अबकी बार ‘छह दिनों’ का होगा ‘दीपोत्सव’

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इस धनतेरस अरसे बाद बन रहे पांच विशिष्ट योग, प्रीत योग भी बनाएगा धनतेरस को खास
रूद्रपुर। आमतौर पर दीपावली उत्सव पांच दिनों तक ही चलता है ,लेकिन तिथियों के भुग्त भोग्य यानि घटने बढ़ने के कारण इस दफे का दीपोत्सव पांच के बजाय छह दिन चलेगा। दीपावली महापर्व की शुरुआत शुक्रवार 10 नवंबर 2023 को धनतेरस से होगी।इस बार छोटी दीपावली या रूप चौदस का आरंभ 11 नवंबर को दोपहर 1ः57 पर होगा और यह तिथि 12 नवंबर को दोपहर 2ः44 पर समाप्त होगी। क्योंकि रूप चतुर्दशी को रूप निखारा जाता है और इस हेतु सुबह स्नान करने की परंपरा है, इसलिए उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए रूप चौदस रविवार 12 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी और इसी दिनअर्थात रविवार 12 नवंबर 2023 को दीपावली भी मनाई जाएगी ।

 

अन्नकूट व गोवर्धन पूजा मंगलवार 14 नवंबर 2023 होगी तथा बुधवार 15 नवंबर 2023 को भैया दूज के साथ ही इस महापर्व का सामापन हो जाएगा। हर बार की तरह दीपावली महापर्व का आरंभ धन्वंतरि जयंती अर्थात धनतेरस से होगा। धनतेरस पर अबकी बार लगभग 59 वर्षों के बादबन रहे पांच विशिष्ट योग गजकेसरी, हर्ष, उभयचारी, दुर्धरा और धनलक्ष्मी योग बेहद खास रहेंगे। इन पांच विशेष योगों के फल स्वरूप देश एवं जनमानस को सुख समृद्धि की प्राप्ति होगी। इसके अतिरिक्त धनतेरस को शुक्रवार का दिन होने एवं चंद्रमा और शुक्र ग्रह के एक साथ गोचर करने से धनतेरस को एक अद्भुत संयोग भी बन रहा है। साथ ही धनतेरस पर बनने वाला प्रीत योग धनतेरस को इस बार की धनतेरस को और भी फलदाई बना देगा ।यह योग शाम 05ः06 बजे के बाद बन रहा है तथा पूरी रात रहेगा। इस योग में पूजा करने से साधक को अनंत फल की प्राप्ति होगी। यह अवधि खरीदारी के लिए भी अच्छी है साथ ही इस योग में सभी प्रकार के शुभ कार्य  किए जा सकते हैं।धनतेरस ,जिसे धन त्रयोदशी और धन्वंतरि जयंती भी कहते हैं, पांच दिवसीय दीपावली महोत्सव का पहला दिन होता है। मान्यता है इस तिथि पर आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रगट हो हुए थे। इसी कारण से हर वर्ष धनतेरस पर बर्तन खरीदने की परंपरा निभाई जाती है। कहा जाता है जो भी व्यक्ति धनतेरस के दिन सोने-चांदी, बर्तन, जमीन- जायजाद की शुभ खरीदारी करता है, उसमें तेरह गुना की बढ़ोत्तरी होती है इस दिन सभी चिकित्सक भी अमृतधारी भगवान धन्वन्तरि की पूजा करते हैं । इसी दिन से देवता यमराज के लिए दीपदान से दीप जलाने की शुरुआत होती है और यह दीप अगले पांच दिनों तक जलाए जाते हैं। लोकाचार में इस दिन खरीदे गए सोने या चांदी के धातुमय पात्र अक्षय सुख देते हैं। यही वजह है की धनतेरस के दिन लोग नए बर्तन या दूसरे नए सामान खरीदते हैं। इसी तरह रूप चतुर्दशी को महिलाएं अपना रूप निखारने के लिए प्रातः स्नान करती हैं और उसके बाद विधि विधान से पूजा पाठ की ओर अग्रसर होती है। कहा जाता है कि चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु ने माता अदिति के आभूषण चुराकर ले जाने वाले निशाचर नरकासुर का वध कर 16 हजार कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। परंपरा में इसे शारीरिक सज्जा और अलंकार का दिन भी माना गया है। इसीलिए इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में हल्दी, चंदन, सरसो का तेल मिलाकर उबटन तैयार कर शरीर पर लेप करने के बाद स्नान कर अपना रूप निखारेंगी। नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी को कई और नामों से भी मनाया जाता है जैसे-नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी आदि। दीपावली से पहले मनाए जाने के कारण इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है। घर के कोनों में दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना की जाती है। बात दीपावली पर पर्व की करें तो दीपावली को शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, मां सरस्वती और धन के देवता कुबेर की विधिवत पूजा-आराधना होती है। मान्यता है कि दीपावली की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और घर-घर जाकर ये देखती हैं कि किसका घर साफ है और किसके यहां पर विधिविधान से पूजा हो रही है? तत्पश्चात माता लक्ष्मी वहीं पर अपनी कृपा बरसाती हैं। दीपावली पर लोग सुख-समृ्द्धि और भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए माता लक्ष्मी की विशेष पूजा करते हैं। अथर्ववेद में लिखा है कि जल, अन्न और सारे सुख देने वाली पृथ्वी माता को ही दीपावली के दिन भगवती लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। कार्तिक अमावस्या का दिन अंधेरे की अनादि सत्ता को अंत में बदल देता है, जब छोटे-छोटे ज्योति-कलश दीप जगमगाने लगते हैं। प्रदोषकाल में माता लक्ष्मी के साथ गणपति, सरस्वती, कुबेर और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। दीपावली के अगले दिन अर्थात गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी किया जाता है। इस त्योहार में भगवान कृष्ण के साथ गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा का विधान है। इसी दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग बनाकर लगाया जाता है। दीपावली के अगले दिन राजा बली पर भगवान विष्णु की विजय का उत्सव है। ऋग्वेद में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धरकर तीन पदों में सारी सृष्टि को नाप लिया था। श्रीकृष्ण ने इसी दिन देवेंद्र के मानमर्दन के लिए गोवर्धन को धारण किया था। इस दिन जगह-जगह नवधान्य के बने हुए पर्वत शिखरों का भोग अन्नकूट प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इसके अलावा भाई दूज कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि अर्थात गोवर्धन पूजा के बाद अगले ही दिन मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की मनोकामनाएं मांगती हैं। इस त्योहार को भाई दूज या भैया दूज, भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया कई नामों से भी जाना जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर पर भोजन करने के लिए आमंत्रित किया थायही वजह है कि आज भी इस दिन लोग अपने घर मध्यार् िंका भोजन नहीं करते। रिवाज के अनुसार कल्याण और समृद्धि के लिए भाई को इस दिन अपनी बहन के घर में ही स्नेहवश भोजन करना चाहिए।

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