मूल निवास 1950 लागू करने के लिए उत्तराखंड में होगा बड़ा आंदोलन

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बागेश्वर की सरयू नदी में स्थाई निवास प्रमाण पत्र की प्रतियां बहाई
बागेश्वर(उद संवाददाता)। बागेश्वर में मूल निवास भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति, उत्तराखंड ने बागेश्वर की सरयू नदी में स्थाई निवास प्रमाण पत्र की प्रतियां बहाई। इसके साथ ही जमीनों की लूट के रास्ते खोलने के लिए लागू किए गए भू कानून की चिता जलाई। इस मौके पर सरयू नदी के तट पर बागेश्वर में आयोजित सभा को संबोधित करते हुए मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी और सह संयोजक लुशुन टोडरिया ने कहा कि बागेश्वर की जमीन आंदोलन की जमीन रही है। चाहे देश आजादी का आंदोलन रहा हो या उत्तराखंड राज्य आंदोलन, इस जमीन ने आंदोलन को धार दी है। बाबा बागनाथ की जमीन से एक बार फिर बड़े आंदोलन की शुरुआत हो रही है। बाबा बागनाथ के आशीर्वाद से मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति आंदोलन को आगे बढ़ाएगी। सरयू नदी के तट पर स्थायी निवास की प्रतियां बहाते हुए युवाओं ने कहा कि अब लड़ाई आरपार की होगी। सरकार ने जल्द मूल निवास 1950 लागू नहीं किया तो उत्तराखंड आंदोलन से भी बड़ा आंदोलन उत्तराखंड में होगा। पहाड़ी आर्मी के अध्यक्ष हरीश रावत, बेरोजगार संघ कुमांऊ के संयोजक भूपेंद्र कोरंगा, कार्तिक उपाध्याय ने कहा कि हमें हिमाचल की तरह सशत्तफ भू कानून चाहिए। सीमित मात्रा में बची कृषि भूमि की खरीद फरोख्त पर पूरी तरह से रोक लगनी चाहिए। समिति के सदस्य अनिल डोभाल, दीपक ढोंडियाल, प्रांजल नौडियाल, मनीष सुंदरियाल, सौरभ भट्टð, मयंक चौबे, जितेंद्र रावत, योगेश कुमार, बसंत बल्लभ पंडा, देवेंद्र बिष्ट, विनीत सकलानी, प्रकाश बहुगुणा, हरेंद्र सिंह कंडारी, सुमित कुमार ने कहा कि अंकिता भंडारी के हत्यारों को भी फांसी देने की मांग की। साथ ही कथित वीआईपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग उठाई गई।आज बाहर से आने वाले लोगों ने अपने फर्जी स्थाई निवास बनाकर हमारे संसाधनों पर डाका डाल दिया है। नौकरियां, जमीन से लेकर हर तरह के संसाधनों को लूटा जा रहा है। मूल निवासी अपने ही राज्य में धक्के खाने के लिए मजबूर हैं। इस मौके पर जितेंद्र रावत, नारायण सिंह बिष्ट, जसवंत सिंह बिष्ट, महेश चंद्र पांडे, आनन्द सिंह, दयाल सिंह पुंडीर, गोविंद सिंह, केदार सिंह कोरंगा, अवतार सिंह, भूपेंद्र सिंह, शेखर भट्टð, ललित सिंह मेहता, सूरज दुबे, भुवन कठैत ने कहा कि आज हमारी सांस्कृतिक पहचान खतरे में है। जब हमारा राज्य बचेगा, तभी हमारी खिचड़ी संकरांद, घुघुतिया त्यार, मरोज त्योहार बचेगा। आज डेमोग्राफी बदलने से सबसे खतरा उत्तराखंड की संस्कृति को होने जा रहा है।

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