आरक्षण का अधिकार राज्यों को : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज सरकारी नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण पर बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण देना जरूरी नहीं है। फैसला सुनाते हुए जस्टिस नरीमन ने कहा कि नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही था, इसलिए इस पर फिर से विचार करना जरूरी नहीं है। यानी इस मामले को दोबारा 7 जजों की पीठ के पास भेजना जरूरी नहीं है। फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये साफ है कि नागराज फैसले के मुताबिक डेटा चाहिए। लेकिन राहत के तौर पर राज्य को वर्ग के पिछड़ेपन और सार्वजनिक रोजगार में उस वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता दिऽाने वाला मात्रत्मक डेटा एकत्र करना जरूरी नहीं है। इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों की दलील स्वीकार की हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आंकड़े जारी करने के बाद राज्य सरकारें आरक्षण पर विचार कर सकती हैं। सर्वाेच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि राज्य सरकारें आरक्षण देने के लिए निम्नलििऽत कारकों को ध्यान में रऽकर नीति बना सकती हैं। वर्गों का पिछड़ापन निर्धारण, नौकरी में उनके प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता, संविधान के अनुच्छेद 335 का अनुपालन, कोर्ट ने कहा कि पिछड़ेपन का निर्धारण राज्य सरकारों द्वारा एकत्र आंकड़ों के आधार पर तय किया जाएगा। बता दें कि नागराज बनाम संघ के फैसले के अनुसार प्रमोशन में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती। इस सीमा को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रऽा है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि श्क्रीमी लेयरश् के सिद्धांत को सरकारी नौकरियों की पदोन्नती में एससी-एसटी आरक्षण में लागू नहीं किया जा सकता। दरअसल, 2006 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने सरकारी नौकरियों में प्रमोशन पर आरक्षण को लेकर फैसला दिया था। उस वत्तफ़ कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ इस तरह की व्यवस्था को सही ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में केस में एम। नागराज को लेकर फैसला दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि श्क्रीमी लेयरश् की अवधारणा सरकारी नौकरियों की पदोन्नतियों में एससी-एसटी आरक्षण में लागू नहीं की जा सकती, जैसा अन्य पिछड़ा वर्ग में क्रीमी लेयर को लेकर पहले के दो फैसलों 1992 के इंद्रा साहनी व अन्य बनाम केंद्र सरकार (मंडल आयोग फैसला) और 2005 के ईवी चिन्नैÕया बनाम आंध्र प्रदेश के फैसले में कहा गया था। लेकिन आरक्षण के लिए राज्य सरकारों को मात्रत्मक डेटा देना होगा। दरअसल, इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 2006 में नागराज मामले में आया फैसला ैज्/ैब् कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण दिए जाने में बाधा डाल रहा है। लिहाजा इस फैसले पर फिर से विचार की जरूरत है। हालांकि, 12 साल बाद भी न तो केंद्र और न राज्य सरकारों ने ये आंकड़े दिए। इसके बजाय कई राज्य सरकारों ने प्रमोशन में आरक्षण के कानून पास किए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते ये कानून रद्द होते गए। एससी/एसटी संगठनों ने प्रमोशन में आरक्षण की मांग को लेकर 28 सितंबर को बड़े आंदोलन का ऐलान कर रऽा है।