भ्रष्टाचार: ‘सिंघम’ बनकर ‘सदानंद’ ने रचा इतिहास

दाते के नेतृत्व में एसआईटी ने भ्रष्ट अफसरों को सिखाया सबक

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रूद्रपुर। एनएच 74 भूमि मुआवजा घोटाले की जांच कर रही एसआईटी का नेतृत्व कर रहे जिले के कप्तान डा0 सदानन्द दाते ने न सिर्फ उधमसिंहनगर बल्कि पूरे प्रदेश में इतिहास रच दिया है। एसएसपी दाते ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि कानून के हाथ वास्तव में लम्बे होते हैं और कानून के रखवाले अगर ईमानदार हों तो कितना भी प्रभावशाली व्यक्ति क्यों न हो वह कार्रवाई से नहीं बच सकता। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के रूप में एसएसपी सदानन्द दाते ने जब से उधमसिंहनगर में कार्यभार संभाला है तभी से पुलिस महकमे में नये परिवर्तन देखने को मिले हैं। अपनी ईमानदार कार्यशैली की बदौलत डा0 दाते उधमसिंहनगर ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में युवाओं के रोल मॉडल बन चुके हैं। महाराष्ट्र के छोटे से गांव से आईपीएस अफसर बने डा0 सदानन्द दाते की ख्वाहिश बचपन से डाक्टर बनने की थी। गांव से ही प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने मेडिकल प्रवेश परीक्षा दी और एमबीबीएस के लिए सलेक्ट हो गये। 2003 में उन्होंने एमबीबीएस पास कर लिया। तब वह अपने गांव में सबसे पहले डाक्टर बने लेकिन इसमें उनका मन नहीं लगा और उन्होंने सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू कर दी। आखिरकार उन्हें सफलता मिली और वह अपने गांव ही नहीं बल्कि आस पास के इलाके में पहले आईपीएस अफसर बने। ट्रेनिंग के बाद कई जगह तैनात रहने के बाद उन्हें उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून का एसएसपी बनाया गया। दून में अपनी कार्यप्रणाली की बदौलत डा0 दाते ने अपनी अलग पहचान बनाई। सख्त कार्यशैली के चलते वह कई बार सुर्खियों में भी रहे। इसके बाद उन्हें नैनीताल जिले में एसएएसपी बनाया गया। यहां भी उन्होंने अपनी तेज तर्रार कार्यशैली से अलग पहचान बनाई। 2007 बैच के आईपीएस सदानन्द दाते को करीब दो वर्ष पहले उधम सिंह नगर जिले की कमान सौंपी गयी। यहां पर अब तक के कार्य कार्यकाल में एसएसपी ने कई उपलब्धियां अपने नाम दर्ज की है। लेकिन एनएच 74 भूमि मुआवजे घोटाले की जांच में उन्होंने जिले में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में नया इतिहास रच दिया है। भ्रष्टाचार के मामले में जितनी बड़ी कार्यवाही एसएसपी डा0 दाते की जांच के आधार पर हुई है उससे पहले पूरे प्रदेश में इतनी बड़ी कार्रवाई नहीं हुई। तीन सौ करोड़ से अधिक के इस महाघोटाले की जांच पिछले करीब एक वर्ष से एसआईटी कर रही है और एसआईटी का नेतृत्व स्वयं एसएसपी सदानन्द दाते कर रहे हैं। घोटाले की जांच में रात दिन एक कर चुके एसएसपी दाते को कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ा। शुरूआत में छोटी मछलियों पर शिकंजा कसने के बाद जब इस मामले में उनसे भी ओहदे में बड़े अधिकारियों के नाम सामने आये तो उनके सामने असमंजस की स्थिति पैदा हो गयी लेकिन दाते ने ईमानदारी और अपने फर्ज का साथ नहीं छोड़ा और निष्पक्ष जांच करके रिपोर्ट शासन को सौंप दी। एसएसपी दाते पहले ही इस बात के संकेत दे चुके थे कि जांच में जो साक्ष्य उन्हें मिले है उनके आधार पर शासन भी इस घोटाले में लिप्त बड़े अधिकारियों को नहीं बचा पाएगा। एसएसपी दाते की कार्यशैली का ही परिणाम है कि आज शासन को घोटाले में लिप्त आईएएस पंकज पाण्डेय और चंद्रेश कुमार यादव को निलंबित करना पड़ा है। इससे पहले एसआईटी की जांच के आधाार पर पांच पीसीएस अफसरों समेत 22 लोगो की गिरफ्रतारी हो चुकी है। इसमें दो नायब तहसीलदार, राजस्व विभाग के कर्मचारी, किसान और बिचौलिये शामिल हैं। मामले में एक एसडीएम और तहसीलदार जेल में हैं। यही नहीं अब तक करोंड़ों रूपये की वसूली भी की जा चुकी है। एसआईटी ने प्रदेश में पहली बार घोटाले मे तेजी से निष्पक्ष कार्रवाई करके भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों के लिए एक नजीर भी पेश की है। हालांकि विपक्ष इस घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग कर रहा था लेकिन एसआईटी ने अपनी जांच में सीबीआई से भी अधिक तेजी दिखाकर साबित कर दिया कि जांच अधिकारी अगर निष्पक्ष और ईमानदार हों तो किसी भी जांच में कोई बाधा नहीं आती। ऐसा नहीं है कि प्रदेश में यह पहला घोटाला है लेकिन अन्य घोटालों की तुलना में एक साल के भीतर इतनी तेजी से जांच कर पांच अधिकारियों समेत 22 को जेल भेजना और दो आईएएस अधिकारियों का निलंबन एसआईटी के लिए बड़ी उपलब्धि है। डा0 दाते के नेतृत्व में एसआईटी ने जो काम किया है उसका बखान करने से स्वयं सीएम त्रिवेन्द्र रावत भी नहीं चूकते। एसएसपी दाते की अगुवाई में जब एसआईटी का गठन हुआ तब शुरूआत में इसको लेकर लोगों में शंकाए थी और विपक्ष सरकार पर मामले को दबाने का आरोप भी लगाता रहा। लेकिन जब तेज तर्रार आईपीएस डा0 दाते ने घोटाले की परतें उधेड़नी शुरू की तो घोटाले बाजों में खलबली मच गयी और धीरे धीरे घोटाले की कई परतें खुलती गयी और एसआईटी के शिकंजे में आईएएस अधिकारी भी आ गये। शुरू से ही जीरो टॉलरेंस का दावा कर रहे सीएम त्रिवेन्द्र रावत भी जांच के दौरान लगातार एसआईटी पर ही पूरा भरोसा करते रहे यही कारण रहा कि एसएसपी दाते को उन्होंने केन्द्र के लिए रिलीव भी नहीं होने दिया।जब एसएसपी के जाने की चर्चाएं तेज हुई तो मुख्यमंत्री ने स्वयं इन चर्चाओं को यह कहकर विराम दिया था कि जब तक एसआईटी की जांच पूरी नहीं होती तब तक दाते यहीं रहेंगे। हालाकि दो आईएएस के निलंबन के बाद अब एसएसपी डा0 दाते का यहां से जाना तय मना जा रहा है लेकिन श्री दाते ने जिले में रहकर जो नजीर पेश की है वह उत्तराखण्ड के इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में लिखी जाएगी।
रील लाइफ नहीं रियल लाइफ के सिंघम हैं एसएसपी दाते
रुद्रपुर,12 सितम्बर। लाइट, कैमरा और एक्शन के साथ ही फिल्मी पर्दे पर रील लाइफ के सिंघम का अवतरण होता है और सिंघम का एक्शन देख दर्शक जोरदार तालियां बजाते हैं लेकिन रील लाइफ का यह सिंघम मात्र तीन घंटे में सिमट जाता है लेकिन रियल लाइफ के सिंघम का यह शो अनवरत चलता है और रियल लाइफ के असली सिंघम जनपद के एसएसपी डा- सदानंद दाते हैं जो एक कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार पुलिस अधिकारी होने के साथ साथ मानवता भरे भावों से भी परिपूर्ण हैं। आज की युवा पीढ़ी जो अपना आदर्श रील लाइफ के हीरो में ढूढ़ती है वह उन्हें रियल लाइफ के हीरो एसएसपी डा- दाते में देखनी चाहिए और उनसे प्रेरणा लेकर राष्ट्र हित में कार्य करना चाहिए। अमूमन माना जाता है कि पुलिस अधिकारी कठोर दिल होते हैं और उनकी छवि जनता के दिलों में इस प्रकार की होती है कि ‘यार पुलिस से पाला न ही पड़े तो अच्छा है’। जनता के बीच पुलिस की यह छवि को कमोबेश मिटाने का प्रयास एसएसपी डा- दाते ने किया है। कुछ समय पूर्व जब एसएसपी दाते गदरपुर की ओर जा रहे थे तो रास्ते में एक सड़क हादसे में बच्चा घायल हो गया था तो उन्होंने अपनी गाड़ी रूकवाकर उस बच्चे को अस्पताल पहुंचवाया था और काफी देर तक वह वहां रूके रहे। अमूमन पुलिसकर्मी तो क्या आम जनमानस भी सड़क हादसों में घायल व्यक्ति को देखकर अपना पल्ला झाड़ लेता है। लेकिन एसएसपी डा- दाते ने इससे इतर अपनी छवि पेश की और समाज में एक संदेश दिया कि सड़क हादसे में घायल व्यक्ति की जान बचाना हर किसी का कर्तव्य है। युवा एसएसपी डा- दाते युवाओं के साथ साथ पुलिस विभाग के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं।
जनपदवासियों के लिए मसीहा बनकर आये डा-दाते
रुद्रपुर,12 सितम्बर। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डा- सदानंद दाते ने जनपद में जो कार्य किये हैं उन्हें जनपद की जनता कभी भूल नहीं पायेगी। वास्तव में उन्होंने कानून व्यवस्था दुरूस्त करने से लेकर लीक से हटकर भी कई ऐसे काम किये हैं जो समाज को प्रेरणा देने का काम करते हैं। कानून व्यवस्था दुरूस्त करने के अलावा एसएसपी दाते ने यातायात अभियान,साइबर क्राइम और नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाकर क्षेत्र की जनता को जो जगाने का प्रयास किया है वह बेहद सराहनीय है। एसएसपी दाते ने सर्वप्रथम शहर की बिगड़ी यातायात व्यवस्था को सुधारने की दिशा में पहल की। यातायात व्यवस्था सुचारू हो और सड़क हादसों में कमी आये इसके लिए उन्होंने यातायात पुलिस के साथ साथ सीपीयू को भी सक्रिय किया और विभिन्न स्थानों पर यातायात व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए अभियान चलाये। रूद्रपुर शहर में ही नहीं बल्कि जनपद के अन्य शहरों में भी यातायात व्यवस्था सुचारू करने के लिए समय समय पर पुलिस अभियान चलाती रही जिसके नतीजे भी सामने आये और काफी हद तक सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगा और यातायात व्यवस्थित हुआ। एसएसपी दाते ने नशे के खिलाफ जनपद भर में व्यापक अभियान चलाया और पूरे जिले की पुलिस फोर्स को सक्रिय कर दिया जिसका परिणाम भी सामने आया। एसएसपी दाते के निर्देश पर जनपद की पुलिस ने व्यापक छापे मारी अभियान चला कर विभिन्न शहरों से नशीले पदार्थों के जखीरे को बरामद किया और अनेकों नशे के सौदागरों को जेल की सलाखों के पीछे धकेला। पहले मोहल्लों में मेडिकल स्टोरों पर खुलेआम नशीले पदार्थ बिक्री किये जाते थे लेकिन एसएसपी डा- दाते के सख्त तेवर देखते हुए उन पर कड़ाई से अंकुश लगाया गया। एसएसपी दाते ने नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाते हुए समय समय पर कई कार्यक्रम भी आयोजित कराये। एसएसपी दाते स्वयं जिले भर के स्कूलों में पहुंचे और छात्र छात्रओं को भी नशे के प्रति जागरूक रहने की जानकारी दी कि किस प्रकार नशे के दुष्प्रभाव से व्यक्ति का जीवन नष्ट हो जाता है। एसएसपी दाते की पहल से स्कूली बच्चों ने भी रैलियां निकाल कर नशे के खिलाफ अभियानचलाया। एसएसपी डा- दाते ने जनपद में कानून व्यवस्था बनाये रखने को लेकर उल्लेखनीय कार्य किये हैं। बढ़ते अपराधों की रोकथाम को लेकर समय समय पर उन्होंने टीमें गठित कीं और ऐसे कई अपराधों का खुलासा किया जिन अपराधों के चलते जनपद के लोग खौफ के साये में जी रहे थे। विगत दिनों ही एसएसपी ने सर्वेश्वरी इंकलेव और सिंह कालोनी में हुई डकैती और हत्या के मामले का भी खुलासा किया था जिसके लिए एसएसपी के नेतृत्व में पिछले कई महीनों से पुलिस की टीमें देश भर के अनेक राज्यों में डकैती और हत्या के आरोपियों की तलाश में खाक छान रही थी। आखिरकार एसएसपी के कुशल दिशा निर्देशन पर पुलिस ने इस बेहद संगीन जुर्म का खुलासा कर मारवाड़ी गैंग के बदमाशों को गिरफ्रतार कर लिया था। इसके अलावा ऐसी अन्य कई आपराधिक घटनाओं का भी डा- दाते के निर्देश पर पुलिस टीम ने अनावरण किया। एसएसपी डा- दाते बेहद एकाग्रचित्त, गंभीर व्यक्तित्व के अधिकारी हैं। फिलहाल उनके जनपद से बाहर जाने की चर्चाएं पिछले काफी समय से चल रही हैं लेकिन उनकी कार्यशैली और कार्यक्षमता को देखते हुए क्षेत्र की जनता नहीं चाहेगी कि एसससपी डॉ-दाते जनपद से अन्यत्र जायें। लेकिन यदि डा- दाते का स्थानांतरण हो गया तो ऐसे अधिकारी की भरपाई करना आने वाले अधिकारी के लिए बेहद मुश्किल भरा होगा।
अब भ्रष्ट अफ़सरों के सियासी आकाओं की भी बढ़ी बेचैनी!
रूद्रपुर। उधमसिंहनगर जनपद में हुए महाघोटाले में एसआईटी की जांच रिपोर्ट के आधार पर दो आईएएस अफसरों पंकज कुमार पांडे और चंद्रेश कुमार यादव को निलंबित तो कर दिया है, मगर सरकार की कार्रवाई से अब ये सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या इन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई अंजाम पर पहुंचेगी। सवाल यह भी है कि इस घोटाले में शक की सुई जिन राजनेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है, क्या जांच की दिशा उस ओर बढ़ेगी या केवल आईएएस अफसरों पर कार्रवाई कर जीरो टॉलरेंस का उद्घोष करने वाली सरकार अपनी छवि का निर्माण करने तक सीमित रहेगी। इन सवालों के बीच अब कुछ सफेदपोशों की बेचैनी भी बढ़ गयी है। सफेदपोश जांच के घेरे में आयेंगे या नही इसे लेकर अब हवाओं में सवाल तैर रहे हैं इन सवालों की वजह यह भी है क्योंकि राज्य गठन से लेकर अब तक की आईएएस अफसरों के खिलाफ हुई कार्रवाइयां और बड़े से बड़े घोटाले में किसी भी सियासी आका का बाल भी बांका नहीं हुआ है। हालांकि यह कहना अभी जल्दी है कि सरकार आगे कोई और सख्त कार्यवाही करती या नहीं लेकिन प्रदेश में अब तक केवल एक आईएएस अफसर एसके लांबा का नाम पटवारी भर्ती घोटाले में नाम सामने आया था। सभी आईएएस अफसरों को निलंबन के बाद बचा लिया गया वह भी तब जबकि जांच रिपोर्टों में बर्खास्त करने तक की सिफारिशें की गई। आईएएस एसके लांबा पर कार्रवाई भी नारायण दत्त तिवारी की कांग्रेस सरकार के समय पटवारी भर्ती घोटाले में दोषी पाए जाने पर हुई थी। पूर्व कांग्रेस शासनकाल में ही आईएएस हरीश चद्र सेमवाल नजूल भूमि घोटाला में केवल निलंबित हुए और बाद में उन पर कोई सख्त कार्यवाही नहीं हुई। विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्रित्वकाल में टिहरी विस्थापितों की जमीन गैर विस्थापितों को देने वाले आम बाग (ऋषिकेश) घोटाले में डा- रणजीत सिन्हा पर बर्खास्तगी की तलवार लटकी थी लेकिन पूर्व सीएम हरीश रावत की सरकार ने उनकी एक पदोन्नति रोकने की संस्तुति कर मामले को रफा दफा कर दिया था। आईएएस एस- राजू पर हाईकोर्ट ने 50 हजार का जुर्माना किया था लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं हुई। इसी तरह आईएएस अफसरों पर कार्रवाई का प्रदेश में जो इतिहास रहा है, वह फिर से यह संदेश दे रहा है कि क्या एनएच घोटाले के मामले में विभागीय जांच के नाम पर लीपापोती कर दी जाएगी। इधर निलंबन के आदेश के बाद कहा जा रहा है कि यह अफसरों के विरुद्ध हल्की कार्रवाई है और बाद में जांच अधिकारी की नियुक्ति से लेकर जांच तक कई ऐसे पेच हैं जो बाद में मामले का पटाक्षेप करने में सहायक हो सकते हैं। सवाल यह भी है कि जहां पीसीएस अफसरों पर मुकदमे कर दिए गए वहीं आदेश में आईएएस अफसरों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए चार्जशीट जारी करने व जांच अधिकारी की नियुक्ति की कार्यवाही अलग से करने की बात कही गई है।

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