बजट बढ़ा,समय भी बढ़ा पर ‘आकार ’नहीं ले सका ‘सैन्य धाम’: टेंडर से लेकर निर्माण कार्यों में करोड़ों का गोलमाल
उत्तराखंड में निर्माणाधीन सैन्य धाम प्रेजेक्ट का बजट 49 से बढ़कर हुआ 99 करोड़, ठेकेदार को कर दिया गया 35 करोड़ 94 लाख का भुगतान पर निर्माण कार्य की रफ्तार बेहद सुस्त
देहरादून;उद संवादाताद्ध। सूबे की राजधानी स्थित एक गांव पुरुकुल में निर्माणाधीन सैन्यधाम, जिसे की भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में अरसे से प्रचारित करती आई है और जिसे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य के पांचवें धाम की संज्ञा दी है, शुरुआत से ही तमाम अनियमितताओं के घेरे में है। इन्हीं अनियमितताओं के चलते शहीदों के सम्मान से जुड़े इस प्रोजेक्ट का बजट जहां 49 करोड़ से बढ़कर 99 करोड़ तक पहुंच गया है, वही इस प्रोजेक्ट के पूरा होने की डेडलाइन तीन दफे बढ़ाई जा चुकी है। बावजूद इसके उत्तराखंड के इस पांचवें धाम का निर्माण निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा हो पाने के आसार बेहद कम है । बात सैन्यधाम प्रोजेक्ट से जुड़ी विसंगतियों की करें ? तो टेंडर बुलाने से लेकर ठेकेदार को किए गए भुगतान की तमाम कार्यवाही नौकरशाही और ठेकेदार की मिली भगत वाले भ्रष्टाचार के किसी ‘बड़े खेल’ की तरफ साफ इशारा करती है। सैन्यधाम के निर्माण में विलंब को लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत चाही गई जानकारी के संबंध में प्राप्त जवाब से यह तथ्य उजागर हुआ है कि सैन्यधाम के टेंडर से लेकर निर्माण कार्यों में करोड़ों का गोलमाल हुआ है। ज्ञात हो कि देहरादून के पुरुकुल गांव में सैन्यधाम का निर्माण चल रहा है ।धाम के निर्माण के लिए अधिकांश राशि केंद्र ने दी है । पहले यह प्रोजेक्ट 8 नवंबर 2023 तक पूरा होना था। फिर इसकी डेडलाइन मार्च 2024 तय कर दी गई और अब इस समय सीमा को बढ़कर अक्टूबर 2024 कर दिया गया है। आरटीआई के तहत हासिल जानकारी के अनुसार उत्तराखंड पेयजल संसाधन एवं विकास निर्माण निगम ने इसका ग्लोबल टेंडर जारी नहीं किया। पोर्टल पर जारी यह टेंडर पहले 48 लाख का था। इसमें दो कंपनियां मेसर्स शिवकुमार अग्रवाल और मेसर्स एमएचपीएल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने भाग लिया। तकनीकी रूप से त्रुटि पूर्ण होने के कारण इस टेंडर को विभाग ने निरस्त कर दिया और दोबारा निविदा आमंत्रित की गई ।तब तत्कालीन वित्त सचिव ने इस कार्यवाही पर सवाल उठाया और पूछा कि यह तकनीकी निविदा खोली ही क्यों गई? आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार निगम ने इतनी बड़ी धनराशि का टेंडर बिना प्रशासनिक अनुमति के जारी किया था तथा टेंडर के लिए जिन दो कंपनियों ने निविदा में भाग लिया था उनके स्टंप और नोटरी एक ही वेंडर से किए गए थे । इसलिए दोबारा अल्प कालिक टेंडर जारी किया गया। दूसरी बार भी इन्हीं दोनों कंपनियों ने टेंडर डाला। इस बार यह ठेका मेंसर्स शिवकुमार अग्रवाल को दे दिया गया तथा टेंडर की राशि बढ़ाकर 49 करोड़ कर दी गई। इतना ही नहीं विभाग ने ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए कंटीजेंसी का लगभग 1 करोड़ 9 लाख रुपया भी छोड़ दिया। इसके अलावा टेंडर ओवर प्राइस था और इसे ग्लोबल भी नहीं किया गया। पेय जल निगम ने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की जिम्मेदारी विकास नगर यूनिट के प्रोजेक्ट मैनेजर रविंद्र कुमार को दी थी। जब रविंद्र का तबादला देहरादून हुआ तो वह अपने साथ जेई शीतल गुरुंग और एआई संजय यादव को भी योजना में साथ ले आए ।योजना बनाते समय इन इंजीनियरों और संबंधित अफसर ने बेहद लापरवाही बरती, जिसके कारण यह प्रोजेक्ट 49 से 99 करोड़ का हो गया। सैन्यधाम में उपयोग में लाया गया मटेरियल भी बेहद घटिया दर्जे का है तथा ठेकेदार को निविदा शर्तों के विपरीत समय-समय पर अग्रिम भुगतान भी किया गया है ।कुल मिलाकर ठेकेदार को अब तक 35 करोड़ 94 लाख का भुगतान किया जा चुका है ।यही नहीं, ठेकेदार को 7 करोड़ 75 लाख के अतिरित्तफ कार्य भी आवंटित कर दिए गए हैं ।आमतौर पर निविदा के दौरान ठेकेदार की बिड कैपेसिटी को नापा जाता है। इस आधार पर ठेकेदार शिवकुमार की बिड कैपेसिटी लगभग 53 करोड़ है। ऐसे में संबंधित ठेकेदार से सैन्यधाम का कार्य कराया जाना मानकों के अनुरूप बिल्कुल भी नहीं है।