कार्य बहाली करने से इंकार करने पर इंटरार्क श्रमिकों में भड़का आक्रोश
रूद्रपुर (उद संवाददाता)। इंटरार्क कंपनी के एच आर मैनेजर बीवी श्रीधर द्वारा उपश्रमायुत्तफ़ के निर्देश के बाद भी निकाले गये मजदूरों की कार्य बहाली करने से इंकार करने पर श्रमिकों का रोष भड़क गया। श्रमिक नेताओं ने कहा कि इंटरार्क प्रबंधन द्वारा उपश्रमायुत्तफ़ के निर्देशों का भी पालन करने से इंकार करने पर मजदूरों में आक्रोश बढ़ गया है। 3 मई 2023 को श्रम भवन रुद्रपुर में हुई वार्ता में कुमाऊँ क्षेत्र के सबसे बड़े श्रम अधिकारी उपश्रमायुत्तफ़ द्वारा कंपनी प्रबंधन को इंटरार्क कंपनी सिडकुल पन्तनगर एवं किच्छा के 28 मजदूरों की 9 मई 2023 तक कार्य बहाली कराकर जिला प्रशासन की मध्यस्थता में 15 दिसंबर 2022 को हुए लिखित समझौते का पालन करने के स्पष्ट निर्देश दिए हैं। उपश्रमायुत्तफ़ ने वार्ता के दौरान स्पष्ट रुप से दर्ज किया है कि उत्तफ़ 28 मजदूरों की गेटबन्दी कर उत्तराखंड राज्य से बाहर स्थानांतरण करने की कार्यवाही जिला प्रशासन की मध्यस्थता में हुवे समझौते का घोर उल्लंघन है। इसलिए प्रबंधन को उत्तफ़ समझौते का पालन कर 9 मई 2023 तक उत्तफ़ 28 मजदूरों की कार्यबहाली करने और 12 मई 2023 को उत्तफ़ 28 मजदूरों की कार्यबहाली करने के संबंध में दस्तावेज सहित उपस्थित होने का निर्देश दिया था । किन्तु इंटरार्क कंपनी प्रबंधन द्वारा अभी तक भी उत्तफ़ 28 मजदूरों की कार्यबहाली नहीं की गई है । उन्होंने बताया आज इंटरार्क कंपनी के उत्तफ़ 28 मजदूर कंपनी गेट पर उपस्थित हुए और उपश्रमायुत्तफ़ द्वारा दिये गए उत्तफ़ निर्देशों की पालना सुनिश्चित करते हुवे कार्यबहाली करने का अनुरोध किया। किन्तु कंपनी के एचआर मैनेजर बीवी श्रीधर द्वारा उत्तफ़ मजदूरों की कार्य बहाली करने से इंकार कर दिया और कहा कि जो भी होगा वह उपश्रमायुत्तफ़ के समक्ष ही होगा । इससे मजदूरों में आक्रोश पनप रहा है। पन्तनगर प्लांट के यूनियन महामंत्री सौरभ कुमार और किच्छा प्लांट के यूनियन महामंत्री पान मुहम्मद ने कहा कि इंटरार्क कंपनी प्रबंधन द्वारा एक बार फिर से साबित कर दिया है कि कुमाऊँ क्षेत्र के सबसे बड़े श्रम अधिकारी उपश्रमायुत्तफ़ के निर्देश के भी कंपनी प्रबंधन के लिए कोई चिंता और कोई मायने नहीं हैं और प्रबंधन द्वारा उपश्रमायुत्तफ़ के उत्तफ़ निर्देश को भी ठेंगा दिखा दिया है। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि प्रबंधन भारत के श्रम कानूनों ,उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेशों और उत्तराखंड राज्य के कानून से भी ऊपर है।