‘केदारनाथ’ में भी ‘हरियाणा दोहराने’ की तैयारी में ‘कुमारी शैलजा’: केदारनाथ सीट पर कांग्रेस में टिकट बंटवारे को लेकर सिर फुटव्वल
देहरादून। उत्तराखंड की कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा अपनी महत्वाकांक्षाओं एवं अहम के चलते हरियाणा में कांग्रेस की लगभग तय जीत को हर में बदलने के बाद, केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव में भी एक बार फिर हरियाणा दोहराने की पूरी कोशिश में है। ऐसे समय जबकि कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी को कांग्रेस पार्टी की एक माली की तरह देख-रेख करते हुए, कांग्रेस की कमजोरी को ही पार्टी की ताकत बनाने का भरपूर प्रयास करना चाहिए था, कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी स्वयं ही पार्टी में गुटबाजी को बढ़ावा देकर केदारनाथ में कांग्रेस की तबाही के बीज बोती नजर आ रही है हो। बता दंे कि उत्तराखंड की कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा एवं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा के बीच आपसी तालमेल आरंभ से ही ठीक नहीं नहीं है । कांग्रेस प्रदेश कांग्रेस प्रभारी एवं राज्य कांग्रेस अध्यक्ष के बीच तल्खी उसे समय और भी बढ़ गई थी,जब कुमारी शैलजा ने करन माहरा द्वारा उत्तराखंड में जिला एवं ब्लॉक स्तर पर की गई कुछ नियुक्तियों को सिरे से खारिज कर दिया था। रही सही कसर प्रत्याशी तय करने को लेकर पर्यवेक्षकों की चयन प्रक्रिया ने पूरी कर दी थी। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस आला कमान द्वारा केदारनाथ उपचुनाव के लिए पार्टी प्रत्याशी चयन के लिए प्रदेश कांग्रेस से पर्यवेक्षकों के नाम मांगे गए थे ,जिस पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से युवा विधायक और उपनेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी और वीरेंद्र जाती का नाम भेज दिया गया था और हाईकमान की मंजूरी के बाद पर्यवेक्षक के रूप में उनके नाम की विधिवत घोषणा भी कर दी गई थी, लेकिन अचानक दो दिन बाद दो अन्य पर्यवेक्षकों के नाम भी सामने आ गए। इनमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को बतौर मुख्य पर्यवेक्षक और विधायक लखपत बुटोला को पर्यवेक्षक के तौर पर शामिल कर लिया गया ।माना जाता है कि हाई कमान की ओर से आगे किए गए दोनों पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की पृष्ठभूमि में प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा की ही भूमिका थी। जिसका उद्देश्य प्रदेश अध्यक्ष को उनकी हैसियत बताना था। चर्चा है कि हाईकमान के स्तर से की गई दो नए पर्यवेक्षकों की नियुक्ति से पहले प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष करन माहरा से राय नहीं ली गई। इसके चलते माहरा पहले से ही अच्छे खासे नाराज थे और अब आला कमान से नियुक्त पर्यवेक्षकों द्वारा केदारनाथ के टिकट दावेदारों के नाम एवं उनसे संबंधित फीडबैक, प्रदेश अध्यक्ष महारा को बाईपास करके सीधे आला कमान को भेजे जाने की कार्यवाही ने गुटबाजी की आग में पूरी तरह से घी डालने का काम कर दिया है।कांग्रेस पार्टी कि यह एक स्थापित परंपरा रही है कि पर्यवेक्षक अपनी रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस कमेटी को सौंपते हैं।इसके बाद प्रदेश कांग्रेस ही प्रत्याशियों का पैनल हाईकमान को भेजती है, लेकिन यह पहली बार है जब पर्यवेक्षकों ने अपनी रिपोर्ट सीधे प्रदेश प्रभारी को भेजी है। जैसा की अपेक्षित था,कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने इस पर दबे स्वर में आपत्ति जताई ही है, साथ ही केदारनाथ विधानसभा सीट पर टिकट के अन्य दावेदारों ने भी पर्यवेक्षकों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।पर्यवेक्षकों की ओर से सीधे देहरादून की जगह दिल्ली रिपोर्ट भेजे जाने पर पार्टी में घमासान की स्थिति पैदा हो गई है। प्रदेश प्रभारी को नाम के पैनल के बारे में क्या रिपोर्ट भेजी गई है? इसका पता करन माहरा को भी नहीं लगा। इस पूरे मामले पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा का कहना है कि इस पर दिल्ली में होने वाली बैठक में बातचीत होगी। उनका कहना था कि पार्टी में हमेशा परंपरा रही है कि पर्यवेक्षक अपनी रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस कमेटी को सौंपते हैं। उसके बाद पीसीसी उस रिपोर्ट में रिकमेंड लेटर लगाकर केंद्रीय नेतृत्व को भेजती है। उन्होंने कहा कि प्रदेश प्रभारी ने कुछ सोच कर रिपोर्ट सीधे मंगाई होगी। क्योंकि, केदारनाथ उपचुनाव टेक्निकल चुनाव है। इसी को देखते हुए कुमारी शैलजा ने ये निर्णय लिया होगा। दूसरी और प्रदेश प्रवक्ता और केदारनाथ विधानसभा सीट से दावेदार शीशपाल सिंह बिष्ट ने भी पर्यवेक्षकों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनका कहना है कि उपचुनाव को लेकर उन्होंने और 12 अन्य लोगों ने दावेदारी जताई है, लेकिन उपचुनाव के लिए भेजे गए पर्यवेक्षकों ने चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती और पक्षपातपूर्ण तरीके से प्रत्याशियों के पैनल की सूची तैयार की है।शीशपाल बिष्ट के प्रदेश कांग्रेस कमेटी को विश्वास में लिए बगैर जिस मनमाने तरीके से पर्यवेक्षकों की नियुक्ति हुई थी, वो एक गलती थी। इसी गलती की वजह से पक्षपात की आशंकाएं आकार लेने लगी थी, जो अब सच होती दिखाई दे रही है। प्रत्याशी चयन में अगर पर्यवेक्षकों को अपनी ही मनमानी करनी थी तो फिर अन्य लोगों से आवेदन क्यों करवाए गए? उनसे निर्धारित शुल्क क्यों जमा करवाया गया ? शीशपाल सिंह बिष्ट ने साफतौर कहा कि इससे दावेदारों में भारी निराशा है। ऐसे में वो और अन्य दावेदार एक-दो दिन में भी दिल्ली जाकर इसकी शिकायत शीर्ष नेतृत्व से करेंगे। फिलहाल, केदारनाथ सीट पर कांग्रेस में टिकट बंटवारे को लेकर सिर फुटव्वल की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की नैया कैसे पर होगी ? यह एक बड़ा सवाल है।