संकट में ‘भगवान केदार’: आसमान में हर 5 मिनट में गूंज रही हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट

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-अर्श-
देहरादून। यांत्रिक एवं भौतिक सुख-सुविधाओं के आज के इस दौर से पहले भक्तगण भगवान केदार नाथ के दर तक पहुंचने के लिए ना जाने कितने जतन करते थे । उबड़ -खाबड़ पैदल पथ की तमाम दुश्वारियोसे दो-चार होने और बड़ी तपस्या के बाद जाकर कहीं भक्तों को भगवान केदारनाथ के दर्शन नसीब हो पाते थे। मगर आज हमने भगवान केदारनाथ की चौखट तक पहुंचने के ऐसे- ऐसे शॉर्टकट रास्ते बना लिए हैं ,जिनसे केदारनाथ मंदिर पर ही संकट मंडराने लगा है । भगवान के घर तक पहुंचने के लिए यांत्रिक एवं सुविधा युक्त भौतिक साधन विकसित करने की विवेकहीन होड़ का यह जीता-जागता नमूना उत्तराखंड के केदारनाथ धाम में देखने को मिल रहा है। केदारनाथ धाम में इन दिनों हर 5 मिनट में हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट आसमान में गूंज रही है। इन हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट के शोर से केदारघाटी में कंपन पैदा होता है और विशेषज्ञों के अनुसार यह कंपन ही केदारनाथ मंदिर के लिए एक बड़ा संकट है, जिसकी अनदेखी केदारनाथ मंदिर के अस्तित्व पर भारी पड़ सकती है ।केदारनाथ घाटी क्षेत्र में हेलीकॉप्टर की बढ़ती उड़ानों की संख्या को लेकर पर्यावरण विशेषज्ञ सरकार को काफी पहले से चेताते आ रहे हैं ,परंतु उत्तराखंड सरकार केदार घाटी क्षेत्र में हेलीकॉप्टर की उड़ानों को विनियमित करने की बजाय हर साल नई-नई उîóयन कंपनियों को केदारघाटी में उड़ान भरने के लिए की अनुमति दे रही है। नतीजतन 25 अप्रैल से 14 नवंबर 2023 तक चलने वाली इस वर्ष की केदारनाथ यात्रा में 9उîóयन कंपनियां ,श्रद्धालुओं को केदारनाथ मंदिर लाने-लेजाने के लिए हेलीकॉप्टर उड़ान की सेवाएं प्रदान कर रही हैं। बता दें कि हेलीकॉप्टर द्वारा केदारनाथ मंदिर तक पहुंचने की चाह रखने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए इस बार 9 हेलीपैड उपयोग में लाए जा रहे हैं। यह हेलीपैड देहरादून से लेकर फाटा तक फैले हैं। अनुज्ञप्ति धारी 9 उîóयन कंपनियों में से प्रत्येक कंपनी के हेलीकॉप्टर तकरीबन 27 से 30 फेरे तक रोज लगाते हैं और यह उड़ान भी निर्धारित ऊंचाई से नीचे रहती है। गौरतलब है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था, कि कोई भी हेलीकॉप्टर केदारनाथ सेंचुरी में 600 मीटर से नीचे उड़ान ना भरे और उसकी आवाज भी 50 डेसिबल से अधिक ना हो, लेकिन फेरे जल्दी पूरा करने और फ्यूल बचाने के लिए हेलीकॉप्टर 250 मीटर ऊंचाई तक उड़ते हैं और उनकी आवाज भी दुगनी होती है। चिंताजनक पहलू तो यह है कि अधिक लाभ कमाने के फेर में उîóयन कंपनियों द्वारा हेलीकॉप्टर उड़ान के निर्धारित मानदंडों के इस घोर उल्लंघन पर राज्य सरकार ने अपनी आंखें पूरी तरह बंद कर रखी है। जबकि केदार घाटी के ताजा हालात के मद्देनजर विशेषज्ञों की चेतावनी गहरी चिंता में डालने वाली है। विशेषज्ञों का कहना है कि क्योंकि यह पवित्र मंदिर ग्लेशियर को काटकर बनाया गया है इसलिए हेलीकॉप्टर के शोर से घाटी के दरकने की आशंका और हेलीकॉप्टर के धुएं के कार्बन से पूरा इलाका एक बड़े खतरे की जद में है । केदारनाथ के लिए 1997-98 तक केवल एक हेलीपैड था ।अब इनकी संख्या 9 हो गई है और यह देहरादून से फाटा तक फैले हैं साथ ही ये 9 कंपनियों के लिए उड़ान की सुविधा देते हैं । आठ साल पहले तक केदारनाथ के लिए कुल 10-15 उड़ानें थी ।अब केदारनाथ वैली में सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक हेलीकॉप्टर रोजाना 250 से अधिक फेरे लगाते हैं। इनका शोर और इनसे निकलने वाला कार्बन  ग्लेशियर काटकर बनाए गए मंदिर और उसकी पूरी घाटी के लिए कितना बड़ा संकट पैदा कर रहे हैं ? इसका अनुमान राज्य सरकार को समय रहते लगाना ही होगा क्योंकि केदारनाथ घाटी हिमालय के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में आती है । केदारनाथ धाम में तेजी से बढ़ रही यात्रियों की संख्या पहले ही चिंतित करने वाली है ,उस पर हेलीकॉप्टरों का यह शोर और इनकी बढ़ती संख्या किसी विकराल संकट का रूप न ले ले यही एक बड़ा डर है। उधर केदारनाथ घाटी पर जीव विज्ञानियों एवं पर्यावरणविदों का ताजा निष्कर्ष तो और भी चिंता में डालने वाला है । इस निष्कर्ष में यह तथ्य सामने आया है कि केदारनाथ में नीचे उड़ते हेलीकॉप्टर के शोर से कई दुर्लभ प्रजातियों के कई जीवों का ब्रीडिंग साइकल बिगड़ा है। उत्तराखंड का राज्य पक्षी मोनाल और राजकीय पशु कस्तूरी मृग इस सेंचुरी में अब बहुत ही कम देखने को मिलते हैं । इसके अलावा तितलियों की कई दुर्लभ प्रजातियां तो गायब हो चुकी हैं। स्नो लेपर्ड, हिमालयन थार और ब्राउनबीयर भी खतरे में हैं। वाइल्डलाइफ इंस्टीटड्ढूट ऑफ इंडिया भी हेलीकॉप्टर्स के इस शोर के कारण जानवरों के बदलते बर्ताव पर चिंता जता चुका है। कुल मिलाकर ऐसा लगता है जैसे केदारनाथ घाटी संबंधी विशेषज्ञों की आशंकाएं अब कहीं ना कहीं सच होने लगी है और सूबे की सरकार अभी भी गहरी नींद में है। यहां पर इस तथ्य का जिक्र आवश्यक है कि देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीटड्ढूट में ग्लेशियर विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डीबी डोभाल का साफ कहना है कि वे सरकार को यह रिपोर्ट दे चुके हैं कि इससे मंदिर और घाटी को बड़ा खतरा हो सकता है। वही पप्रभूषण पर्यवेक्षक अनिल जोशी के अनुसार हिमालय के सबसे संवेदनशील व शांत क्षेत्र में अगर 100 डेसिबल शोर और कार्बन उत्सर्जन हर 5 मिनट में होगा, तो मंदिर, पर्यावरण एवं वन्यजीवों के लिए खतरा है। उत्तराखंड सरकार को पहले हो रहे नुकसान का आंकलन कराना चाहिए ,उसके बाद हेलीकॉप्टर उड़ान के फेरे निर्धारित किए जाएं।

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