पूर्व सीएम हरदा ने लिया ‘बुरांश के जंगल’ बचाने का संकल्प

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देहरादून। उत्तराखंड के पूर्व सीएम एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत ने अब राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के जंगलों में खिलने वाले बुरांश पुष्प के जंगलों को बचाने की अपील की है। उन्होंने स्वयं बुरांश के जंगल बचाने का संकल्प लेते हुए प्रदेश वासियों से भी आह्वान किया है । पूर्व सीएम हरदा की सोशल मीडिया पर साझा की गई एक पोस्ट अनुसार पिछले दिनों उत्तराखंड की विधानसभा में एक दिलचस्प मुद्दा उठा! विधायकों ने प्रश्न किया कि जैविक फसल, जैविक उपज और प्राकृतिक उपज में क्या अंतर है ? जब सरकार ही नहीं समझती है तो मंत्रीगण उसका क्या उत्तर देते? लेकिन यह प्रश्न बड़ा महत्वपूर्ण है। आज जलवायु परिवर्तन के कारण और सरकार के संरक्षण के अभाव के कारण कई प्राकृतिक उपजें जो हजारों-हजार लोगों की आजीविका का आधार बनती थी, वह धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं। आज प्योली गुलवंशा, समियां, लहसुनियां कहां है? धीरे-धीरे झूला भी विलुप्त हो रहा है जो बांझ के पेड़ों पर उगता था, वह भी कम होता जा रहा है। यह हमारी प्राकृतिक उपजें थी। किनगोड़ा ;किलमोड़ाद्ध को हमने स्वयं खत्म कर दिया, उसकी जड़ें खोद-खोद करके, सरकार ने उसके रमन्ने दे-दे कर के भ्रष्टाचार का शिकार हो गया किनगोड़ा। कितने स्वादिष्ट उसके दाने होते थे और लीवर सिरोसिस के मामले में जो है किनगोड़ा का फल रामबाण होता था और उसकी जड़ों से कई तरीके की औषधियां जिनमें आंखों की दवा तक है वह बनती हैं, लेकिन किनगोड़ा विलुप्त प्राय हो रहा है। गेठी, मेरी प्यारी-प्यारी गेठी। मैं फ्रलोटिंग पोटैटो की बात नहीं कर रहा हूं, जो प्राकृतिक रूप से जमीन के अंदर कंद के रूप में उगती है वह कंद भी धीरे-धीरे विलुप्तप्राय है, उसके साथ तेड़ू आदि खत्म हो रहा है, यह सब प्राकृतिक उपजें हैं। मुझे डर है कि जिस तरीके से आज दोहन हो रहा है, नए वृक्ष लग नहीं रहे हैं, धीरे-धीरे हमारा बुरांस जो हमारा राज्य का पुष्प है, वह भी समाप्त हो जाएगा। मैं देखता हूं कि उसका बहुत खतरनाक तरीके से दोहन हो रहा है और नये बुरांस के जंगल लगाए नहीं जा रहे हैं। मैंने एक जंगल लगाया था बुरांस खंडा में और एक लगाया था वनलेख, चंपावत में प्लांटेशन किया था और उसके बाद आगे मैं कुछ सुन नहीं रहा हूं। तिमरू की मांग आज राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है। मुझे लग रहा है कुछ दिनों बाद तिमरू को भी प्राकृतिक फसल के रूप में खतरा पैदा हो जाएगा। कीड़ा जड़ी के लिए भी अब चुनौती पैदा हो रही है। क्योंकि अनियंत्रित, अवैज्ञानिक दोहन और भी बहुत सारी चीजें हैं। मैं प्रतिदिन ऐसे विलुप्त कगार के होने पर जो चीजें आ रही हैं, उन पर आपसे चर्चा करूंगा और भी हमारी सांस्कृतिक पक्ष के भी बहुत सारी चीजें हैं। हमारे पहनावा व आभूषण भी विलुप्त हो रहे हैं, हमारे कुछ व्यंजन विलुप्त हो रहे हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि जो हमारा कलात्मक पक्ष झोड़े, भगनौले, जोड़-बांटे, यह सब धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं। वाद्य यंत्रों में विणाई आदि तो अब कल की बात हो गई है, कुछ दिनों के बाद हुड़के भी नहीं मिलेंगे तो इन सब चीजों पर मैं आप सबके साथ फेसबुक पर आप एक बहस को आमंत्रित करता हूं। आओ आप और हम सब बुरांस बचाने का संकल्प लें। बुरांस का प्लांटेशन लगाओ और बुरांस का साइंटिफिक तरीके से दोहन करो।

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