किया। 1 947 में आजादी के साल ही वह इस विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। यह उनके सियासी जीवन की पहली सीढ़ी थी। आजादी के बाद 1950 में उत्तर प्रदेश के गठन और 1951-52 में प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में तिवारी ने नैनीताल (उत्तर) सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा लिया। कांग्रेस की हवा के बावजूद वे चुनाव जीत गए और पहली विधानसभा के सदस्य के तौर पर सदन में पहुंच गए। यह बेहद दिलचस्प है कि बाद के दिनों में कांग्रेस की सियासत करने वाले तिवारी की शुरुआत सोशलिस्ट पार्टी से हुई। कांग्रेस के साथ तिवारी का रिश्ता 1963 से शुरू हुआ। 1965 में वह कांग्रेस के टिकट पर काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और पहली बार मंत्रिपरिषद में उन्हें जगह मिली। कांग्रेस के साथ उनकी पारी कई साल चली। 1968 में जवाहरलाल नेहरू युवा केंद्र की स्थापना के पीछे उनका बड़ा योगदान था। 1969 से 1971 तक वे कांग्रेस की युवा संगठन के अध्यक्ष रहे। एक जनवरी 1976 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद वे उत्तरांचल के भी मुख्यमंत्री बने। केंद्रीय मंत्री के रूप में भी उन्हें याद किया जाता है। 1990 में एक वक्त ऐसा भी था जब राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी दावेदारी की चर्चा भी हुई। पर आखिरकार कांग्रेस के भीतर पीवी नरसिंह राव के नाम पर मुहर लग गई। आज वह करीब 93 वर्ष पूरे चुके चुके हैं  और जिंगदी के इस अंतिम पड़ाव में पहुंचकर भी वह अपनी गुजरी जिंगगानी को भुला नहीं पाये होंगे। लिहाजा राजनीतिक जीवन के इतने वर्षों में तो कई दौर उतार चढ़ाव भरे रहे। बढ़ती उम्र के बावजूद तत्कालीन मनमोहन सरकार में उन्हें ‘एनडी तिवारी’ को जब आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया तो उनके विरोधी सक्रिय हो गये। यही वह दौर था जब देश की सियासत का सितारा बन चुके तिवारी पर गंदा दाग लगा दिया गया। फिर क्या था आधुनिकता के इस रंगीन युग में विरोधी  तिवारी को बदनाम करने की कोशिश में जुटे गये। आरोपों और आलोचनाओं से बुरी तरह से घिरे पंडित एनडी तिवारी को राज्यपाल पद से तब इस्तीफा देना पड़ा जब एक महिला और एक युवक मीडिया के साथ ही कोर्ट में यह कहते सुने गये कि वह कानूनी रूप से तिवारी के परिवार का हिस्सा बनना चाहते हैं। इसके बाद मीडिया और सार्वजनिक मंचों से तिवारी की बुराईयों को उछालने दौर शुरू हो गया। आज पंडित तिवारी अपने उसी परिवार यानी ‘पत्नी उज्जवला व पुत्र रोहित शेखर’ के साथ दिल्ली के एक निजी अस्पताल में अपनी जिंदगी की अंतिम सांसे गिनते हुए संसार से विदा हो गये। समय गुजरने के साथ जब सच्चायी का सबको अहसास हुआ तो आज उनके विरोधी गुमसुम से हो गये है। माना जाता है कि तिवारी को बेगानों ने अपना तो लिया है लेकिन इसके बाद अब उनके अपने बेगाने से लग रहे हैं। वयोवृद्ध नेता नारायण दत्त तिवारी  88 वर्ष की उम्र में 70 वर्षीया उज्ज्वला शर्मा के साथ पहाड़ी रीति रिवाज से हल्द्वानी में शादी संपन्न हुई। उज्ज्वला और तिवारी ने मीडिया के समक्ष इस नए रिश्ते का इजहार किया, साथ ही शादी से संबंधित तस्वीरें सार्वजनिक कीं। दोनों ने अपनी नई पारी की शुरुआत के लिए शुभकामनाओं की अपेक्षा के साथ खुशी जाहिर की। छह साल अदालत में चले पितृत्व विवाद के बाद उज्ज्वला के पुत्र रोहित शेखर को अपना बेटा मान चुके एनडी ने उज्ज्वला को भी बतौर पत्नी स्वीकार कर लिया। पंडित तिवारी का गृहक्षेत्र उत्तराखंड है इसलिये सबसे अधिक संख्या में उनके समर्थक यहां  मौजूद हैं। आज जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे तिवारी से उत्तराखंड के साथ ही उत्तर प्रदेश के कुछ गिने चुने पहुंच वाले नेता उनसे हमदर्दी दिखाने का प्रयास कर रहे हों मगर यह भी सच है कि आज तिवारी के जितने चाहने वाले पूरे देश में मौजूद हैं वह किसी न किसी वजह से तिवारी के करीब आने से झिजक रहे हैं।  कुछ ऐसे लोग है जो राजनीति से जुडे है  जबकि कुछ आम लोग भी है जो तिवारी के बेहद करीबी है। बताया जाता है कि रोहित शेखर चुनिंदा लोगों को ही उनके साथ देखना चाहते हैं इसके पीछे किसी की बड़ी साजिश हो सकती है। विभिन्न दलों से जुड़े तिवारी के शुभचिंतकों की माने तो वह अफवाहों की परवाह नहीं करते और उन्हें जिंदगी के अंतिम पलों में करीब से देखना चाहते हैं। गौर हो कि भारत सरकार के कई बढ़े मंत्रालयों समेत उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में दशकों तक मुख्यमंत्री के रूप में जनसेवा कर चुके इस वयोवृद्ध नेता की कुशलक्षेम पूछने वालों में कुछ चुनिंदा लोग ही दिखायी दिये हैं जिससे उनने समर्थकों में मन में उदासी छायी हुई है। तिवारी के करीबी रहे एक वरिष्ठ समर्थक तो यहां तक मानते हैं निजी विवादों से घिरे तिवारी आज भी खुली जिंदगी जीना चाहते थे वह हमेशा यह कहते रहे कि रोहित ही उनका उत्तराधिकारी बनेगा मगर रोहित अपने बल पर किसी बड़ी रणनीति को अंजाम तक पहुंचाना चाहते हैं। तिवारी अब भले ही सबको अलविदा कह गये हैं लेकिन रोहित को भी यह समझना होगा कि उनके चाहने वालों को साथ लेकर ही तिवारी के जैसे राजनैतिक अध्याय का ज्ञान हासिल करने के लिये उन्हें भविष्य में  पुराने समर्थकों का साथ मिलना भी जरूरी होगा। बहरहाल रोहित भले ही यह सब कुछ भुलाकर पिता की सेवा में लगे रहे वहीं तिवारी की यादों को जीवित रखने वाले उन हजारों समर्थकों से दूरी बनाकर वह अपने हित साधने में कामयाब नही हो सकते उन्हें आज नहीं तो कल खामोशी में बैठे संगठनों व विचार मंचों को आगे लाने को मजबूर होना पड़ेगा तभी उनके राजनैतिक कैरियर की सशक्त शुरूआत होगी। बहरहाल रोहित का तिवारी के पुराने साथियों से दूरी बनाना उनकी निजी राय हो सकती है पर यह भी सत्य है कि तिवारी को दिल से चाहने वाले आज भी उनके लिये सब कुछ न्यौछावर कर सकते हैं। उत्तराखंड से भले ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत,हरीश रावत, इंदिरा हृद्येश समेत अन्य दलों के नेता समेत कैबिनेट के कुछ मंत्री अब उनकी कुशल कामना के लिये दिल्ली पहुंचे हों लेकिन सूबे व देश अन्य राजनीतिक व सामाजिक वर्ग के लोग इस विकास पुरूष को जीवन के अंतिम दिनों में इस तरह दूर हो जायेंगे किसी ने नहीं सोचा होगा। 9 नवम्बर वर्ष 2000में जब उत्तराखंड राज्य का गठन किया गया तो राज्यवासियों के मन में उम्मीदों की बाढ़ सी आ गई। यहां के लोगों व सूदूरवर्ती क्षेत्रों के ग्रामीणों को एक नये युग की शुरूआत होने का आभाष हो रहा था। राज्य गठन के बाद प्रदेश में सरकार का गठन भी हुआ। पहले विधानसभा के चुनाव में जनता ने भाजपा को सत्ता सौंपी। नव गठित उत्तराखंड राज्य की सियासत में भाजपा के सत्तासीन होते ही प्रदेश के चहुमुखी विकास की चर्चायें शुरू हुई। राज्यआंदोलनकारियों के सपनों को साकार करने का संकल्प लिया गया। प्रदेश के चहुंमुखी विकास और मैदान से पहाड़ तक शिक्षा,स्वास्थ्य, सड़कें,विजली; पानी,रोजगार और सुरक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं को मुहैया कराने के लिये तेजी से प्रयास शुरू हुए। वहीं सत्तासीन भाजपा सरकार राजनीतिक उठा पटक के बीच जब तक अपना कार्यकाल पूरा कर पायी राज्यवासियों की उम्मीदों को पूरा करने में नाकाम साबित होना विपक्षी दल कांग्रेस के लिये अवसर पैदा कर रहा था। पांच वर्ष बाद कांग्रेस को सत्ता की कमान सौंप दी गई। यही वह दौर था जब उत्तराखंड की सियासत में कद्दावर नेता पंडित एनडी तिवारी का आगमन हुआ। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और एनडी तिवारी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौपी गई। नव गठित राज्य के विकास और जनआकांक्षाओं को पूरा करने में नाकाम भाजपा के बाद अब कांग्रेस की अग्नि परीक्षा शुरू हा गई। प्रदेश के सियासी हालात को भांप चुके प्रडित तिवारी ने जनभावनाओं को तबज्जों देना शुरू कर दिया। मुख्यमंत्री के रूप में वह पहले ही उत्तरप्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े प्रदेश में काम कर चुके थे। लिहाजा उत्तराखंड में उन्हें काम करने में कोई परेशानी नहीं हुई। उत्तराखंड में अपने कार्यकाल के दौरान तिवारी अनेक जनकल्याणकरी फैसले लेकर आसानी से लोकपिं्रय हो गये। यह पहली बार था जब किसी सियासी दल के मुख्यमंत्री ने पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया था। लोकप्रियता बढ़ने के बाद उनके कार्यों की चहुंओर सराहना की गई। इतना ही नहीं सियासी गलियारों में तो उन्हें विकास पुरूष की संज्ञा देकर भी पुकारा गया है। उत्तराखंड राज्य की बात करें तो एनडी तिवारी के द्वारा कराये गये विकास की बदौलत आज प्रदेश के हजारों परिवारों रोजगार मिला है जबकि प्रदेश की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिये उन्होनंे नये आयाम स्थापित किये हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में औद्यौगिक प्रगति को बढ़ा दिया जिसके बाद ऊधमसिंहनगर, हरिद्वार, देहरादून समेत अन्य क्षेत्रों में सिडकुल की स्थापना हुई। यहां हजारों की संख्या में उद्योग स्थापित किये गये हैं। प्रदेश के बेरोजगार युवको के लिये आज यह उद्योग वरदान साबित हो रहे हैं। इसे तिवारी का दिया वरदान की कहा जायेगा जो आज देश के अनेक प्रदेशों के बेरोजगार युवा यहां आकर दो रोज की रोटी का गुजारा कर रहे हैं। वहीं प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधा को बढ़ा देते हुए पंडित तिवारी ने प्रत्येक जनपद में अस्पताल और मेडिकल कालेज निर्माण की योजना शुरू की। हांलाकि आज प्रदेेश के अधिकांश पर्वतीय क्षेत्र आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं मगर मैदानी जनपदों में स्वास्थ्य सेवा को बढ़ावा देते हुए एसटीएच, एम्स, मेडिकल कालेज व अन्य चिकित्सालयों की स्थापना  में तिवारी का अहम योगदान रहा। पांच वर्ष के कार्यकाल में पंडित तिवारी ने प्रदेश का चहुंमुखी विकास किया। केंद्रीय राजनीति में भी तिवारी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी,राजीव गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। तत्कालीन केंद्रीय मंत्रीमंडल में अहम पदों पर तिवारी दशकों तक आसीन रहे। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बलुदियों के झंडे गाढ़ने वाले एनडी तिवारी को वर्ष 2008 में आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। लगातार अपनी राजनीतिक सक्रियता से लोकप्रिय हो रहे पंडित तिवारी को उस समय विरोधियों की एक बड़ी साजिश का शिकार होना पड़ा। हांलाकि एनडी तिवारी के व्यक्तिगत जीवन से जुड़े इस वाकये ने उनके राजनीतिक जीवन चक्र की चाल ही बदल दी। सोशल मीडिया के जरिये पंडित तिवारी के समर्थकों का कहना है कि मतलब की दुनिया में सभी बेगाने होते है लेकिन उनके योगदान को भुलाना इतना आसान नही है। उनके निधन पर विनम्र श्रंद्धांजलि देने हुए समर्थकोें ने कहा कि विरोधी भले ही उपने मकशद में कामयाब हो गये लेकिन उत्तराखंड में तिवारी के योगदान को भविष्य में यहां का बच्चा बच्चा याद करेगा।
पंडित तिवारी के निधन पर शत् शत् नमन
(एन.एस बघरी ‘नरदा’) http://www.uttaranchaldarpan.in/

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