भाजपा को ‘ध्वस्त’ न कर दे ध्वस्तीकरण अभियान!
निकाय और लोकसभा चुनाव से पहले त्रिवेंद्र सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती
देहरादून। नजूल भूमि पर हाईकोर्ट के आदेश से प्रदेश की त्रिवेंद्र सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। निकाय और लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हजारों आशियानों को हटाने के आदेश ने सरकार को मुश्किल में डाल दिया है। सरकार के सामने अब एक तरफ हाईकोर्ट का आदेश है तो दूसरी तरफ वोट बैंक। हजारों आशियानों को सरकार नहीं बचा पाई तो आने वाले निकाय और लोकसभा चुनाव में तो भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा साथ ही इसके बाद अगले विधान सभा चुनाव में भी भाजपा के लिए राह आसान नहीं होगा। ऐसी स्थिति मे ध्वस्तीकरण अभियान भाजपा को भी प्रदेश में नेस्तनाबूत करने वाला साबित हो सकता है। प्रदेश में पूर्ण बहुमत से आई भाजपा सरकार को पिछले कुछ समय से एक के बाद एक लगातार कोर्ट के बड़े फैसलों का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश के कई शहरों में इन दिनों हाईकोर्ट के आदेश पर अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान में अब तक हजारों की सख्या में व्यवसायिक प्रतिष्ठान और आवासीय भवन घ्वस्त किये जा चुके हैं। यह सिलसिला लगातार जारी है। सरकार तमाम कोशिशों के बावजूद इस ध्वस्ती करण अभियान को रोकने में कामयाब नहीं हो पाई। अब तक तो यह अभियान बाजारों तक ही सीमित था। लेकिन हाईकोर्ट ने सरकार की नजूल नीति को भी निरस्त करके सरकार के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है। नजूल भूमि पर पूरे प्रदेश में हजारों की संख्या में लोग बसे हैं इन्हें पुनर्वासित करना सरकार के लिए आसान नहीं है और हाईकोर्ट की शरण में जाकर बचाना भी मुश्किल है। सरकार की चिंता इसलिए भी बढ़ गयी है क्योंकि हाईकोर्ट का यह आदेश ऐसे समय पर आया है जब दो दो चुनाव सिर पर है। प्रदेश में जल्द ही निकाय चुनाव होने हैं इसके बाद पंचायत चुनाव और लोकसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में प्रदेश के सियासी हालात पर नजर डाले तो यहां त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार अपने दो वर्ष का कार्यकाल पूरा करेगी। प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने वाली भाजपा सरकार हर गरीब को घर देने का वायदा समय समय पर करती रही है। यह वायदा तो अभी पूरा नहीं हो पाया लेकिन गरीबों के जो घर पहले से बने हुए हैं उनके उजड़ने की नौबत जरूर आ गयी है। इन दिनों राजधानी देहरादून, ऊधमसिंह नगर समेत अन्य मैदानी जिलों में हाईकोर्ट के आदेश पर व्यापक रूप से अतिक्रमण के खिलाफ ध्वस्तीकरण अभियान चलाया जा रहा है। सरकार के अफसर अतिक्रमण हटाओ अभियान को युद्ध स्तर पर पूरा करने में जुटे हुए हैं। इसका असर अब कई वर्षों से सरकारी भूमि पर बसे कब्जेदारों पर भी पड़ने लगा है। हाईकोर्ट का आदेश होने के कारण ध्वस्तीकरण अभियान के खिलाफ कोई भी खुलकर विरोध नहीं कर पा रहा। लेकिन प्रभावित लोगों में सरकार के खिलाफ भारी असंतोष जरूर पनप रहा है। इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दल भी लगातार सरकार को घेरने की कोशिश में लगे हुए हैं। पिछले दिनों खुद सत्ता पक्ष के विधायकों ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी शुरू कर दी थी। कुछ भाजपा विधायक तो सीधे मुख्यमंत्री से मुलाकात कर विरोध जता चुके हैं। कांग्रेस इस मामले को लेकर सड़कों पर भी उतरी थी। कांग्रेस का आरोप था कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की नीतियों को भाजपा लागू नहीं कराना चाहती है, हाईकोर्ट में भी इस मसले पर सरकार ठोस पक्ष नहीं रख पायी। कांग्रेस का यहां तक आरोप है कि भाजपा सरकार ने मनमानी करते हुए जानबूझकर पिछली नीति को खारिज कराने का खेल खेला है। जबकि पूर्व में मलिन बस्तियों को नियमितीकरण करने की योजना बनायी गई थी। लेकिन भाजपा सरकार ने सब किये कराये पर पानी फेर दिया। जिसके परिणाम स्वरूप अब हजारों आशियानों पर तलवार लटकी हुई है। जिससे लोगों में भय का माहौल है। पिछले करीब छह माह से प्रदेश में अलग अलग स्थानों पर अतिक्रमण हटाओ अभियान चलने से भाजपा के खिलाफ भी माहौल बनना शुरू हो गया है। सरकार ने अगर जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया तो आगामी चुनाव में भाजपा को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। भाजपा सरकार के सामने जहा अतिक्रमण हटाओ अभियान से हजारों लोगों को राहत दिलाने की बड़ी चुनौती है तो वहीं आगामी निकाय और उसके बाद लोकसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की जिम्मेदारी भी है। सरकार एक तरफ गरीबों को मकान बनाकर देने का वायदा तो कर रही है लेकिन इतनी बड़ी संख्या में उजाड़े जाने वाले लोगों को मकान देने का वायदा कैसे पूरा होगा यह बड़ा सवाल है। कुल मिलाकर हाईकोर्ट के आदेश पर प्रदेश में चल रहा ध्वस्तीकरण अभियान अगर इसी तरह कुछ माह और जारी रहा तो भाजपा को निकाय चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव में इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। साथ ही अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए इसकी भरपाई करना आसान नहीं होगा। इसे लेकर कांग्रेस के नेताओं ने अभी से कहना शुरू कर दिया है कि हाईकोर्ट के आदेश्ा के बाद हजारों परिवार बेघर हुए तो इसके लिये सिर्फ और सिर्फ भाजपा सरकार ही जिम्मेदार होगी।
हिमाचल सरकार से सबक ले त्रिवेंद्र सरकार
देहरादून। अतिक्रमण हटाने के मामले में त्रिवेन्द्र सरकार को हिमांचल में भाजपा नेतृत्व की सरकार से सबक लेना चाहिए। गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश में भी हाईकोर्ट ने सरकारी भूमि पर बसे लोगों को हटाने के आदेश दिये थे। सरकार जब न्यायालय से कब्जेदारों को राहत दिलाने में नाकाम रही तो सरकार ने सरकारी भूमि पर बैठे 30 हजार से अधिक अतिक्रमणकारियों को नियमित करने के लिए विधेयक पारित करके अतिक्रमणकारियों को राहत प्रदान की। क्योंकि हिमाचल सरकार की मंशा किसी को भी उजाड़े जाने की नहीं थी। सरकार के इस प्रयास से वहां सरकारी भूमि पर बैठे लोगों को राहत मिली और पार्टी के प्रति लोगों मे विश्वास भी मजबूत हुआ है। उत्तराखण्ड प्रदेश में भी सरकारी भूमि पर लाखों लोग बसे है। उच्च न्यायालय के आदेश के चलते इन सभी परिवारों को उजड़ने का भय सता रहा है। उच्च न्यायालय की सख्ती के चलते यदि समय रहते उत्तराखण्ड सरकार ने कोई रास्ता नही निकाला तो लाखों लोगों का उजड़ना लगभग तय हैं। ऐसे में उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार को अपने पड़ोसी राज्य हिमांचल प्रदेश से सीख लेनी चाहिये और लाखों लोगों को उजड़ने से बचाने के लिये कोई ठोस कदम उठाना चाहिये।
सरकार को लौटाना पड़ेगा 100 करोड़ का राजस्व
देहरादून। नजूल भूमि से कब्जेदारों को हटाने के फैसले पर अमल हुआ तो सरकार को 100 करोड़ से अधिक का राजस्व वापस लौटाना पड़ सकता है। दरअसल हाईकोर्ट द्वारा प्रदेश सरकार की नजूल नीति खारिज करने के बाद शासन ने सभी जिलों से नजूल भूमि आवंटन संबंधित आंकड़े जुटा लिये हैं सरकार ने नजूल नीति के तहत आवंटित जमीन और प्राप्त राजस्व के आंकडे जुटाये तो इसमें पता चला है कि करीब तीन लाख वर्ग मीटर से अधिक भूमि नजूल नीति के अंतर्गत फ्रीहोल्ड की गयी है। जिसके लिए सरकार ने करीब 65 करोड़ का राजस्व प्राप्त किया है। वहीं बड़ी संख्या में लोगों ने अपने भूखण्डों को फ्रीहोल्ड कराने के लिए 25 प्रतिशत स्व मूल्यांकन शुल्क जमा कराया है। इसमें करीब 35 करोड़ का राजस्व सरकार को प्राप्त हुआ था। कई करोड़ रूपये का राजस्व अभी आना बकाया है। नजूल नीति के अंतर्गत फ्रीहोल्ड कराने के शुल्क के तौर पर अकेले उधमसिंहनगर से सरकार को 25 करोड़ से अधिक का राजस्व प्राप्त हुआ था। अब सरकार इन लोगों से जमीन वापस लेती है तो सरकार को इन लोगों से वसूल किया गया गया करीब 100 करोड़ रूपये का राजस्व वापस करना होगा। उत्तराखण्ड पहले ही कर्ज में डूबा हुआ है और वर्तमान में सरकार के सामने विकास की गति को तेज करने के लिए कहीं न कहीं आर्थिक संकट आडे़ आता है। अब यदि सरकार 100 करोड़ का राजस्व वापस लौटाती है तो निश्चित ही इसका असर प्रदेश की विकास योजनाओं पर भी पड़ेगा।