सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने की सिल्क्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों के हौसले और बचाव अभियान की तारीफ, संकट की घड़ी में पूरा देश एकता के धागे में बंध गया था
देश के नागरिकों को उनकी भाषा में हो फैसलों की जानकारी,20 हजार फैसले हिंदी में अनुवाद कर वेबसाइट पर अपलोड: चंद्रचूड़
देहरादून(उद संवाददाता)। इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज केशव चंद्र धूलिया की स्मृति में कार्यक्रम में हिस्सा लेने देहरादून स्थित एफआरआई पहुंचे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री डीवाई चंद्रचूड़ ने ‘Human dignity and constitution values’ विषय पर व्याख्यान दिया। इस मौके पर मुख्य अतिथि सीजेआई चंद्रचूड़ ने एक शेर सुना कर काफी कुछ कह गए। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका हर घर तक पहुंचे यही उनका लक्ष्य है। नागरिकों तक न्याय पहुंचे। आम जनता को उनकी भाषा में फैसलों की जानकारी हो,इसके लिए उनके कार्यकाल में शुरुआत की गई है। शनिवार की सुबह एफआरआई के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने संबोधन की शुरुआत में सिलक्यारा सुरंग दुर्घटना के बचाव अभियान को याद करते हुए इंजीनियर, टेक्नीशियन, शासन-प्रशासन की सफल व मजदूरों के हौसले की तारीफ की। उन्होंने कहा कि इस संकट की घड़ी में पूरा देश एकता के धागे में बंध गया। मानवीय कोशिश और प्रार्थना से 41 मजदूरों को सुरंग से सकुशल बाहर निकाल लिया गया। इस मिशन पर पूरे विश्व की निगाहें टिकी हुई थी। मशीन के खराब हो जाने के बाद अन्य आंतरिक विकल्पों को आजमाया गया और सभी 41मजदूरों की जिंदगी बच गयी। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने इस बचाव अभियान में जुटी टीम व देश की जनता का आभार व्यत्तफ किया। मुख्य न्यायाधीश ने मराठी मिश्रित हिंदी में अपनी बात शुरू करते हुए शेष व्याख्यान अंग्रेजी में दिया। उन्होंने कहा कि अक्सर अंग्रेजी न जानने से हमारे नागरिक न्यायपालिका से दूर रहते हैं। और उन्हें कई फैसलों की जानकारी नहीं हो पाती। भाषा न जानना कई बार युवकों के लिए एक बाधा बन जाती है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में अंग्रेजी में फैसले दिए जाते हैं। जबकि जिला न्यायालयों में बहस अंग्रेजी में नहीं होती है और उच्च न्यायालय में बहस व फैसले अंग्रेजी में होते हैं। यही नहीं, कानूनी भाषा काफी कठिन भी होती है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में 1950 से अभी तक 36 हजार फैसले हुए हैं। ये फैसले कानून के छात्रों के अलावा जनता तक पहुंचाने की कोशिश की गई और सुप्रीम कोर्ट के 30 हजार फैसलों के हिंदी में अनुवाद किया गया। जबकि इनमें से 20 हजार फैसले हिंदी में अनुवाद करके कोर्ट वेबसाइट पर अपलोड भी कर दिए गए। उन्होंने कहा कि आईटी मद्रास के सॉफ्रटवेयर के तहत हिंदी में अनुवाद किया गया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अधिवत्तफा इन फैसलों का अध्ययन करें, उपयोग करें । आजादी कई देशों को मिली लेकिन लोकतंत्र भारत में ही फला फूला। अपने एक घण्टे के सम्बोधन में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारी आजादी के साथ साथ कई देशों को आजादी मिली लेकिन केवल हमारा ही ऐसा देश है जिसमे लोकतंत्र फला फूला जबकि लोकतंत्र पर प्रहार लगातार जारी रहे। उन्होंने कई उदाहरण दिए कि किस प्रकार से संविधान में कई संशोधन किये गए जो हमारी देश की आधुनिक सोच को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि लोकशाही इतनी घिर कर चुकी है कि तानाशाही प्रवृति को नेपथ्य मे जाना होगा। चूंकि लोकतंत्र में सामूहिक जिम्मेदारी होती है। मैं.. मैं न चल पाएगा । अपनी बात आगे बढ़ाते हुए एक शेर भी कहा ,चमन में इखतिलात- ए-रंग-ओ-बू से बात बनती है हम ही हम हैं तो क्या हम हैं, तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो। संबोधन के बाद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने डिबेट व निबंध प्रतियोगिता के विजेताओं को सम्मानित कर बेहतर भविष्य की कामना की। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के जज सुधांशु धूलिया, पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक, हाईकोर्ट में जज मनोज तिवारी,डीपी गैरोला, पप्र पुरुस्कार से सम्मानित माधुरी बड़थ्वाल, कर्मभूमि फाउंडेशन की अध्यक्षा सुमित्रा धूलिया, सचिव हिमांशु धूलिया, तिग्मांशु धूलिया, अनुपमा जोशी समेत विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी हस्तियां, ब्लाइंड स्कूल व कानून के छात्र मौजूद रहे। वहीं प्रथम जस्टिस केशव चन्द्र धूलिया निबंध प्रतियोगिता वीरेंद्र सिंह राठौड़ ने जीती। उन्हें 25 हजार का कैश पुरुस्कार दिया गया। 20 नवंबर को हुई निबंध प्रतियोगिता में यूपीईएस के जीत सिंह व उत्तरांचल विवि के अक्षत गोयल ने क्रमशः दूसरा व तीसरा स्थान हासिल किया। इन्हें 15 व 10 हजार का कैश प्राइज दिया गया। कुल 54 छात्रों ने निबंध प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। डिबेट प्रतियोगिता के विजेता में शताक्षी शर्मा व पार्थ नारायण सिंह अंशवीर व मनोनीत बेस्ट स्पीकर शताक्षी शर्मा रहे।