‘गांधी पार्क’ की शिफ्टिंग से गहरा सकता है बाजार का ‘आर्थिक संकट’
रूद्रपुर। शहर के वे लोग, जो गांधी पार्क को रुद्रपुर की जीवंतता लिए अपरिहार्य एवं शहर की पहचान मानते हैं और वे जिनका जिनका बचपन नगर के इस सबसे बड़े एवं पुराने पार्क मे खेलते-कूदते घूमते एवं अल मस्ती चुहलबाजियां करते गुजारा है, की दृष्टि से यह खासी राहत की बात है कि गांधी पार्क की अन्यत्र शिफ्टिंग के विरुद्ध अब मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस एवं रुद्रपुर के पूर्व विधायक राजकुमार ठकुराल खुलकर सामने आ गए हैं।
इसमें दो राय नहीं कि रुद्रपुर का प्राचीन एवं इकलौता पार्क होने के नाते गांधी पार्क का शहर के तकरीबन प्रत्येक निवासी से एक भावनात्मक रिश्ता है। रुद्रपुर का शायद ही कोई ऐसा रहवासी हो, जो किसी न किसी बहाने कभी गांधी पार्क ना पहुंचा हो। जाहिर है कि अगर गांधी पार्क का अगर अस्तित्व खत्म हुआ ? तो इन लोगों को एक गहरा भावनात्मक आघात तो लगेगा ही, साथ ही आम लोगों में शासन -प्रशासन के प्रति गहरी नाराजगी भी जन्म ले सकती है। वैसे यह नाराजगी अब कहीं ना कहीं आकार लेती हुई भी दिख पड़ती है, क्योंकि सोशल मीडिया एवं मेन स्ट्रीम मीडिया में रुद्रपुर के विभिन्न तबके के लोगों की जो प्रक्रियाएं आ रही हैं, उसे देखते हुए इस नाराजगी के कालांतर में और भी बढ़ाने और अंततः एक जन आंदोलन का रूप ले लेने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। लिहाजा शासन प्रशासन की कोशिश तो यही होनी चाहिए कि जन भावना से जुड़े इस संवेदनशील मुद्दे पर असंतोष को एवं नाराजगी को और हवा ना दे। वैसे देखा जाए तो गांधी पार्क की शिफ्टिंग का विचार निहायत गैर जरूरी एवं आदूरदर्शिता पूर्ण ही नजर आता है, क्योंकि इसमें सभी पहलुओं एवं इसके दूरगामी परिणाम पर पूरी तरह विचार नहीं किया गया। इस मसले पर कोई निर्णायक कदम उठाने से अनेक बिंदुओं पर गंभीरता पूर्वक विचार किए जाने की आवश्यकता है। सबसे पहले इस तथ्य पर विचार किया जाना जरूरी है कि आखिर रुद्रपुर शहर को इसके संरचनात्मक ढांचे एवं व्यापारिक परिपाटी के हिसाब से शहर को कितनी दुकाने और शॉपिंग मॉल और चाहिए? क्या रुद्रपुर की वर्तमान आबादी की जरूरत के मुताबिक शहर के मुख्य बाजार में पर्याप्त दुकाने नहीं है? जो एक अच्छे खासे पार्क को उजाड़ कर उसमें पार्किंग समस्या हल करने की आड़ में महंगी दुकान और शॉपिंग मॉल बनाने की योजना तैयार की जा रही है। एक बड़ा सवाल तो यह भी है कि प्राइम लोकेशन पर बनाई जाने वाली यह दुकान निश्चित रूप से खासी महंगी होगी। ऐसी स्थिति में क्या इन्हें साधारण आदमी खरीद पाएगा? जहां तक शहर की पार्किग समस्या हल किए जाने का सवाल है? तो शहर में ऐसी कई स्थान पहले ही चिन्हित किया जा चुके हैं। जहां पार्किंग की व्यवस्था की जा सकती है। इसके अलावा निर्माणाधीन नए बस स्टैंड में बनाई जा रही अंडरग्राउंड पार्किंग में भी तकरीबन 700 कारों की पार्किंग की व्यवस्था होने जा रही है। ऐसी स्थिति में कुछ ही दूर पर महज साढ़े तीन सौ कारों की क्षमता वाली मल्टी स्टोरी पार्किंग के लिए एक प्राचीन पार्क को उजाड़ा जाना औचित्यहीन एवं समझ से परे है।
जान पड़ता है जैसे नीति नियंताओं ने गांधी पार्क की शिफ्टिंग में की स्थिति में, निर्मित होने वाली दुकानों के निकट ही स्थित मुख्य बाजार पर पड़ने वाले असर पर तनिक भी विचार नहीं किया। ऑनलाइन शॉपिंग के बढ़ते चलन के कारण बाजार में पहले से ही सीमित ग्राहक है। व्यापार लगातार काम होता जा रहा है। पहले नोटबंदी फिर जीएसटी, मुख्य बाजार में चले अतिक्रमण अभियान ,कोविड का दौर, रिसेशन एवं इन्फ्लेशन तथा लोहिया मार्केट के ध्वस्तीकरण आदि के चलते रुद्रपुर के मुख्य बाजार के व्यापारी एवं व्यापार पहले ही संकट के दौर से गुजर रहा है और अब मुख्य बाजार से लगे गांधी पार्क में दुकान बनाकर बचे- खुचे ग्राहकों को भी मुख्य बाजार से दूर करने की इस कोशिश से ,शहर के व्यापार जगत की आर्थिक रीढ़ पूरी तरह टूट सकती है। अब से कुछ अरसा पहले रुद्रपुर में जो व्यापारिक चहल पहल रहा करती थी, वह केवल सिडकुल के कारण थी, लेकिन अब सिडकुल में भी वह बात नहीं रह गई । इसके अलावा सिडकुल के प्रमुख ग्राहक भी मुख्यतः बिग बाजार और मेट्रोपोलिस मॉल में शिफ्ट हो गए हैं, लिहाजा वह बाजार की तरफ कम ही आ पाते हैं। उधर सिडकुल की तमाम बड़ी कंपनियां भी धीरे-धीरे अपना काम समेटती-सी दिख रही हैं। इसलिए अब रुद्रपुर में बेरोजगारों के भीड़ बाहर से काम आ रही है और बाजार को नए ग्राहक पहले की अपेक्षा बहुत ही काम मिल पा रहे हैं। शायद यही कारण है कि दीपावली के त्योहार पर भी बाजार में वह रौनक नहीं है ,जो अब से पहले हुआ करती थी। ऐसे में नई दुकानों और नए शॉपिंग कंपलेक्स का निर्माण रुद्रपुर के मुख्य बाजार के व्यापारियों एवं परंपरागत व्यापार की रीढ़ को निश्चित ही तोड़कर रख देगा ।बाजार की तरलता और गतिशीलता को बनाए रखना हालांकि सरकार की आर्थिक नीतियों का मसला है ,लेकिन फिर भी सरकार के अनुभागों एवं विभागों को अपने स्तर पर ऐसे प्रयास तो करने ही चाहिए कि उनकी किसी योजना के चलते कम से कम से किसी क्षेत्र विशेष का आर्थिक ढांचा तो संकट में ना आने पाए।