ई-रिक्शा लील गए आजीविका,रिक्शा चालक जैसे- तैसे घिसट रही जीवन की गाड़ी
(अर्श) रूद्रपुर। एक समय था, जब रुद्रपुर शहर के मेन मार्केट, सभी प्रमुख चौराहों एवं शहर की तमाम चौड़ी एवं सकरी गलियों आदि सभी स्थानों पर साइकिल रिक्शा चालक बहुतायत मे मिल जाया करते थे, लेकिन समय के साथ रुद्रपुर शहर का विकास हुआ और यह नगर से महानगर बन गया। और अब तो रुद्रपुर उत्तराखंड के प्रमुख औद्योगिक महानगरों में शुमार होने लगा है। रुद्रपुर की इस विकास यात्रा में शहर के रहवासियों ने भी बड़े ही उत्साह के साथ प्रतिभाग किया और अनेक नए साधनों एवं नवीन तकनीकी को अपनी जीवनशैली में शुमार किया और नगर की बदलती सूरत के साथ ही अपनी आर्थिक स्थिति भी बेहतर की। बेहतरी के इस क्रम में शहर के मे यातायात के साधनों की सूरत भी बदली। एक समय के तांगे, पहले साइकिल रिक्शा में बदले ,उसके बाद ऑटो मे और फिर पर्यावरण प्रदूषण की चिंता सामने आने पर ,इको Úेंडली ई -रिक्शा के स्वरूप में सामने आए ।कालांतर में शहर के भीतर ई-रिक्शा का प्रचलन कुछ इस कदर हुआ कि आज ई-रिक्शा शहर के पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सबसे अहम घटक बन गए हैं। ई रिक्शा के प्रचलन ने एक तरफ जहां नगर वासियों को सस्ता एवं तेज पब्लिक ट्रांसपोर्ट उपलब्ध कराया है, वहीं दूसरी तरफ इसके नकारात्मक प्रभाव भी सामने आए हैं। ई-रिक्शा के नगर के पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अहम हिस्सा बनने का सबसे अधिक दुष्प्रभाव समाज के अंतिम पायदान में पड़े गरीब साइकिल रिक्शा चालकों पर हुआ है। साइकिल रिक्शा चालकों के हालात इन दिनों कुछ ऐसे हैं कि उन्हें अपनी आजीविका चलाने के लिए चौतरफा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। साइकिल रिक्शा की तुलना में ई-रिक्शा से गंतव्य तक शीघ्र पहुंचाना संभव होने के साथ-साथ, किराया भी कम होने के कारण अब लोग ई-रिक्शा के सफर को ही तरजीह देते हैं ।नतीजतन साइकिल रिक्शा चालको को अब सवारियां ही नहीं मिलती ।सवारिया ना मिलने के कारण कभी-कभी तो साइकिल रिक्शा चालकों को रिक्शा का किराया भी अपने पल्ले से देना पड़ जाता है। लिहाजा कुछ रिक्शा चालकों ने तो सवारियों के बजाय रिक्शे से माल ढोना आरंभ कर दिया है ।बताना होगा की शहर में इस समय साइकिल रिक्शा चालकों की कुल संख्या घटकर बमुश्किल पचास के आसपास ही रह गई है। इनमें से कुछ रिक्शा चालक तो शहर में अपना आशियाना बनाने में कामयाब हो गए हैं, लेकिन कुछ को खुले आसमान के नीचे ही रात बसन करनी पड़ती है । इस दौरान उन्हें अनेक प्रकार की चुनौतियों से जूझना पड़ता है मसलन, पुलिसिया घुड़की , ट्रैफिक पुलिस की मार- दुत्कार, नशेड़ी एवं आवारा तत्वों से स्वयं तथा मुश्किल कमाए गए रुपयांे को बचाने की जद्दोजहद आदि। जवानी के दिनों से साइकिल रिक्शा चलाकर अपने परिवार के भरण पोषण की गाड़ी खींच रहे, 55वर्षीय प्रीतम सिंह ने ‘उत्तरांचल दर्पण’से अपना संघर्ष साझा करते हुए कहा कि जब ई-रिक्शा नहीं थे तो, आसानी से गुजारा हो जाया करता था। पर्याप्त सवारियां मिल जाया करती थी। अब तो सवारिया ढूंढना ही मुश्किल हो जाता है। सारे दिन की जद्दोजहद के बाद बमुश्किल दो से तीन सौ रुपया तक ही हाथ आ पाते हैं। इस महंगाई के दौर में, इतने में परिवार का गुजारा करना बहुत कठिन है। लेकिन क्या करें? जैसे- तैसे जिंदगी की गाड़ी खींच रहे हैं ।थोड़ा बहुत सरकारी राशन मिल जाता है और कुछ हम रिक्शा चला कर कमा लेते हैं । बस इसी तरह दिन गुजर रहे हैं। वही गांव से रुद्रपुर आकर पिछले तीस साल से साइकिल रिक्शा चला रहे, रामलाल का परिवार बसंती पुर में रहता है। वह वहां से आकर शहर आकर रिक्शा किराए से लेते हैं। सारा दिन मेहनत मशक्कत करते हैं । उन्हें सवारियां तो आजकल मिलती ही नहीं। इसलिए माल ढोने का काम कर के जैसे तैसे आजीविका का प्रबंध कर लेते हैं । एकाद हफ्ते मे अगर ठीक- ठाक कमाई हो गई तो गांव चले जाते हैं, अन्यथा सारा दिन और रात खुले आसमान के नीचे रिक्शे पर ही गुजरती है। उन्होंने आगे बताया कि पहले इंदिरा चौक में रिक्शा वालों के लिए एक सरकारी टीन शेड की व्यवस्था थी, जिसके नीचे हम लोग थक हार कर आराम कर लिया करते थे और वही खाना भी बना लिया करते थे,लेकिन अतिक्रमण हटाओ अभियान में उसे उजाड़ दिया गया। उसके बाद शासन -प्रशासन ने हम गरीबों की सुध नहीं ली। उनके अनुसार उनके जैसे गरीबों को ,गरीबों के लिए ही बने बनाए गए रेन बसेरा में भी एंट्री नहीं मिल पाती। साइकिल रिक्शा चालकों से जुड़ी सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि उनकी यह दयनीय दशा शासन- प्रशासन के विमर्श से पूरी तरह गायब है। कुछ समय पहले गरीब साइकिल रिक्शा चालकों को सरकारी सहायता से ई-रिक्शा दिलवाने की चर्चा सामने आई थी, लेकिन कोविड काल के बाद यह चर्चा होनी भी बंद हो गई है। ताजा हालात में रिक्शा चालकों की एकमात्र उम्मीद नैनीताल हाई कोर्ट पर टिकी है ।बताना होगा की कुछ समय पहले नैनीताल हाईकोर्ट में नैनीताल के साइकिल रिक्शा को, ई- रिक्शा में परिवर्तित करने के लिए एकाएक याचिका दायर की गई थी ,जिसे उच्च न्यायालय ने सुनवाई हेतु स्वीकार कर लिया है। हालांकि यह याचिका केवल नैनीताल क्षेत्र विशेष से संबंधित है, लेकिन क्योंकि उच्च न्यायालय का आदेश सामान्यता पूरे प्रदेश पर लागू होता है इसलिए आशा यह है कि शायद उच्च न्यायालय के आने वाले निर्णय के आलोक में ,कुछ भला उत्तराखंड के बाकी के साइकिल रिक्शाचालकों का भी हो जाए।
उजाड़ दिया गया टीन शेड
रूद्रपुर। कुछ अरसा पहले इंदिरा चौक स्थित यातायात चौकी के पास ही रिक्शे वालों के लिए एक टीन शेड की व्यवस्था थी, जिसमें रिक्शा चालक आराम करने के साथ-साथ वही अपना भोजन भी तैयार कर लिया करते थे। लेकिन इंदिरा चौक का सौंदर्यीकरण अभियान गरीबों के इस इकलौते सहारे को भी निगल गया । इसलिए अब साइकिल रिक्शा चालक अपने रिक्शे पर ही खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर हैं।
रैन बसेरा में नो एंट्री
रुद्रपुर। शहर में गरीबों के लिए एक रेन बसेरा भी बनाया गया है। इसकी व्यवस्था का दारोमदार नगर निगम पर है, जो ठेके पर इसका संचालन कराता है। पहले यह रोडवेज के सामने नैनीताल रोड पर स्थित था ,लेकिन इन दिनों इसे गांधी पार्क के पास स्थापित कर दिया गया है ।यह रैन बसेरा अव्वल तो खुलता ही नहीं और यदि कभी कभार खुल भी गया तो इसमें गरीब रिक्शा चालकों को रात गुजारने की अनुमति नहीं दी जाती। उन्हें बेइज्जत कर खदेड़ दिया जाता है।
टाइल मार्केट टूटने से गहराया संकट
रूद्रपुर। तकरीबन दस साइकिल रिक्शा चालक रामपुर रोड स्थित सोनिया होटल के पास संचालित सस्ती टाइल मार्केट की दुकानों से जुड़े हुए थे और वह ग्राहकों के घर तक टाइल पहुंचाने का काम करते थे ।विगत दिनों कमिश्नर के आदेश पर टाइल मार्केट को तहस-नहस कर दिया गया और दुकान मालिकों के साथ-साथ साईकिल रिक्शा चालकों की आजीविका पर भी संकट आ गया। फिलहाल उक्त साइकिल रिक्शा चालक किसी नए आश्रय की तलाश में हैं।