‘बागेश्वर’ में अब अपने-अपने नाराज कार्यकर्ताओं को साधाने की ‘चुनौती’
दोनों ही दलों के कार्यकर्ता नाराज, उजागर हुआ भाजपा का परिवारवाद पर दोहरा मानदंड
बागेश्वर(उद ब्यूरो)। दोनों ही प्रमुख प्रमुख दलों भाजपा एवं कांग्रेस द्वारा बागेश्वर उपचुनाव के लिए अपने-अपने प्रत्याशी की घोषणा करने के बाद बागेश्वर उपचुनाव वैसे तो दिलचस्प दौर में पहुंच गया है, लेकिन उपचुनाव के प्रत्याशियों के नाम सामने आने के साथ ही दोनों ही दलों के समक्ष अपने-अपने नाराज कार्यकर्ताओं को साधने की एक बड़ी चुनौती भी तन कर खड़ी हो गई है। बताना होगा कि बागेश्वर उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जहां अपने सिटिंग विधायक एवं मंत्री स्वर्गीय चंदन रामदास की पत्नी पार्वती दास को अपना उम्मीदवार बनाया है,वहीं कांग्रेस ने महज एक दिन पहले ही आम आदमी छोड़कर कांग्रेस का दामन थामने वाले बसंत कुमार को अपना प्रत्याशी घोषित करके, टिकट की आस लगाए बैठे निष्ठावान कांग्रेसियों की उम्मीद पर पानी फेर दिया है। ऐसे में दोनों ही दलों के कार्यकर्ताओं के मध्य गहरी निराशा एवं नाराजगी का आलम है और उपचुनाव में भीतरघात की संभावनाएं बढ़ गई है। लिहाजा एक बात तो तय है कि इस उपचुनाव में दोनों ही दलों को कार्यकर्ताओं के मान मनौव्वल में खासी मशक्कत करनी पड़ेगी और जो भी दल समय रहते अपने कार्यकर्ताओं को साध लेगा और भितरघात रोकने की कारगर रणनीति तैयार कर लेगा, उसकी संभावनाएं उज्जवल हो जाएगी। हालांकि राज्य में भाजपा की सरकार होने के कारण जीत का समीकरण मोटे तौर पर भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहा है, लेकिन कार्यकर्ताओं की नाराजगी इस समीकरण को कभी भी गड़बड़ा सकती है। अभी तक परिवारवाद के मसले पर कांग्रेस पार्टी को घेरती आई भाजपा द्वारा प्रत्याशी चयन में परिवारवाद की परंपरा को ही आगे बढ़ाए जाने के कारण जहां वह अब इस मसले पर स्वयं घिरती नजर आ रही है ,वहीं दूसरी ओर उपचुनाव में दिवंगत विधायक की पत्नी को प्रत्याशी बनाए जाने से बीजेपी के पुराने कार्यकर्ताओं में यह संदेश भी गया है कि उनका नंबर आसानी से नहीं आने वाला। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता पार्टी कार्यकर्ताओं को अक्सर ही देव तुल्य और पार्टी संगठन का रीढ़ बताते रहते हैं, लेकिन जब भी किसी महत्वपूर्ण चुनाव या पद की बात आती है तो निचली पंक्ति का कार्यकर्ता को दरकिनार कर दिया जाता है। ऐसे में कार्यकर्ताओं के मन में यह विचार आना स्वाभाविक है कि क्या वे केवल दरी बिछाने ,नारे लगाने और बड़े नेताओं के महिमा मंडन के लिए ही हैं ? जाहिर है कि यदि भाजपा कार्यकर्ताओं में यह विचार घर कर गया तो, या तो भाजपा कार्यकर्ता निष्क्रिय हो जाएगा या अपना भविष्य का रास्ता साफ करने के लिए भीतरघात पर उतारू हो जाएगा और यह दोनों ही स्थिति भाजपा के लिए घातक हो सकती है । बात कांग्रेस पार्टी की करें,तो उसकी स्थिति तो और भी विषम है। एक तो कुछ दिनों पूर्व ही उसके संभावित प्रत्याशी एवं कद्दावर नेता पाला बदलकर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम चुके हैं और दूसरे उसने एक आयातित प्रत्याशी को अपना चेहरा बनाया है। याद दिलाना होगा कि कांग्रेस प्रत्याशी बसंत कुमार वर्ष 2017 में बहुजन समाज पार्टी से तथा वर्ष 2022 मेंआम आदमी पार्टी से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं ।ऐसे में बागेश्वर विधानसभा का पुराना एवं निष्ठावान कांग्रेसी कार्यकर्ता दूसरे दल से आए व्यक्ति के पीछे पूरे मन और निष्ठा के साथ खड़ा हो पाएगा ? इसकी संभावना बेहद कम है। हालांकि नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य एवं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने प्रत्याशी चयन की घोषणा के मौके पर एकजुटता दिखाकर ,पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने का भरसक प्रयास करने के साथ ही बागेश्वर उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत का भी दावा किया है, लेकिन इस दावे के हकीकत में बदलने के लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अपनी पूरी ऊर्जा विधानसभा उपचुनाव में झोंकनी होगी, जिसके कि आसार फिलहाल तनिक कम ही दिखाई देते हैं ।