‘नौकरशाही’ की नस-नस में ‘भ्रष्टाचार’, कैसे पार पाए ‘सरकार’
रोके नहीं रुक रहा पूल का खेल, सिंचाई विभाग के बाद अब लोक निर्माण विभाग के टेंडर में भी भ्रष्टाचार का खेला
ऊधमसिंहनगर। सूबे की सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति और भ्रष्टाचारियों पर यथासंभव तमाम करारे प्रहारों के बावजूद उत्तराखंड में भ्रष्टाचार का ग्राफ लगातार बढ़ता ही जा रहा है। आलम यह है कि प्रदेश के वे इलाके भी, जो आज से पहले तक भ्रष्टाचार की संस्कृति से कमोवेश अछूते से थे, अब भ्रष्टाचार के क्षेत्र में नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। पिछले दो-तीन साल के भीतर विजिलेंस द्वारा राज्य के भीतर की गई ब्राइबरी ट्रैप की कार्यवाहियों पर दृष्टिपात करें, तो हाल के दिनों में उधम सिंह नगर जिले में भ्रष्टाचार के सर्वाधिक मामले पकड़ में आए हैं और उधम सिंह नगर जिले ने भ्रष्टाचार के मामले में सूबे के एक अन्य मैदानी जिले हरिद्वार को पीछे छोड़ते हुए पहले पायदान पर कब्जा कर लिया है ।देखा जाए तो राज्य में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में यहां की नौकरशाही का बड़ा योगदान है। देखने में आया है कि सरकार द्वारा भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के तमाम सामयिक प्रयासों के बावजूद उत्तराखंड की ढीठ नौकरशाही भ्रष्टाचार का कोई ना कोई रास्ता निकल ही लेती है ।राज्य की नौकरशाही ने इन दिनों भ्रष्टाचार का जो नया तरीका ईजाद किया है ,वह है- पूल का खेल। जिसके तहत किसी भी सरकारी कार्य के टेंडर आवंटन में ही मन माफिक खेल कर दिया जाता है ।यह खेल इतनी होशियारी और सफाई से किया जाता है कि सामान्यतया भ्रष्टाचार के इस खेल को कोई भांप ही नहीं पाता है ।बात उधम सिंह नगर जिले की करें तो हाल ही में जिले की भ्रष्ट नौकरशाही ने सरकारी टेंडरों में पूल के खेल का सहारा लेकर बड़ा गड़बड़ झाला करने की व्यूह रचना की थी, लेकिन उनकी करतूत मीडिया से छिपी नहीं रह सकी और टेंडर आवंटन में गड़बड़ी सार्वजनिक होने पर मामले की जांच करने का आश्वासन देना पड़ा ,लेकिन इस जांच की आंच किसी भ्रष्ट नौकरशाह तक पहुंच ही जाएगी ,इसकी संभावना बेहद कम है ।वह इसलिए क्योंकि जांच मजिस्टेरियल न होकर विभागीय है और विभागीय जांच में पक्षपात तथा लीपा पोती की गुंजाइश बनी ही रहती है। सो, हाल के दिनों में अच्छा खासा चर्चित हुए उपरोत्तफ दोनों मामले जिनमें पूल के खेल का सहारा लेकर टेंडर आवंटित किए गए हैं ,अगर विभागीय जांच की खानापूर्ति के पश्चात विमर्श से गायब हो जाएं तो यह आश्चर्य का विषय नहीं होगा। वैसे उपरोत्तफ से दोनों मामलों पर सतही दृष्टिपात से ही पूल के खेल के सहारे की भ्रष्टाचार की कहानी पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है ।बात पहले मामले की करें ,तो यह मामला उधम सिंह नगर जिले के सिंचाई विभाग से संबंधित है। जिसमें15 फरवरी को रुद्रपुर के सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता के कार्यालय में ई-टेंडर के माध्यम से गूलरभोज लगभगमें 50-50 लाख रुपए के पांच अलग-अलग निर्माण कार्यों के लिए निविदाएं आमंत्रित की गई थी, पर टेंडर बिड डालने की प्रक्रिया से पूर्व ही अधिशासी अभियंता के कार्यालय में ठेकेदारों और अधिकारियों के गठजोड़ से टेंडर को लेकर पूल हो गया.जिसके एवज में सभी 40 ठेकेदारों को लगभग 44-44 हजार रुपए भी मिल गए । सूत्र बताते हैं कि सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता कार्यालय परिसर में ही टेंडर पूलिंग की पूरी प्रक्रिया को ठेकेदारों द्वारा अंजाम दिया गया था. हालांकि अधिशासी अभियंता अपने कार्यालय के परिसर में ठेकेदारों की पूलिंग की बात को सिरे से खारिज करते हैं, लेकिन टेंडर वाले दिन के सीसीटीवी फुटेज की जांच करके दूध का दूध और पानी का पानी किया जा सकता है। जहां तक दूसरे मामले का सवाल है ? तो उपरोक्त मामला भी उधम सिंह नगर जिले के लोक निर्माण विभाग से संबंधित है। बताना होगा कि किच्छा क्षेत्र में चार सड़कों के निर्माण व पुननिर्माण का टेंडर पिछले माह आमंत्रित किए गए थे और निवदाओं के खुलने का समय दो मार्च रखा गया था, लेकिन निविदाएं निर्धारित तिथि को ना खोली जाकर 7 मार्च की शाम गिने-चुने निविदाकारों की उपस्थिति में खोली गई ,वो भी तब जब मामला मीडिया तक पहुंच गया। दूसरी ओर 07 की शाम टेंडर खुलने के बाद ठेकेदारों ने हंगामा कर दिया, कुछ ठेकेदारों का कहना था कि टेंडर खुलने की जानकारी उन्हें नहीं दी गई, उनका आरोप था कि विभाग के कुछ वर्षों से जमें अधिकारियों ने अपने चहेते ठेकेदारों को टेंडर देने के लिए पूरा खेल किया है. मजेदार बात यह कि लोक निर्माण विभाग के सहायक अभियंता प्रकाश लाल ने खबर लिखे जाने तक टेंडर प्राप्त करता ठेकेदारों के नाम उजागर नहीं किए थे ।जाहिर है कि इस पूरे मामले में कहीं ना कहीं कुछ तो झोल है। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि उपरोक्त दोनों मामले तो नौकरशाही द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार बड़े छोटे से नमूने भर हैं. सच तो यह है कि सरकारी निवदाओं में नौकरशाह बड़े से बड़ा खेल कर देते हैं और सरकार को इसकी भनक तक नहीं लग पाती. होता यह है कि कुछ पुराने अधिकारी ठेकेदारों से मिलकर निर्धारित तिथि के बाद भी उनके टेंडर शामिल करते हैं,और फिर पूल करके टेंडर अपने चहेते ठेकेदारों को मन माफिक दर पर दे देते हैं .जिसके परिणाम स्वरुप सरकार को मोटा नुकसान होता है।