औषधियों के परंपरागत चिकित्सा शोध को सरल भाषा में बनाया जाए
वैद्यों ने ग्रामीण विवि खोलने और ग्राम वैद्यों की समस्याओं को भी देखे जाने की जरूरत पर जोर दिया
देहरादून। विश्व आयुर्वेद कांग्रेस के न्यू एज संहिता पर आयोजित सत्र में पैनलिस्ट गोवा के उपेंद्र दीक्षित, नासिक के अभिजीत सराफ और पुणे के प्रसाद बावडेकर ने अपने विचार रखते हुए कहा, आयुर्वेद को लेकर जो नए शोध, अध्ययन आदि हो रहे हैं, उसकी भाषा को सरल बनाया जाए। इसके अलावा डिजिटल एप के माध्यम से अधिक से अधिक स्थानीय भाषा में उसकी उपलब्धता हो, जिससे देश-विदेश के हर व्यक्ति अपनी सुगम भाषा में आसानी से अध्ययन कर सके। विशेेषज्ञों ने आयुर्वेद के क्षेत्र में अधिक से अधिक लोगों को कैसे जोड़ा जाए, शोध और अनुसंधान को बढ़ावा देने पर भी विशेषज्ञों ने विचार रखे। सत्र का संचालन राममनोहर ने किया। पारंपरिक चिकित्सा प्रथाओं की पसंद और आगे भविष्य की संभावना विषय पर आयोजित चर्चा में वैद्यों ने कहा, परंपरागत ज्ञान और औषधियों को बचाने की जरूरत है। इसके साथ ही परंपरागत चिकित्सा का ज्ञान आगे की पीढ़ी तक पहुंचता रहे, इसको सुनिश्चित करने की हम सभी जिम्मेदारी है। वैद्यों ने ग्रामीण विवि खोलने और ग्राम वैद्यों की समस्याओं को भी देखे जाने की जरूरत पर जोर दिया। कहा, ऐसे कार्यक्रम को जिला स्तर पर भी करने की जरूरत है। कहा, अगर हर गांव में दो वैद्य रखे जाने की व्यवस्था हो जाए, तो काफी इलाज गांव में ही संभव हो सकेगा। कहा, माडर्न चिकित्सा पद्धति की जानकारी भी रखने की जरूरत है, इससे लोग समस्या लेकर आते हैं उसको जानने में सहूलियत मिलेगी। इस दौरान वैद्यों ने द्रोण पुष्पी, भूलन जड़ी, कुलथी समेत कई औषधियों का प्रदर्शन करने के साथ उसके गुणों के बारे में विस्तार से बताया भी। इस सत्र में वैद्य सुखलाल, निरंजन, अवधेश कश्यप आदि शामिल थे। स्वीडन की एस्टीना एंडरसन अपने देश में आयुर्वेद को बढ़ावा देने की कोशिश में जुटी हैं। बताया, चार साल पहले एक किताब के माध्यम से आयुर्वेद के बारे में जानकारी मिली। आयुर्वेद में मेरे हर प्रश्नों का जवाब था। इसके बाद उसको और जानने और बढ़ावा देने की कोशिश शुरू की है। वे अपने देश में लाइफ स्टाइल कंसल्टेंट के तौर पर काम करती है, इसमें आयुर्वेद शामिल है। कहा, विश्व आयुर्वेद कांग्रेस एक बेहतर पहल है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के रहने वाले निर्मल कुमार अवस्थी कहते हैं कि वे पहले सीआरपीएफ में कार्यरत थे। वर्ष 1989 में उनका हाथ टूट गया। इसका इलाज परंपरागत चिकित्सा से हुआ। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन इसमें समर्पित कर दिया। देश में पांच लाख परंपरागत चिकित्सा करने वालों को लोक परंपरा संवर्द्धन अभियान से जोड़ा गया है। इसके तहत 936 औषधियों के बारे में जानकारी तैयार की गई है। कहा, परंरागत चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद से थोफोटोड़ी अलग होती है, इसमें संग्रहण, काल, तिथि, वार, समय का महत्व होता है। पांच हजार साल से इसके माध्यम से इलाज किया जा रहा है। देहरादून में आयोजित 10वीं वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस एवं आरोग्य एक्सपो के दूसरे दिन फ्री आयुष क्लीनिक में 629 मरीजों का स्वास्थ्य परीक्षण कर उपचार किया गया व आवश्यक औषधियां वितरित की गई। आरोग्य एक्सपो में विभिन्न आयुर्वेद हिमालय वैलनेस, पतंजलि वैलनेस आदि कंपनियों के स्टॉल उपलब्ध रहे। इस दौरान अलकनंदा हॉल में 60 वैज्ञानिक सत्र आयोजित हुए। भागीरथी हॉल में 46 वैज्ञानिक सत्र आयोजित हुए। मन्दाकिनी हॉल में 44, पिंडर हॉल में 45, नंदाकिनी हॉल में 43, धौलीगंगा हॉल में 43, कोसी हॉल में 29 तथा गिरी हॉल में 43 वैज्ञानिक सत्र आयोजित हुए। जिसमें 2477 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम में अस्थिमज्जा वृद्धि में सर्जिकल प्रबंधन में डॉ. कुलदीप कुमार, आयुर्वेदा- पब्लिक हेल्थ में डॉ. योगेश, क्लीनिकल ट्रायल इन योगा ब्रीथिंग एक्टिविटी में डॉ. शिल्पाशंकरा, मेन्टल वेल बीइंग इन रेसेण्टलरी दिएगनॉस ब्रेस्ट कैंसर में डॉ. प्रियंका सिरोले, आम वात में सुंठी चूर्ण में डॉ. ऋक्षांकि गुप्ता को बेस्ट पेपर से सम्मानित किया गया।