गंगोत्री और यमुनोत्री धाम को ‘कहीं ले न डूबे’ वाहनों का धुआं, हर तरफ कोलाहल एवं गंदगी का बोलबाला
जहां कभी शोर करने की मनाही थी, वहां गड़गड़ा रहे ऑटोमोबाइल इंजन, वातावरण में घोल रहे बेहिसाब धुआं, वनाग्नि से बढ़ी ब्लैक कार्बन की मात्रा के खतरनाक स्तर तक पहुंचने आशंका, गहरे संकट में गंगोत्री और सतोपंथ ग्लेशियर समूह
देहरादून। पहाड़ी राज उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र की अधिकांश आबादी की आर्थिक रीढ़ कृषि के अलावा पर्यटन, विशेष कर चार धाम यात्रा, है। इस दृष्टि से चार धाम यात्रा में प्रतिवर्ष रिकॉर्ड यात्रियों का पहुंचना उत्तराखंड और उत्तराखंड वासियों के आर्थिक समृद्धि की दृष्टि से बेहद उत्साह जनक है, लेकिन चार धाम यात्रियों कि यह बेहिसाब भीड़ पर्यावरण की दृष्टि से उत्तराखंड पर कितनी भारी पड़ सकती है? इसका अनुमान ना तो सरकार लग रही लगा पा रही है और ना ही प्रदेश के रहवासी। उत्तराखंड से लगे हिमालय क्षेत्र में स्थित चारों धामों में यात्रा की शुरुआत में ही श्रद्धालुओं की अप्रत्याशित भीड़ उमड़ रही है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, पिछले साल बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री पहुंचने वाले यात्रियों की संख्या 56,31,224 की तुलना में ,इस वर्ष पर्यावरणीय दृष्टि से अति संवेदनशील इन तीर्थों में 70 लाख तक यात्रियों की आमद होने का अनुमान है। हिमालय पर यात्रियों के इस महारैली से व्यवसायियों का गदगद होना स्वाभाविक है, क्योंकि यह यात्रा उत्तराखंड की आर्थिकी की रीढ़ होने के साथ ही पड़ोसी राज्यों को भी प्रत्यक्ष या परोक्ष लाभ पहुंचाती है,लेकिन पर्यावरण और आपदा प्रबंधन से जुड़े लोगों को आस्था के इस अप्रत्याशित ज्वार ने चिंता में डाल दिया है। प्रख्यात पर्यावरणविद पप्रभूषण चंडी प्रसाद भट्ट के अनुसार एक समय इस संवेदनशील क्षेत्र में लोग लाल कपड़े तक नहीं पहनते थे और यहां शोर करना भी वर्जित था मगर वर्तमान में यहां हर तरफ कोलाहल एवं गंदगी का बोलबाला है ।यात्रियों की अत्यधिक भीड़ से यात्रा मार्गों में गंदगी भी खूब हो रही है। इस मार्ग पर जो मलजल शोधन संयंत्र ;एसटीपीद्ध लगे हैं, उनकी क्षमता भीड़ के मुकाबले बहुत कम है परिणाम स्वरूप गंदगी नदियों में मिल जाती है। पिछले वर्ष बदरीनाथ में लगे संयंत्र का मलजल सीधे अलकनंदा में प्रवाहित होते हुए पूरी दुनिया ने सोशल मीडिया पर देखा था। लगभग 1300 किमी लंबे चारधाम यात्रा मार्ग पर स्थित कस्बों की अपनी सीमित ठोस अपशिष्ट ;कूड़ा-कचराद्ध निस्तारण व्यवस्था है।सरकार या नगर निकायों के लिए अचानक इस व्यवस्था का विस्तार आसान नहीं होता।सबसे अधिक चिंता का विषय वाहनों का हिमालय पर चढ़ना है। एक आंकड़े के अनुसार इस साल आरंभिक 10 दिन की यात्रा में ही तकरीबन 6।43 लाख यात्री और 60,416 वाहन चारों तीर्थों तक पहुंच चुके थे। इन वाहनों में भी सबसे ज्यादा चिंता पैदा करने वाले डीजल वाहन हैं, जिनसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होने के कारण प्रदूषण भी अधिक होता है। पर्यावरणविदों के लिए एक और चिंता का विषय ब्लैक कार्बन है, जो जलवायु परिवर्तन में योगदान देने के साथ हीघ्ग्लेशियरों को भी पिघला रहा है। अध्ययन में सामने आया है कि ऑटोमोबाइल द्वारा उत्सर्जित ब्लैक कार्बन भी बर्फ और बर्फ की सतहों पर जमा हो सकता है। ऑटोमोबाइल से उत्सर्जित ब्लैक कार्बन के गहरे रंग उक्त कण हल्की सतहों की तुलना में सूर्य प्रकाश को अधिकअवशोषित करते हैं, जिससे बर्फ और बर्फ की सतह का ताप बढ़ जाता है और ग्लेशियरों के पिघलने की गति तेज हो जाती है। राज्य में जंगलों की आग ने पहले ही वातावरण में ब्लैक कार्बन के स्तर में चिंताजनक वृद्धि कर दी है और अब चार धाम तक पहुंचने वाले डीजल वाहन इसमें और कितनी वृद्धि करेंगे? इसकी कल्पना डरा देने वाली है। पिछले साल बदरीनाथ तक 2,69,578 वाहन व गंगोत्री तक 96,884 वाहन पहुंचे थे।घ्इस साल केवल आरंभिक 10 दिन में ही बदरीनाथ में 12,263 और गंगोत्री में 10,229 वाहन पहुंच गए। ज्ञात हो कि ये दोनों ही धाम गंगोत्री और सतोपंथ ग्लेशियर समूहों के क्षेत्र में हैं, जो कि तेजी से पिघलने के कारण अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय हैं।दोनों ही ग्लेशियर समूह गंगा की मुख्य धारा अलकनंदा व भागीरथी के उद्गम स्रोत हैं। यमुना का स्रोत यमुनोत्री ग्लेशियर है।इसी साल अप्रैल में जारी इसरो की रिपोर्ट के अनुसार, हिमालयी ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के साथ ही ग्लेशियर झीलों की संख्या और आकार में निरंतर वृद्धि हो रही है, जो आपदाओं की दृष्टि से एक गंभीर खतरे का संकेत भी है। ऐसे में सुलगता सवाल तो यह है की साल दर साल बढ़ती ब्लैक कार्बन कि इस मात्रा को संवेदनशील ग्लेशियर कब तक सहन कर पाएंगे ?