पहाड़ के खेतों में बंदरो का आतंकः ग्रामीणों ने की बंदरबाड़ा बनाने की मांग

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मौसमी सब्जियाें की फसल नष्ट कर रहेे बंदर, खेतीबाड़ी को नुकसान
बागेश्वर। उत्तराखंड में बंदरों के आतंक से ग्रामीण किसानो को आर्थिक नुसकान हो रहा है। बागेश्वर जिले के कई गांवों में घरों में घुसकर खाने का सामान उठा ले जाने के साथ ही खेतों में अनाज और तैयार हो रही मौसमी सब्जियां नष्ट कर रहे हैं। विभागीय अधिकारियों की अनदेखी के कारण पहाड़ में बंदरो के आतंक लगातार जारी है। किसानों को बीज का लागत मूल्य भी नहीं निकल पा रहा है। इससे कई किसानों ने सब्जी उगाना छोड़ दिया है। जिले के शहरी क्षेत्रें के साथ ही सूदूरवर्ती गांव में ग्रामीणों ने इन दिनों खेतों में धान , मडुआ, भट्ट मास, सोयाबीन, मक्का, राजमा, ककड़ी, मिर्च, कददू, बीन, गोभी, आलू, बंद गोभी, पालक, लहसुन, धनिया, मेथी, प्याज आदि उगाया है जिसे बंदरों ने नष्ट कर दिया है। अब वे लौकी, करेला, कद्दूआदि बेलों को भी तोड़ रहे हैं। काश्तकारो का कहना है कि खेतों में इन दिनों मूली, लौकी, भिडी, तुरई आदि की सब्जी उगाई है, जिन्हें बंदर चट कर रहे हैं। इससे उन्हें आर्थिक नुकसान हो रहा है। बाजार से महंगा बीज लाकर सब्जी उत्पादन करते हैं। बंदरों के नुकसान पहुंचाने से काश्तकारों को बीज का लागत मूल्य भी नहीं मिल रहा है। बंदरबाड़ा बनाने को लेकर सरकार ने तमाम घोषणाएं की, जो खोखले साबित हो रहे हैं। किसानों ने जल्द से जल्द बंदरबाड़ा बनाने की मांग की है। गौरतलब है कि पर्वतीन जनपदों में बंदरों को पकड़ने के बाद बंदरबाड़े में डालने की व्यवस्था नहीं बनाई जा रही है। एक जिले के बंदर दूसरे जिले में पहुंच गये है। बताया जा रहा है कि वन विभाग द्वारा पकड़े गये शहरी क्षेत्रें के बंदर अब पहाड़ी क्षेत्रें के जंगल में पहुंच गये है । यह बंदर लोगों के भगाने पर हमला करते है। ग्रामीण क्षेत्रे में भी बंदरों को पकड़ने के लिये वन विभाग को ठोस कार्ययोजना बनाने की जरूरत है। ग्रामीणो ने खेती को बचाने के लिये बंदरो को पकड़ने और बंदरबाड़ा बनाने की अपील की है। वन विभाग के अधिकारियों की माने तो बंदरों को पकड़ने के लिये प्रभावित क्षेत्रे में पिंजरे लगाये जा सकते है लेकिन उन्हें रखने के लिये संसाधनों की कमी है। जंगलों में आग की घटनाओं को रोकने के साथ ही यहां आये दिन जंगली जानवरों के आतंक को रोकने के लिये वन महकमे के समक्ष बड़ी चुनौती खड़ी हो रही है।

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