बड़ी खबरः उत्तराखंड में नहीं हो सकता उपचुनाव,राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग!

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कांग्रेस नेताओं ने कहाः भाजपा सरकार ने खड़ा कर दिया संवैधानिक संकट
देहरादून (उद ब्यूरो)। उत्तराखंड में आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले ही एक बार फिर सियासी संकट जैसी स्थिति बन गई है। इनता ही नहीं विपक्षी दल कांग्रेस ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिये है। बताया जा रहा है कि उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत से काबिज भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत छह महीने के भीतर विधानसभा सदस्य बनने का अवसर गंवा चुके हैं। ऐसे में उत्तराखंड में एक बार फिर संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है। सोमवार को देहरादून में अपने आवास पर मीडिया से बातचीत करते हुए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा है कि वैसे तो यह पूरा मामला चुनाव आयोग का है लेकिन लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत राज्य में वर्तमान परिस्थितियों में कोई चुनाव नहीं हो सकता है।उन्होंने कहा कि वर्तमान में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत विधायक नहीं हैं। अपने पद पर बने रहने के लिए रावत को छह माह पूरा होने से पहले विधानसभा का निर्वाचित सदस्य होना चाहिए। 9 सितंबर को छह माह पूरे हो रहे हैं। लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 ए के तहत, उस स्थिति में उप-चुनाव नहीं हो सकता है, जहां आम चुनाव के लिए केवल एक वर्ष शेष है। सीएम तीरथ सिंह रावत छह माह के भीतर विधानसभा का सदस्य बनने का अवसर गंवा चुके हैं। प्रीतम का कहना है कि यदि चुनाव आयोग नियमों के हिसाब से चला तो चुनाव नहीं हो सकते, लेकिन यदि केंद्र या राज्य सरकार की कठपुतली बना तो फिर कुछ भी हो सकता है। लेकिन जो भी हो चुनाव आयोग को संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार ही उप चुनाव पर निर्णय लेना चाहिए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री नवप्रभात ने कहा कि प्रदेश में संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। ऐसे में राज्य सरकार में तुरंत नेतृत्व परिवर्तन होना चाहिए। रविवार को एक बयान में पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं कांग्रेस नेता नवप्रभात ने कहा कि अभी मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत विधायक नहीं हैं। रिप्रजेंटेशन आफ पीपुल एक्ट की धारा 151 ए के अनुसार जब किसी राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए एक वर्ष का समय शेष रह जाता है तो वहां उप चुनाव नहीं हो सकता। प्रदेश में अभी दो विधानसभा सीटें रिक्त हैं। विधानसभा चुनाव मार्च 2022 में प्रस्तावित हैं। ऐसे में तीरथ सिंह रावत सितंबर के बाद मुख्यमंत्री पद पर बने नहीं रह सकते। इन परिस्थितियों में प्रदेश में संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है और सरकार में नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत है। वहीं प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता श्रीमती गरिमा दसौनी ने भी इस मसले को लेकर सोशल मीडिया के जरिये भाजपा पर तीखा हमला बोला है। दसौनी ने मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत पर सल्ट विधानसभा से उपचुनाव नहीं लड़ने का आरोप लगाया है। उन्होंने बताया कि राज्य भाजपा ने सोची समझी साजिश के तहत 57 विधायकों में से किसी को मुख्यमंत्री नहीं बनाया और एक सांसद को सीएम बनाकर प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता के हालात बना दिये है। दसौनी के अनुसार विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद उनका कार्यकाल 11 महीने शेष रह गया है ऐसे में सीएम को गंगोत्री से भी चुनाव नहीं लड़ाया जा सकता है। उन्होने कहा कि उत्तराखंड में भाजपा सिर्फ मुख्यमंत्री बदलने की परम्परा बनाकर आर्थिक बोझ बढ़ा रही है। वहीं कांग्रेस नेत्री दसौनी ने राज्य में संवैधानिक संकट को रोकने के लिये अब मौजूदा विधायकों में से किसी एक विधायक को नया सीएम बनाने का सुझाव दिया है।

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