उत्तराखंड में ‘हैट्रिक’ के बावजूद बढ़ी ‘भाजपा की चिंताएं’, निकाय चुनाव के लिए खतरे की घंटी

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भाजपा के वोट शेयर में आई तकरीबन पांच प्रतिशत की कमी, धरातल पर सत्ता विरोधी लहर के आकार लेने के स्पष्ट संकेत
ऊधम सिंह नगर। सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जी- तोड़ मेहनत कर उत्तराखंड की पांचो लोकसभा सीट भले ही भाजपा की झोली में डालने में कामयाब रहे हो, लेकिन संपन्न आम चुनाव में 5-0  की लीड के साथ हैट्रिक मारने के बावजूद पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में भाजपा की चिंताएं बढ़ गई है , क्योंकि राज्य की पांचो लोकसभा सीटों में प्राप्त भारतीय जनता पार्टी को मिलने वाले वोटो की संख्या में पिछले आम चुनाव की तुलना में अच्छी खासी कमी आई है ।भारतीय जनता पार्टी के वोट प्रतिशत में कमी और कांग्रेस के वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी को राजनीतिक पंडित भाजपा सरकार के विरुद्ध हल्की सत्ता विरोधी लहर का संकेत मान रहे हैं। मगर यह हल्की सत्ता विरोधी लहर तथा मिलने वाले वोट प्रतिशत में मामूली कमी ही आगे चलकर भाजपा को उत्तराखंड में भारी पड़ सकती है। वह इसलिए, क्योंकि कुछ माह बाद ही राज्य में स्थानीय निकाय के चुनाव प्रस्तावित है। नगर निकाय चुनाव चूंकि स्थानीय मुद्दों पर आधारित होते हैं और उनका राष्ट्रीय मुद्दों से कोई खास सरोकार नहीं होता, इसलिए मतदाताओं को तर्कों और राष्ट्रीय भावनाओं से बहलाया नहीं जा सकता। स्थानीय चुनाव में मतदाता अपनी प्राथमिकता अपने आसपास के जनप्रतिनिधि के परफॉर्मेंस को देखकर तथा काफी हद तक राज्य की सरकार के कार्य करने की शैली के आधार पर निर्धारित करता है ।ऐसे में हल्की सत्ता विरोधी लहर और वोट प्रतिशत में मामूली कमी ही कई बार राजनीतिक दलों के समीकरण बना- बिगाड़ देती है। इस लिहाज से उत्तराखंड के संदर्भ में यह स्थिति भाजपा की चिंता बढ़ाने वाली है, क्योंकि निकाय चुनाव में अभी तकरीबन तीन माह से ऊपर का समय लग सकता है और इस दौरान यह सत्ता विरोधी लहर और भी गहरी हो सकती है। जाहिर है कि यदि ऐसा होने पाया तो उत्तराखंड में भाजपा के लिए एक नई सरर्ददी पैदा हो सकती है ।इसलिए भाजपा का प्रदेश नेतृत्व इस स्थिति को लेकर अभी से सजग हो गया है और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने भाजपा को प्राप्त होने वाले वोटो के प्रतिशत में कमी की वजहों का पता लगाने तथा संपन्न आम चुनाव में बूथ स्तर से लेकर मंत्री तक के चुनावी कार्यों की समीक्षा के उपरांत आवश्यक कदम उठाने  की बात कही है। लिहाजा निकट भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा के प्रदेश नेतृत्व की ओर से भाजपा के वोट प्रतिशत में आई तकरीबन 5 प्रतिशत की कमी  की भरपाई करने के लिए कौन सी रणनीति तैयार की जाती है और संपन्न आम चुनाव में उल्लेखनीय प्रदर्शन न करपाने वाले धामी कैबिनेट के सदस्यों को क्या नसीहत दी जाती है? बताना होगा कि संपन्न आम चुनाव में धामी कैबिनेट के अधिकांश मंत्रियों का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। धामी कैबिनेट के सदस्य सौरभ बहुगुणा के अलावा और कोई भी मंत्री अपने विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 2019 के आम चुनाव की तुलना में अबकी बार भारतीय जनता पार्टी के  वोटो की संख्या में मामूली बढ़ोतरी भी नहीं कर सका ।कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा धामी मंत्रिमंडल के इकलौते सदस्य हैं, जिनकी विधानसभा सितारगंज सीट पर भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनाव तुलना में इस बार अधिक वोट प्राप्त हुए हैं ।बात अगर भाजपा के वोट शेयर घटने की करें ,तो अबकी बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 2014 और और 2019 के मुकाबले कम वोट मिले इस तरह भाजपा का वोट शेयर जो 2019 के चुनावों में 61।70 प्रतिशत था, वो गिरकर 56।81 प्रतिशत पर आ गया है ।हालांकि भाजपा के लिए थोड़ी राहत की बात यह है कि उसकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस का वोट शेयर तकरीबन एक प्रतिशत ही बढ़ा है मगर इससे भाजपा खुश नहीं हो सकती, क्योंकि मुद्दे गरमाने और वोटो  के ध्रुवीकरण की स्थिति में मत प्रतिशत बढ़ते देर नहीं लगती ।

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