देवभूमि को मिलेगा ग्रीन बोनस,एनके सहमत
देहरादून। 15वें वित्त आयोग के सामने प्रदेश सरकार की ओर से रखी गई मांगों को वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह ने जायज बताया है। वित्त आयोग के इस बयान के बाद प्रदेश सरकार की 15वें वित्त आयोग से उम्मीदें जग गई हैं। पर्यावरणीय सेवाओं के बदले कुछ मुआवजा राशि की सरकार की मांग पर एनके सिंह ने यह भी कहा कि राज्य की पर्यावरणीय सेवाओं के बदले ग्रीन बोनस तो आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं है लेकिन 14वें वित्त आयोग ने वित्तीय हस्तांतरण में वन क्षेत्र को भी वेटेज दिया था। नया आयोग इस वेटेज के विस्तार के बारे में सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगा । मंगलवार को सचिवालय में प्रदेश सरकार के साथ बैठक में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने प्रदेश के भौगोलिक, आर्थिक व विषम सामाजिक व पर्यावरणीय परिस्थितियों और लगातार आने वाली आपदाओं का उल्लेख करते हुए मजबूती से उत्तराखंड का पक्ष रखा। सरकार ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने से पेश आ रही कठिनाइयों का भी उल्लेख किया और कहा कि अधिकांश अहम करों की व्यवस्था राज्य के हाथ में न होने से संसाधन बढ़ाना मुश्किल हो गया है। इसलिए राजस्व घाटा अनुदान व केंद्रीय अनुदान से राज्य को सशक्त किया जाना चाहिए।उन्होंने कहा कि राज्य गठन के समय 11वें वित्त आयोग की सिफारिशों को अंतिम रूप दिया गया था। राज्य गठन एक राजनीतिक फैसला था, मगर उस समय वित्तीय संसाधन व वित्तीय व्यवहारिकता पर गंभीरता से विचार नहीं हुआ। इसलिए शुरू से ही राज्य के संसाधन कम मगर जिम्मेदारी अधिक रही। नए राज्य को विशेष दर्जा मिलने के बावजूद उत्तराखंड राजस्व घाटा अनुदान से वंचित रहा क्योंकि 11वें वित्त आयोग के समय उत्तराखंड उप्र का हिस्सा था। शुरू में योजना आयोग ने जरूर राज्य की अतिरिक्त मदद की, मगर उसमें बड़ा हिस्सा कर्ज का था जिससे राज्य पर कर्ज बढ़ता गया। 12वें वित्त आयोग की सिफारशों से सूबे को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद मिली । 13वें वित्त आयोग ने भी सूबे के वित्तीय प्रबंधन से उत्साहित होकर अनुदान दिया, मगर 14वें वित्त आयोग से राज्य को निराशा ही मिली। 14वें वित्त आयोग के आय-व्यय के अनुमान भी सही साबित नहीं हुए हैं। इस वक्त ये हालात हैं कि केंद्रीय करों से राज्य के तथाकथित बढ़े हुए अंश व राजस्व घाटा अनुदान की व्यवस्था पर पुनर्विचार किसी भी तरीके से राज्य व संघीय व्यवस्था के अनुरूप नहीं होगा। उन्होंने कहा कि राज्य में आबादी भी विशेषकर पहाड़ी क्षेत्र में छितरी हुई है जिससे प्रदेश में विकास कार्य व निर्माण कार्य की लागत बढ़ जाती है। मैदान-पहाड़, शहर-गांव में भी सामाजिक आर्थिक विषमताएं हैं। पर्यावरणीय प्रतिबंधों के कारण विकास कार्य में बाधाएं आती हैं जिससे नए वित्तीय स्रेत खड़े करना मुश्किल भले ही प्रदेश की विकास दर 1993-94 से 2.9 प्रतिशत से आज 12.28 फीसद हो गई हो और प्रति व्यक्ति आय भी देश के औसत से अधिक हो लेकिन प्रदेश की विकास दर में बढ़ोतरी की असली वजह केंद्र का औद्योगिक पैकेज था जो 2010 में खत्म हो गया। जिससे उद्योगों की भी प्रदेश में दिलचस्पी खत्म हो गई। पहाड़ी क्षेत्र वनाच्छादित होने से वहां आर्थिक गतिविधियों व पर्यावरणीय प्रतिबंधों के कारण विकास कार्य में बाधाएं आती हैं जिससे नए वित्तीय स्रेत खड़े करना मुश्किल है। मिसाल के तौर पर भागीरथी ईको सेंसिटिव जोन के कारण या पर्यावरणीय प्रतिबंधों के कारण जल विद्युत परियोजनाएं बाधित हो रही हैं। जिसस राज्य ही नहीं देश को भी नुकसान हो रहा है। पहाड़ में निजी सेक्टर की मौजूदगी भी नगण्य है। इस वजह से अंतरजनपदीय विषमता बढ़ी है और हर साल प्राकृतिक आपदाओं के चलते व अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से सटे क्षेत्रों से लगातार मैदान या दूसरे राज्यों की ओर पलायन हो रहा है।