पीओके में सुलगती विद्रोह की आग !

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पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में लगातार विद्रोह की आग सुलग रही है, यहां तक कि हालात बेकाबू हो गए है और पाकिस्तानी सेना ने हस्तक्षेप से इंकार कर दिया है। समूचे पाक अधिकृत कश्मीर में धारा-144 लागू होने के साथ मोबाइल- इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। महंगाई, बिजली और आटे पर सब्सिडी की छूट के चलते यह आंदोलन इतना आगे बढ़ गया है कि एक पुलिस अधिकारी की भी गुस्साए लोगों ने हत्या कर दी। पीओके में कुल 10 जिले हैं। यह आंदोलन भींबर से शुरू हुआ और सभी जिलों में फैल गया। आंदोलन का संचालन करने के लिए एक नया संगठन ‘ज्वांइट अवामी एक्शन कमेठी‘ बनाया है, जिसमें सभी जिलों के लोग भागीदार है। शांतिपूर्ण चल रहे आंदोलनकारियों की मांग है कि पाकिस्तान सरकार की भ्रष्ट शासन-प्रणाली से वे तंग आ चुके हैं, अतएव पाक के साथ रहना नहीं चाहते हैं। हमें इससे आजादी चाहिए। घबराई शहबाज शरीफ सरकार ने हुए नुकसान को नियंत्रित करने की दृष्टि से 23 अरब का बजट प्रावधान पीओके के लिए किया है, लेकिन प्रदर्शनकारियों की मांग है कि जो मांगे उन्होंने रखी हैं, वे सभी मान्य की जाएं। अन्यथा वे प्रदर्शन करते रहेंगे। इसी समय भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि एक दिन हम पीओके पर अवैध कब्जे को समाप्त करेंगे और पीओके वापस भारत के साथ जुड़ जाएगा। पीओके के लोगों के साथ वाकई अन्याय हो रहा है। यहां के लोगों को उत्पादन लागत पर बिजली नहीं मिल रही है। जो बिजली पीओके में बनाई जाती है, उसे सरकार पीओके से दो रुपए प्रति यूनिट लेती है और फिर यहीं के लोगों को महंगी दरों पर बेचती है। पीओके में रहने वाले लोगों को सब्सिडी पर आटा देना रोक दिया है। जबकि आटा पेट की भूख मिटाने की बुनियादी जरूरत है। अतएव आटा समेत अन्य 30 वस्तुओं पर सब्सिडी मिलनी चाहिए। लोगों ने यह भी मांग की है कि पीओके की अफसरशाही और 53 मंत्रियों को मिलने वाली बिलासी सुविधाएं बंद की जाएं। इन्हें सरकार की ओर से महंगी व लग्जरी गााड़ियां और घर के साथ टीए-डीए मिल रहे हैं। इन्हें बंद किया जाए। यही नहीं इनके जो सहायक है, उन्हें भी ऐसे ही सुविधाएं दी जा रही हैं, जो कतई उचित नहीं है। इन्हें बंद किया जाए। हालांकि पीओके में पाक से अलगाव का संकट इतना बढ़ गया है कि अब समझौते कि दूर-दूर तक कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। शायद इस स्थिति का पूर्वाभास करने के बाद ही जयशंकर ने जल्द पीओजेके का भारत में विलय होने का दावा किया है। यही नहीं उन्होंने कहा है कि निश्चित तौर पर इसका विलय होगा। क्योंकि वहां के लोग रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भी तरसने को मजबूर हो रहे हैं। तिस पर भी राहत देने की बजाय पाकिस्तानी सेना अत्याचार पर आमादा है। लोग पाक सेना से आजादी और भारत में शामिल होने के लिए नारे लगा रहे हैं। गुलाम जम्मू-कश्मीर में चल रहे विरोध प्रदर्शनों पर यह पहली उच्च स्तरीय प्रतिक्रिया हैं। इस परिप्रेक्ष्य में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह भी कह चुके हैं कि सब्र का फल मीठा होता है। अतएव अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत सरकार की पीओके के संदर्भ में कोई न कोई ऐसी रणनीति अवश्य चल रही है, जो पीओके के विलय की दिशा में बढ़ रही है। दूसरी तरफ जिस आतंकवाद का जनक पाकिस्तान रहा है, वही आतंकवाद अब उसके लिए पीओके में चुनौती बनकर सामने आ रहा है। पाक में आतंकी हमले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। कुछ माह पहले ही बलूचिस्तान प्रांत के तुरबाद नगर में नौसैनिक अîóे पर आतंकवादियों ने गोली बरसाते हुए हमला किया था। इसके बाद खैबर पख्तूनख्वा इलाके में चीनी नागरिकों के एक काफिले पर हमला बोल दिया था। इसमें पांच चीनी इंजीनियरों की मौत हो गई थी। ये इंजीनियर दासू हाइड़ªोप्रोजेक्ट के निर्माण में लगे थे। इन हमलों की जुम्मे वाली बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ;बीएलएद्ध की मजीद ब्रिगेड ने ली हुई है। इस्लामाबाद से 200 किमी दूर स्थित दासू हाइड्रो प्रोजेक्ट का निर्माण चीनी कंपनी कर रही है। 2021 में भी इस परियोजना पर काम कर रहे नौ चीनी इंजीनियरों सहित 13 लोगों को बलूच हमलावरों ने मार गिराया था। पाकिस्तान में अकेले फरवरी माह में हुए 97 हमलों में 118 लोग मारे जा चुके हैं। 20 मार्च को ग्वादर बंदरगाह पर भी आतंकी हमला हो चुका है। इस हमले की जिम्मेदारी भी बलूचों ने ली है। इन हमलों के चलते पाक में नई बनी शाहबाज सरकार मुसीबतों से घिर गई है। दरअसल बलूचिस्तान प्रांत के नागरिक मानते हैं कि पाक सरकार उनके प्रांत के हितों की लंबे समय से अनदेखी कर रही है। यहां के लोग इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप का भी विरोध कर रहे है। दासू हाइड्रोप्रेजेक्ट और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के निर्माण के अंतर्गत कई परियोजनाएं पीओके में निर्माणाधीन हैं। इन परियोजनाओं का विरोध लगातार हो रहा है। लेकिन पाक सरकार धन के लालच में चीन के सुरसा मुख में फंस चुकी है। देश में चल रही आर्थिक बद्हाली के कारण भी सरकार चीन का दामन नहीं छोड़ पा रही है। चीन से उसकी मित्रता का कारण धन का लालच तो है ही भारत के साथ तनावपूर्ण रिश्ते भी हैं। पाक की तरह चीन से भी भारत का सीमा पर निरंतर तनाव बना हुआ है। अब पीओके में आतंकी शत्तिफयां इतनी मजबूत हो गईं हैं कि पाक का ईरान और अफगानिस्तान से भी मधुर संबंध बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। पीओके की परिधि में आने वाले गिलगिट-बाल्टिस्तान वास्तव में भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य के हिस्सा हैं। बावजूद 4 नबंवर 1947 से पाकिस्तान के नाजायज कब्जे में हैं। लेकिन यहां के नागरिकों ने इस बलात कब्जे को कभी नहीं स्वीकारा। यहां तभी से राजनीतिक अधिकारों के लिए लोकतांत्रिक आवाजें उठ रही हैं और पाक सरकार इन लोगों पर दमन और अत्याचार का सिलसिला जारी रखे हुए है। साफ है, पाक की आजादी के साथ गिलगिट- बाल्टिस्तान का मुद्दा जुड़ा हुआ है। पाक की कुल भूमि का 40 फीसदी हिस्सा यहीं है। लेकिन इसका विकास नहीं हुआ है। करीब 1 करोड़ 30 लाख की आबादी वाले इस हिस्से में सर्वाधिक बलूच हैं, इसलिए इसे गिलगिट- बलूचिस्ताल भी कहा जाता है। पाक और बलूचिस्तान के बीच संघर्ष 1945, 1958, 1962-63, 1973-77 में होता रहा है। 77 में पाक द्वारा दमन के बाद करीब 2 दशक तक यहां शांति रही। लेकिन 1999 में परवेज मुशर्रफ सत्ता में आए तो उन्होंने बलूच भूमि पर सैनिक अîóे खोल दिए। इसे बलूचों ने अपने क्षेत्र पर कब्जे की कोशिश माना और फिर से संघर्ष तेज हो गया। इसके बाद यहां कई अलगाववादी आंदोलन वजूद में आए, इनमें प्रमुख बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी है। निर्वाचन की प्रक्रिया से गुजरने के बावजूद भी यहां की विधानसभा को अपने बूते कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है। सारे फैसले एक परिषद लेती है, जिसके अध्यक्ष पाकिस्तान के पदेन प्रधानमंत्री होते हैं। लिहाजा चुनाव के बावजूद भी यहां विद्रोह की आग सुलगी रहती है। यह आग अस्तोर, दियामिर और हुनजा समेत उन सब इलाकों में सुलगी रहती है, जो शिया बहुल हैं। सुन्नी बहुल पाकिस्तान में शिया और अहमदिया मुस्लिमों समेत सभी धार्मिक अल्पसंख्यक प्रताड़ित किए जा रहे हैं। अहमदिया मुस्लिमों के साथ तो पाक के मुस्लिम समाज और हुकूमत ने भी ज्यादती बरती है। 1947 में उन्हें गैर मुस्लिम घोषित कर दिया गया था। तब से वे न केवल बेगाने हैं, बल्कि हिंदू, सिख व ईसाइयों की तरह मजहबी चरमपंथियों के निशाने पर भी रहते हैं। पीओके और बलूचिस्तान पाक के लिए बहिश्कृत क्षेत्र हैं। पीओके की जमीन का इस्तेमाल वह, जहां भारत के खिलाफ शिविर लगाकर गरीब व लाचार मुस्लिम किशोरों को आतंकवादी बनाने का प्रशिक्षण देता है, वहीं बलूचिस्तान की भूमि से खनिज व तेल का दोहन कर अपनी आर्थिक स्थिति बहाल किए हुए है। यहां महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं है। गरीब महिलाओं को जबरन वेष्यावृत्ति के धंधों में धकेल दिया जाता है। 50 फीसदी नौजवानों के पास रोजगार नहीं है। 40 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। 88 प्रतिशत क्षेत्र में पहुंच मार्ग नहीं हैं। बावजूद पाकिस्तान पिछले 76 साल से यहां के लोगों का बेरहमी से खून चूसने में लगा है। जो व्यत्तिफ अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाता है, उसे सेना, पुलिस या फिर आइएसआई उठा ले जाती है। पूरे पाक में शिया मस्जिदों पर हो रहे हमलों के कारण पीओके के लोग मानसिक रूप से भी आतंकित हैं। नतीजतन यहां खेती-किसानी, उद्योग-धंधे, शिक्षा-रोजगार, स्वास्थ्य-सुविधाएं तथा पर्यटन सब चौपट हैें। इस क्षेत्र में चीन बड़ा निवेश कर रहा है। ग्वादर में एक बड़ा सा बंदरगाह बनाया है। चीन की एक और बड़ी योजना है, ‘चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर‘ इसकी लागत 3 लाख 51 हजार करोड़ है। यह गलियारा गिलगिट-बाल्टिस्तान से गुजर रहा है। इस गलियारे के निर्माण में लगे चीनी नागरिकों की आतंकी संगठन बीएलए हत्याएं कर रहा है। चूंकि यह क्षेत्र अधिकारिक रूप से भारत का है, इसलिए भारत भी इस परियोजना का लगातार विरोध कर रहा है। पाकिस्तान रणनीतिक रूप से गिलगिट-बाल्टिस्तान को पांचवां प्रांत बना लेने की फिराक में लगा है। चूंकि यह क्षेत्र आधिकारिक रूप से भारत के जम्मू-कश्मीर प्रांत का हिस्सा है, इसलिए यहां कोई भी बदलाव कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन होगा। पाकिस्तान यहां सुन्नी मुसलमानों की संख्या बढ़ाकर इस पूरे क्षेत्र का जनसंख्या घनत्व बदलने के प्रयास में भी लगा है। इन कारणों के चलते यहां के मूल बलूचों की पाकिस्तान के प्रति जबरदस्त नाराजी है और वे निर्णायक लड़ाई लड़के भारत में विलय होने की कोशिश में लगे हैं।

– प्रमोद भार्गव, लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।

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