साधू संतों के साथ आम श्रद्धालुओं को भी मिला गंगा में डुबकी लगाने का सौभाग्य

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अब 27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा पर होगा अंतिम शाही स्नान
हरिद्वार। हरिद्वार महाकुंभ में मेष संक्रांति यबैसाखीद्ध के शाही स्नान में श्रद्धालुओं में कोरोना का भय नहीं दिखा। सभी 13 अखाड़ों के संतों ने क्रमवार हरकी पैड़ी ब्रह्मकुंड पर गंगा स्नान किया। सुबह सात बजे से पहले श्रद्धालुओं ने ब्रह्मकुंड पर स्नान किया। छावनियों से स्नान के लिए निकली संतों की शोभायात्रएं देखने और आशीर्वाद लेने श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। मेला पुलिस के मुताबिक शाही स्नान पर 13 लाख 51 हजार 631 लोगों ने स्नान किया। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कि हरिद्वार कुंभ में मेष संक्रांति का शाही स्नान सफलतापूर्वक संपन्न हुआ है। कुंभ के दौरान साधु संतों के रहने और उन्हें अन्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है। साधु संत भी इस व्यवस्थाओं से संतुष्ट और प्रसन्न हैं। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कि शाही स्नान में सुबह से शाम तक संतों और श्रद्धालुओं ने गंगा में स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित किया। श्रद्धालुओं और संतों को कोई असुविधा न हो, इसके लिए राज्य सरकार ने समुचित इंतजाम किए हैं। राज्य सरकार ने सभी शाही स्नान केंद्र की गाइडलाइन का अनुपालन करते हुए सफलतापूर्वक संपन्न कराए हैं। उन्होंने कहा कि कुंभ में कोरोना को लेकर पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। गाइडलाइन का पूरा अनुपालन किया गया। किसी भी संत या साधु के आंशिक बीमार होने पर उनके टेस्ट और उपचार की भी राज्य सरकार द्वारा उचित व्यवस्था की गई। मुख्यमंत्री ने कुंभ के सुरक्षित और सफल आयोजन के लिए साधु संतों, श्रद्धालुओं, व्यवस्था में जुटे सुरक्षा बलों, पुलिस कर्मियों, स्वच्छताकर्मियों और स्वास्थ्यकर्मियों का आभार भी जताया। इस बीच सोशल मीडिया पर अफवाहें उड़ाई गई कि सरकार कुंभ मेला समय से पहले खत्म करने की घोषणा करेगी जिस पर विराम लगाया गया है। सचिव शहरी विकास शैलेश बगौली ने स्पष्ट किया है कि फिलहाल मेला अवधि 30 अप्रैल तक ही है। इसे घटाने पर विभाग के स्तर से कोई प्रस्ताव नहीं है।बुधवार को महाकुंभ का दूसरा और अखाड़ों का तीसरा शाही स्नान हुआ। बाहरी राज्यों से आए श्रद्धालुओं ने सुबह तीन बजे से ही हरकी पैड़ी ब्रह्मकुंड पर स्नान शुरू कर दिया। छह से सात बजे तक हरकी पैड़ी श्रद्धालुओं से भरी रही। आम श्रद्धालुओं को हरकी पैड़ी से सुबह सात बजे खाली करवाकर अखाड़ों के संतों के स्नान के लिए रिजर्व कर दिया गया। मेष सक्रांति पर अमृत योग में सभी 13 अखाड़ों ने हरकी पैड़ी पर शाही शान के साथ गंगा स्नान किया। यह कुंभ का दूसरा औपचारिक शाही स्नान था। श्हर-हर महादेव के जयघोष के साथ सुबह नौ बजे शुरू हुए स्नान का क्रम शाम 6.10 बजे तक चला। शाही स्नान शुरू होने से पूर्व सुबह सात बजे तक हरकी पैड़ी स्थित ब्रह्मकुंड पर आम श्रद्धालुओं को भी डुबकी लगाने का सौभाग्य मिला। शाही स्नान के दौरान श्रद्धालु अन्य घाटों पर स्नान करते रहे। इस बार स्नान पर वैसी सख्ती नहीं दिखी, जैसे पहले शाही स्नान के दिन देखने को मिली थी। हालांकि, कोरोना की दूसरी लहर का असर स्नान पर नजर आया और संतों और श्रद्धालुओं की संख्या अपेक्षाकृत कम रही। मेला अधिष्ठान के अनुसार शाम छह बजे तक 13.58 लाख से श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगा चुके थे, जबकि पहले शाही स्नान पर यह आंकड़ा 37 लाख था। अब कुंभ का अंतिम शाही स्नान 27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा पर होगा।शास्त्रें के अनुसार मेष सक्रांति पर अमृत योग में होने वाला यह शाही स्नान कुंभ का मुख्य स्नान भी है। इसीलिए श्रद्धालु ब्रह्मकुंड में स्नान के लिए उत्साहित थे। आधी रात के बाद से ही बड़ी संख्या में लोग हरकी पैड़ी स्थित ब्रह्मकुंड पहुंचने लगे थे। पुलिस ने सुबह सात बजे के बाद हरकी पैड़ी क्षेत्र को खाली कराया।इस बार भी अखाड़ों के स्नान का क्रम वही रहा जो पहले शाही स्नान में था। निर्धारित क्रम के अनुसार सुबह ठीक नौ बजे श्रीपंचायती अखाड़ा श्रीनिरंजनी और श्रीपंचायती आनंद अखाड़े का शाही जुलूस हरकी पैड़ी पहुंचा। श्रीपंचायती अखाड़ा श्रीनिरंजनी के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि और आनंद अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरि के साथ ही मंसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रघ्क्षवद्र पुरी के नेतृत्व में संतों ने गंगा स्नान किया। इसके बाद आचार्य महामंडलेश्वर अवेधानंद गिरि के नेतृत्व में श्रीपंदशनाम जूना अखाड़ा के संतों ने स्नान किया। जूना अखाड़ा के छत्र तले आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी रामकृष्णानंद सरस्वती के साथ अग्नि, आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी शिवेंद्र पुरी के साथ आ“वान अखाड़े के संतों ने भी पुण्य की डुबकी लगाई। जूना अखाड़े के छत्र तले ही किन्नर अखाड़े के संतों ने भी स्नान किया। अगले क्रम में महानिर्वाणी अखाड़े ने आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद गिरि, अटल अखाड़े ने अपने आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विश्वात्मानंद महाराज की अगुआई में गंगा में डुबकी लगाई। अब तीनों बैरागी अणियों का क्रम था। इसमें निर्वाणी अणि के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास, निर्मोही अणि के श्रीमहंत धर्मदास और दिगंबर अणि के श्रीमहंत कृष्णदास की अगुआई में संतों ने 1200 खालसों के साथ ब्रह्मकुंड में स्नान किया। श्रीपंचायती बड़ा अखाड़ा उदासीन और श्रीपंचयाती नया अखाड़ा उदासीन ने अपने-अपने क्रम में श्रीमहंत महेश्वरदास और मुखिया महंत भगतराम के साथ शाही स्नान किया। आखिर में निर्मल अखाड़े ने श्रीमहंत ज्ञानदेव घ्क्षसह वेदांताचार्य की अगुआई में शाही स्नान किया। पुलिस महानिरीक्षक यमेलाद्ध संजय गुंज्याल ने बताया कि शाही स्नान के दौरान अखाड़ों के लिए आधा-आधा घंटे का समय निर्धारित था। पहले स्नान की भांति इस बार भी सरकार की ओर से शाही जुलूसों पर हेलीकाॅप्टर से पुष्प वर्षा की गई। अखाड़ों में बढ़ते कोरोना संक्रमण के चलते चार सौ से अधिक साधु-संत शाही स्नान में भाग नहीं ले पाए। अखाड़ों में संक्रमितों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब तक अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरि, जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री प्रेमगिरि सहित 37 से अधिक साधु-संत संक्रमित हो चुके हैं। इनमें सबसे अधिक 17 साधु-संन्यासी श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के हैं। वहीं श्रीपंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में संक्रमित साधु-संन्यासियों की संख्या नौ है। सदैव ही महाकुम्भ का बैशाखी स्नान विवादों में ओर मिथक से भरा रहा है। इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि बैशाखी पर्व बिना किसी विवाद, दुर्घटना अथवा रंजिश पूर्ण घटनाओं से परे रहा हो। अगर हम आजादी के बाद प्रथम कुम्भ जो 1950 में सम्पन्न हुआ को देखे तो जानकारी मिलती है कि बैशाखी पर्व 14 अप्रैल के शाही स्नान में हरकी पैडी में बेरियर टूटने से लगभग 50 से 60 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। वहीं 1986 के महाकुम्भ में बैशाखी पर्व में भीड़ के दवाब बढ़ने से 50 से 52 भक्त असमय ही काल ग्रसित हो गए थे। वर्ष 1998 का कुम्भ भी इस बुरी छाया से दूर न रह सका। इस महाकुम्भ के 14 अप्रैल के शाही स्नान पर भी श्रापित छाया नजर आती है। जब दो बड़े अखाड़ों के आपसी विवाद और लड़ाई से शाही स्नान बाधित हो गया, जबकि 2010 के बैशाखी पर्व शाही स्नान पर दुर्घटना में 07 व्यक्तियों की मौत हो गयी थी. इतिहास उठाकर देखें तो उससे पता चलता है कि आजादी के बाद महाकुम्भ के बैशाखी पर्व के शाही स्नान सदैव श्रापित रहा है। पूर्व में निर्मल अखाड़ों का शाही स्नान समय सामंजस्य सही न होने के कारण अंधेरे में सम्पन्न होता था जबकि इस महाकुम्भ में सभी शाही स्नान न वरन समय से पूर्ण हुए बल्कि आम श्रद्धालुओं को भी हरकीपेडी में स्नान का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह इतिहास का प्रथम स्नान है जिसमे सभी शाही स्नान में भव्य पुष्प वर्षा हेलीकाॅप्टर के माध्यम से हुई है। साथ ही महाकुम्भ के सभी स्नान विवाद रहित रहे और आम जनता में आकर्षक का केंद्र भी क्योकि पूर्व इतिहास में हम नजर डालते हैं तो पता चलता है कि पूर्व में शाही अखाड़ों के जुलूस इतने विराट और भव्य नहीं होते थे और न ही इतनी अधिक संख्या में शाही रथ और वाहन इस्तेमाल होते हैं। इस महाकुम्भ में कुछ शाही अखाड़ों ने रिकाॅर्ड 1100 से 1157 शाही वाहन अपने शाही स्नान जुलूस में इस्तेमाल किये बल्कि आईजी कुम्भ संजय गुंज्याल द्वारा तैयार अचूक रणनीति से कहीं भी कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।

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