फिट टलेंगे निकाय चुनाव ! दून के वार्ड़ों में उलझी सरकार,कांग्रेस की नजरें टेड़ी
पंचायतों का कार्यकाल पूरा होने से पूर्व परिसीमन कराने का कांग्रेस कर रही विरोध
देहरादून। नैनीताल उच्च न्यायालय का आदेश के बाद भी सरकार चुनाव की अधिसूचना जारी नहीं कर पायी है। वहीं सरकार और चुनाव आयोग जल्द से जल्द चुनाव कराने का दावा भले ही ठोक रहे हो मगर देहरादून जिले में निकायों को लेकर अब भी सरकार उलझन में दिखयी दे रही है। गौर हो कि जिले में नये परिसीमन को लेकर माथामच्ची जारी हैं। एक ओर जिले के 72 गांवों में से 12 गावांे का परिसीमन नगर निगम में किया गया है। वहीं इन ग्राम पंचायतों का कार्यकाल अभी पूरा नहीं हुआ। इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस भी विरोध कर रही हैं किजस प्रकार सरकार ने मनमाने तरीके से मौजूदा 60 वार्डो की बजाय अन्य ग्रामों का परिसीमन करते हुए इन वार्डो की संख्या भी 100 तक पहुंचा दी है। सरकार और विपक्ष के इस उलझन को जल्द नहीं सुलझाया गया तो निकाय चुनाव फिर से टलने की संभावना भी प्रबल होती दिख रही है। सियासी गलियारों में सरकार की मंशा को लेकर भी चचायें है कि निकाय चुनाव को लेकर सरकार गंभीर नहीं बल्कि टालने के लिये मजबूर दिख रही है। इधर चुनाव में भाग्य आजमाने की ख्वाहिश रखने वाले नेता भी सक्रिय हो गये हैं। अब निकाय चुनाव अगले एक माह के अंतर्गत होते हैं या नहीं यह तो अगले एकाध दिन में अधिसूचना जारी होने के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा। सियासी दलों के साथ सियासत के मैदान में उतरने का ख्वाब देखने वालों की सक्रियता तो निश्चित तौर पर बढ़ ही गई है। बात अगर, नगर निगम देहरादून की करें तो यहां भी उलझन की स्थिति है कि आखिर चुनाव 60 वार्डांे पर होंगे या फिर परिसीमन के बाद बनाये गये 100 वार्डाे पर। इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि जहां सत्ता पक्ष सौ वार्डांे पर चुनाव कराने के लिए तैयार है। वहीं कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों की तैयारी साठ वार्डांे पर चुनाव की है। तकनीकी तौर पर भी सत्ता पक्ष का पलड़ा भारी दिख रहा है। लिहाजा शासन-प्रशासन भी देहरादून नगर निगम में 100 वार्डाे पर ही चुनाव कराने के लिए तत्पर है। दरअसल, नगर निगम देहरादून में अब तक शहरी क्षेत्र के साठ वार्ड शामिल थे। पिछले वर्ष हुए परिसीमन बाद नगर निगम सीमा में आसपास के गांवों को भी जोड़ा गया। पहले साठ गांवों को जोड़कर हुए सीमा विस्तार की अधिसूचना 25 अक्टूबर 2017 को हुई थी। बाद में शासन ने बाद में फिर 12 गांवों को और नगर निगम में जोड़ने का निर्णय लिया। इस तरह नगर निगम देहरादून में कुल 72 गांव जोड़ दिये गये। इस बीच विपक्षी दलों ने सीमा विस्तार का पुरजोर विरोध किया। इस मामले को लेकर नैनीताल हाइकोर्ट में याचिका भी दायर की गई, जिस पर हाइकोर्ट की डबल बेंच ने सुनवाई करते हुए सीमा विस्तार कर साठ गांवों के परिसीमन को खारिज कर दिया। इस पर शासन ने भी बीती पांच अप्रैल 2018 को साठ गांवों की अधिसूचना को निरस्त कर नये सिरे से नगर निगम में शामिल 72 गांवों की अधिसूचना जारी कर दी। सीमा विस्तार कर परिसीमन को खारिज किये जाने के न्यायालय के निर्णय से भले ही विपक्षी दलों की बांछे खिल गई, लेकिन सत्ता पक्ष में यहां भी तकनीकी रूप से अपना पक्ष मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब सरकार का तर्क यह है कि हाइकोर्ट ने साठ गांवों का सीमा विस्तार खारिज किया था, जबकि शासन स्तर से इस अधिसूचना को पहले ही निरस्त कर दिया गया था। ऐसे में 72 गांवों को नगर निगम में शामिल करते हुए सौ वार्डाे की अधिसूचना वर्तमान में लागू होती है। लिहाजा इसी आधार पर नगर निगम देहरादून के चुनाव होंगे। क्योंकि इसमें कोई तकनीकी दिक्कत नहीं है। नगर आयुक्त विजय कुमार जोगदंडे भी कहते हैं कि वर्तमान में 72 गांवों के सीमा विस्तार की ही अधिसूचना कायम है। लिहाजा इसी के हिसाब से चुनाव होंगे। बहरहाल, नगर निगम देहरादून के चुनाव को लेकर पक्ष-विपक्ष के साथ ही शासन-प्रशासन के अपने तर्क हैं। यहां एक बात स्पष्ट है कि अधिसूचना जारी नहीं होने तक इस मुद्दे पर रार बनी रहेगी क्योंकि सत्ताधारी भाजपा जहां 100 वाडरे पर चुनाव कराकर इस बार भी निगम चुनाव में अपनी नैया पार कराने के लिए शुरुआती चरण से ही तैयारी में है। नगर निगम में शामिल हुए गांवों व इन क्षेत्रों में रहने वाले तीन लाख से अधिक मतदाताओं पर भी भाजपाइयों ने शुरू से ही डोरे डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस व अन्य राजनीतिक दल पुराने साठ वार्डाे पर चुनाव कराने के पक्ष में खड़े दिख रहे हैं क्योंकि विपक्षी दल इन वार्डांे पर खुद की स्थिति मजबूत मानकर चल रहे हैं। गाहे-बगाहे ग्राम पंचायतों का कार्यकाल पूरा नहीं होने व हाईकोर्ट के पूर्व के आदेश की अवहेलना का तर्क भी विपक्षी पार्टियों द्वारा दिया जा रहा है। अब देखने वाली बात यह कि विपक्ष के दबाव में आकर व हाईकोर्ट की अवमानना से बचने के लिए सरकार देहरादून नगर निगम में साठ वाडरे पर चुनाव कराती है या तकनीकी पक्ष को आधार बनाकर सीमा विस्तार के बाद बनाए गए 100 वार्डांे पर। जबकि कोर्ट मे अब भी तीन निकायों का मामला लंबित है। वहीं पूर्व विधायक राजकुमार का कहना है कि जिन 72 गांवों को नगर निगम में शामिल किया गया है वहां की पंचायतों का कार्यकाल अभी पूरा हुआ ही नहीं है। लिहाजा सौ वार्डाे के आधार पर चुनाव होना संभव नहीं है। हाइकोर्ट भी सीमा विस्तार के परिसीमन को पूर्व के आदेश में ही खारिज कर चु्का है। भाजपा सरकार जनता को भ्रमित कर रही है। हर मामले को घुमा-फिराकर परोसना भाजपा की आदत बन गई है। पंचायतें किसी भी हाल में निगम में शामिल होने को तैयार नहीं हैं। यदि सरकार हाइकोर्ट की डबल बेंच के पूर्व के आदेश की अवमानना करती है तो इस मामले को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जायेगा या नहीं इस पर विचार किया जा रहा है।