उत्तराखंड के इको सिस्टम पर मंडरा रहा बड़ा खतराः भीषण गर्मी से ‘ नैनी झील’ के अस्तित्व पर मडराने लगे जल ‘संकट के बादल’

0

नैनी झील के जलागम क्षेत्रों से अनियंत्रित जल दोहन भीषण गर्मी में भी जारी,
इंच दर इंच रोज घट रहा है झील का जलस्तर, एक बार फिर जलस्तर के शून्य तक पहुंचने के बन रहे आसार
नैनीताल। बर्फबारी न होने और बारिश भी अन्य वर्षों के सापेक्ष कम होने से नैनीझील के जलस्तर में लगातार कमी हो रही है। रविवार को नैनीझील का जलस्तर एक फीट ग्यारह इंच पहुंच गया है। जो बीते तीन वर्षों में सबसे कम है। इससे पहले वर्ष 2021 में पांच मई को जलस्तर मात्र एक इंच था। मई व जून माह पीक ग्रीष्म पर्यटक सीजन के रूप में जाना जाता है। मैदानी क्षेत्रों में छुट्टियों के बाद यहां पर्यटक गतिविधि अत्यधिक बढ़ जाती है। नैनीझील नगर का मुख्य आकर्षण है। यहां आने वाला पर्यटक नैनीझील में नौकायन जरूर करता है। झील का जलस्तर कम होने से नगर के सौंदर्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इसी कारण जल स्तर संतुलन भी संबंधित विभाग समेत प्रशासन के लिए चुनौती रहता है। दिनों दिन विकराल होती गर्मी के चलते उत्तराखंड के इको सिस्टम पर इन दिनों बड़ा खतरा मंडरा रहा है। एक तरफ जहां जंगल की आग तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद काबू में नहीं आ रही है, वही दूसरी ओर दिनों दिन चढ़ते पर पारे के करण ग्लेशियर की बर्फ तेजी से पिघलने का खतरा बढ़ने लगा है। साथ ही नैनीताल स्थित सूबे की ऐतिहासिक नैनी झील का जलस्तर भी तेजी से घटने लगा है ।ज्ञात हो कि जल संस्थान द्वारा नैनी झील के जलागम क्षेत्रों से रोजाना पेयजल को 8 लाख लीटर पानी का दोहन रोजाना किया जा रहा है, जिसके चलते नैनी झील का जलस्तर निर्धारित मानक से 10 फीट नीचे तकरीबन 10 फीट नीचे पहुंच गया है जाहिर है कि यदि सरकार द्वारा नैनी झील के जलागम क्षेत्र से किये जा रहे अनियंत्रित जल दोहन को समय रहते नहीं रोका गया, तो प्रदेश की ऐतिहासिक झील का जलस्तर एक बार फिर शून्य को छू जाएगा। आश्चर्य नहीं होगा जो अगर यह अविवेकपूर्ण जल दोहन नैनी झील के जलस्तर को वर्ष 2016-17 की स्थिति में पहुंचा दे। दरअसल, नैनी झील के जल स्तर के कम होने की कहानी एक, दो या तीन साल पुरानी नहीं है बल्कि पिछले 20सालों में नैनी झील कई दफा शून्य में समा चुकी है। सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार साल 2003 से 2017 के बीच नैनी झील 10 बार शून्य के स्तर पर पहुंच चुकी है। विदित हो कि झील की सतह स्तर 90.99 फीट मानी जाती है। जब पानी इससे 12 फीट नीचे चला जाता है तो इसे शून्य स्तर माना जाता है। इस वर्ष वर्षा ऋतु की समाप्ति के समय अर्थात अगस्त-सितम्बर माह में नैनी झील अपने मानक के अनुसार 12 फीट तक भर गई थी, लेकिन इन सात माह के अंतराल में झील का जल स्तर 10 फीट नीचे पहुंच गया है ।अब हालात कुछ ऐसे हैं कि हर रोज इंच-दर-इंच पानी घट रहा है। हर रोज कम हो रहे नैनी झील के जल स्तर से चिंताएं बढ़ने लगी है। वर्ष 2017 की गर्मियों में झील का जो विचलित करने वाला रूप देखा गया था ,ऐन वैसी ही आशंकाएं इस बार भी जन्म लेने लगी है ।वह इसलिए क्योंकि रोजाना 8 लाख लीटर पानी का दोहन झील के जलागम क्षेत्रों से जल संस्थान द्वारा किया जा रहा है। ऐसे में पर्यावरणविदों ने जलागम क्षेत्रों से रोजाना हो रहे जल दोहन पर नियंत्रण कर पानी लगातार रोस्टर से वितरित करने पर बल दिया है। जाहिर है कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में भी उत्तराखंड की प्राचीन झील सिकुड़कर बहुत ही छोटी हो जाएगी ।हालांकि शासन -प्रशासन एवं समाज के बुद्धिजीवी तबके सहित आम जन में भी यह समझ बनी है कि जल दोहन नियंत्रित कर पानी की बर्बादी को रोकने के लिए गंभीर प्रयास किये जाने चाहिए और इसके लिए संबंधित विभागों द्वारा कार्य योजना बना कर गंभीर प्रयास किये जाना जरूरी है। साथ ही जल संरक्षण के लिए जन जागरूकता की प्रयास भी अब अपरिहार्य हो गए हैं ।स्पष्ट है कि अगर ऐसे सामयिक प्रयास नहीं किये गये तो जीवनदायिनी झील को बचा पाना आने वाले समय में कठिन हो जायेगा। हालांकि बीते वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष मानसून वर्षा अच्छी हुई थी, जिसके चलते नैनी झील पुनः अपने स्वरूप में आ गई थी। बावजूद इसके नैनी झील का जल स्तर इस समय तकरीबन 7 फीट नीचे तक पहुंच गया है । यद्यपि इससे पूर्व झील की इस हालत को लेकर स्थानीय नागरिक एवं पर्यावरणविद ही नहीं बल्कि पीएमओ कार्यालय सहित प्रदेश सरकार भी अपनी चिंता जाहिर कर कर चुकी है ,तथापि इसके बाद भी यहां कोई ठोस नीति अब तक नही बन सकी।मानसून के बाद से अब तक नैनीताल में पर्याप्त वर्षा नही होने से जहां झील पूरी तरह रिचार्ज नहीं हो पाई है , वहीं जल संस्थान झील के जलागम क्षेत्रों से रोजाना लाखों लीटर पानी नलकूपों के माध्यम से निकाल रहा है। याद रहे कि नैनी झील 40 प्रतिशत भूमिगत जल से तथा 60 प्रतिशत बरसात के जल से रिचार्ज होती है। बता दें कि सूखाताल झील से लगे बारापत्थर स्नोव्यू व पालिटेक्निक की पहाड़ियां नैनी झील का जलागम क्षेत्र है । बरसात में इन क्षेत्रों के जल स्रोतों व बरसात के पानी से सूखाताल रिचार्ज होती है। भू वैज्ञानिकों के मुताबिक सूखाताल झील से पानी भूमिगत होकर नैनी झील को रिचार्ज करता है ,लिहाजा अगर अब भी पर्याप्त वर्षा नहीं हुई तो गर्मियों में जल संकट गहराने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। पर्यावरणविद् प्रो। अजय रावत के अनुसार का झील में लगातार गाद भरने से इसका जल संग्रहण क्षेत्र संकुचित हो गया है। सरकारी तंत्र को पानी के लिये अत्यधिक जल दोहन झील के जलागम क्षेत्रों से नहीं करना चाहिये। झील के मानवीय कारणों से जल स्तर कम होने को गंभीरता से लेना होगा।

Leave A Reply

Your email address will not be published.