आखिर कब वैध होगी बहुउपयोगी भांग की कृषि ? उत्तराखंड में स्वरोजगार के नए आयाम खोलेगी
– एन.एस-बघरी (बागेश्वर)
उत्तराखंड में नव वर्ष 2021 के आगमन की खुशियों के साथ गुजरे वर्ष 2020 की कुछ बहुचर्चित घटनाओं से सबक लेने की उम्मीदें की जा रही है। भारत सरकार ने वर्ष 1985 में नारकोटिक्स और साइकोट्राॅपिक सब्सटैंस एक्ट में भांग के पौधे ‘कैनबिस’ के फल और फूल के इस्तेमाल को अपराध की श्रेणी में रखा था। वहीं इसकी पत्तियों पर कोई बैन नहीं लगाया था। बताते हैं कि 1961 में नारकोटिक्स ड्रग्स पर हुए सम्मेलन में भारत ने इस पौधे को हार्ड ड्रग्स की श्रेणी में रखने का विरोध किया था, फिर अमेरिका के दबाव में आकर भारत ने ये कदम उठाया। केंद्रीय महिला और बाल विकास विभाग मंत्री मेनका गांधी ने पैरवी की है कि मनोवैज्ञानिक विकारों को ठीक करने के लिए ‘मरीजुआना’ गांजे पर लगे प्रतिबंध के फैसले में आंशिक बदलाव लाया जाए। कीड़ाजड़ी, भांग जैसी प्राकृतिक वनस्पतियों पर प्रतिबंध के लिये विस्तृत कानून बनाने की जरूरत है जिससे अन्य जहरीले नशे के विकल्पों को समाप्त किया जा सके। ऐसा दुनिया के बहुत से देशों ने किया है और वहां भारत के मुकबले स्मैक आदि नशे के प्रभाव को रोका गया है। इस वर्ष देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाले ग्रुप आफ मिनिस्टर्स ने पहले इस बारे में एक ड्राफ्ट पाॅलिसी तैयार की है। हो सकता है कि भविष्य में सरकार इस पर लगा बैन हटा दे। भांग सिर्फ नशे के लिए नहीं बल्कि चिकित्सकीय उपचार में भी काम आती है। इसका इस्तेमाल भूख बढ़ाने के लिए, डायबिटीज, डायरिया, ज्वाइनडिस, पेन किलर और कैंसर के लिए किया जाता है। यहां तक कि अगर इस पर बैन न हो तो भारत में इससे तैयार होने वाली दवाओं की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है। समय समय पर इसलिए इस पर लगे बैन को हटाने की बात होती रहती है। भारत में भी नशे के खिलाफ जारी जंग के बीच एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब संयुत्तफ राष्ट्र के कमिशन आन नारकोटिक ड्रग्स सीएनडी ने भांग को सबसे खतरनाक नशीले पदार्थों की सूची से बाहर कर दिया। गौर करने की बात यह है कि भारत सरकार ने भी इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया। एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम में अमेरिका के हाउस आफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने गांजे को कानूनी दायरे में ला दिया और 5 प्रतिशत टैक्स के साथ खुले में इसकी बिक्री की इजाजत दे दी है। इन दोनों फैसलों से भांग और गांजे का सेवन पहले के मुकाबले कम या ज्यादा खतरनाक नहीं हो जाएगा, लेकिन सरकारों ने इन्हें गंभीरता से लिया तो इससे नशे के खिलाफ जारी अभियान को प्रभावी बनाने की रणनीति में एक जरूरी बदलाव निश्चित रूप से देखने को मिलेगा। पिछले 59 वर्षों से भांग सीएनडी के शेडड्ढूल-4 में हेरोइन जैसे खतरनाक पदार्थों की सूची में है। अमेरिका में भी गांजे को अन्य घातक नशीले पदार्थों की श्रेणी में रखते हुए इसके इ्स्तेमाल पर सख्ती से रोक लगाने की कोशिश की गई लेकिन अनुभव बताता है कि इससे कुछ खास फायदा नहीं हुआ। उलटे इस सख्ती का एक परिणाम यह हुआ कि कानून व्यवस्था की एजेंसियों का ध्यान बंट गया और कोकीन-हेरोइन जैसी सबसे खतरनाक ड्रग्स के खिलाफ जितनी ताकत लगनी चाहिए थी, वह नहीं लग सकी। भारत का अनुभव भी कुछ ऐसा ही है। संयुत्तफ राष्ट्र और कुछ अन्य देशों के कानूनों के अनुरूप यहां भी गांजा-भांग को अचानक खतरनाक ड्रग्स की श्रेणी में डाल दिया गया। नतीजा यह रहा कि शराब और तंबाकू जैसे पदार्थों का सेवन बहुत बढ़ गया और सरकारें भी इन्हें राजस्व प्राप्ति का महत्वपूर्ण जरिया मानकर परोक्ष ढंग से इन्हें बढ़ावा देने लगीं। सरकारी एजेंसियों का हाल यह है कि अपना ध्यान खतरनाक ड्रग्स के संगठित अंतरराष्ट्रीय कारोबार पर केंद्रित करने के बजाय वे 55 ग्राम और 85 ग्राम गांजे की बरामदगी के आधार पर खास व्यत्तिफयों के खिलाफ दर्ज गांजा सेवन के मामलों को अपनी उपलब्धि की तरह दिखाने में जुटी हैं। इस बदली हुई प्राथमिकता की जड़ कानून के उन प्रावधानों में ही है जो गांजा-भाग को हेरोइन जितने ही खतरनाक नशों की श्रेणी में रखते हैं। इसमें दो राय नहीं कि नशा अपने आप में एक बुराई है और हर नशा स्वास्थ्य को किसी न किसी तरह का नुकसान ही पहुंचाता है। लेकिन एक उदार समाज अंततः पुलिस के डंडे से ज्यादा व्यत्तिफ के विवेक पर ही भरोसा करके चलता है। गली-गली में खुद से उगने वाले एक जंगली पौधे को आपराधिक दायरे में लाना न सिर्फ अधिक खतरनाक अपराधों के लिए रास्ता बनाता है, बल्कि लोगों को भी अपराधी मानसिकता की ओर ले जाता है। ऐसे में बेहतर होगा कि कानून की ताकत वहीं लगाई जाए, जहां यह सबसे ज्यादा जरूरी हो। संयुत्तफ राष्ट्र के सीएनडी सम्मेलन में भारत सरकार का समझदारी भरा रुख यह उम्मीद जगाता है कि देश के अंदर भी एनडीपीएस एक्ट में संशोधन की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी। जिससे स्मैक कोकीन नशीले इंजेक्सन से सिंथेटिक और लाईलाज नशे पर लगाम कसी जा सके। बहरहाल अगर भांग की बहुउपयोगिता पर अमल किया जाये तो इस पौधे को औषधीय पौधे की श्रेणी में मूल्यांकन करना बेहतर होगा। नये साल में नशामुक्त प्रदेश की अवधारणा का साकार करने की दिशा में भी सरकार और शासन प्रशासन को कदम बढ़ाने होंगे। वल्र्ड ड्रग रिपोर्ट 2016 के मुताबिक दुनिया में 54 प्रतिशत गांजे का सेवन होता है। एमफेटामाइन नशे की गोली कोकेन का 12 प्रतिशत हिरोइन का 12 प्रतिशत का इस्तेमाल होता है। बता दें कि राजीव गांधी सरकार ने अमेरिका के दबाव के चलते भारत में गांजे पर बैन लगा दिया था। जबकि इस नशे से कमाई सबसे ज्यादा होती है। जहां दुनिया के कई हिस्सों में इस नशे से कमाई हो रही है, वहीं भारत में इस पर बैन के चलते ये तस्करी के जरिये बिक रहा है। अब सोचने वाली बात ये है कि जब एक ही पौधे से भांग, हशीश और गांजा तीनों मिलते हैं तो भांग इतना धड़ल्ले से क्यों बिक रही है और गांजे-हशीश पर इतना बवंडर क्यों मचा है। इसके पीछे शायद भांग का धार्मिक कनेक्शन भी एक वजह है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार भगवान शिव को भांग धतूरा बेल पत्र आदि अर्पण किया जाता है। इसलिए भांग एक तरह से भगवान भोलेनाथ का प्रसाद बन जाती है। इसे ठंडाई बनाकर पिया जाता है। इसका नशा इंसान के दिमाग को सुस्त करता है, इसका तेज नशा कई बार जानलेवा तक साबित हो सकता है, लेकिन इसे लेकर मान्यता के चलते ये काफी प्रचलित है।
पहाड़ी जिलों में कान्ट्रेक्ट फार्मिग से कृषि में सुधार लाने की ऐतिहासिक शुरूआत
देश के किसानों के लिये कान्ट्रेक्ट फार्मिग से कृषि में सुधार लाने की ऐतिहासिक शुरूआत हो रही है। उत्तराखंड में भी अब बहुउपयोगी भांग की खेती के लिये पहली बार राज्य सरकार ने जिला प्रशासन के जरिये लाइसेंस प्रक्रिया शुरू कर दी है। ऐसे में अब लोग वैध तरीके से भांग की खेती कर सकेंगे। शर्त यह कि भांग के बीज में टेट्रा हाइड्रो केनबिनोल यानी नशे का स्तर 0.3 प्रतिशत से अधिक नहीं होने चाहिए। नशे की स्तर की प्रामाणिकता पर जिला प्रशासन करेगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि अवैध तरीके से भांग की खेती के खिलाफ प्रशासन का अभियान अभी भी जारी रहेगा। भांग की खेती करने के इच्छुक काश्तकार को लाइसेंस लेना होगा। पहाड़ में भांग की खेती रोजगार के नए आयाम खोलने जा रहा है। किसान को भूमि का प्रस्ताव तैयार करना होगा और आबकारी विभाग के निरीक्षण के बाद लाइसेंस दिया जाएगा। जिले में भांग की खेती के लिए हिमालयन मोंक ने आवेदन कर दिया है। पहले चरण में गरुड़ ब्लाक के भोजगण में करीब 30 नाली पर भांग बोया जाएगा। धीरे-धीरे इसे तीन हेक्टेयर भूमि पर उगाने का प्रस्ताव हैं। कंपनी के कानूनी सलाहकार गिरीश कोरंगा ने बताया कि जिलाधिकारी से अनुमति मिलते ही खेती शुरू हो जाएगी। कंपनी के पार्टनर सतीश पांडे ने बताया कि खेती का उद्देश्य क्षेत्र में स्वरोजगार को बढ़ावा देना है, ताकि क्षेत्र से हो रहे पलायन को रोका जा सके। भांग से बनने वाले सीबीडी आयल का प्रयोग साबून, शैंपू व दवाईयां बनाने में किया जाएगा। हेम्प से निकलने वाले सेलूलोज से कागज बनाने में होगा। हेम्प प्लास्टिक तैयार होगी। जो बायोडिग्रेबल होगी। वह समय के साथ मिट्ट में घुल जाएगी। हेम्प फाइबर से कपड़े बनाए जाएंगे। हेम्प प्रोटीन बेबी फूड बाडी बिल्डिग में प्रयोग होगा तो हेम्प ब्रिक वातावरण को शु( करेगा। यह कार्बन को खींचता है। जिससे वातावरण में कार्बन की मात्रा कम होगी। भांग के रेशे का प्रयोग कई देशों में सजावटी सामान बनाने के लिए किया जा रहा है। पहाड़ में भांग के रेशों से अभी भी रसिस्यां बनाई जाती हैं। भांग के बीज का प्रयोग रोजाना खद्य व्यंजनों व चटनी बनाने के साथ ही सब्जी और मसाले में किया जाता है। उल्लेखनीय है कि पहाड़ से लेकर मैदान तक भांग के उपयोग को लेकर तरह तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। हांलाकि विश्वभर मेें अक्सर हिंदू समाज के लोगों द्वारा शिवरात्रि और होली के पर्व में इसका उपयोग किया जाता रहा है। उच्च हिमालयी सीमांत गांव में जिस प्रकार पुलिस प्रशासन ने ग्रामीणों के खेतों को उजाड़ दिया गया था। ऐसी कार्यवाही आज तक किसी भी जिला एवं पुलिस प्रशासन द्वारा नहीं किया गया है। हांलाकि पुलिस प्रशासन ने अपील की है कि प्रदेश में नशे के खिलाफ युवाओं को जागरूक करना होगा जिसके लिये गैर कानूनी तरीके से अब भांग नहीं बोये। हांलाकि ग्रामीणों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत क्षेत्रीय विधायकों एवं जनप्रतिनिधियों से कानून के नाम पर इस तरह की अनैतिक कार्यवाही रोकने के लिये पहल करने अपील की गई है। भले ही लोग रिवर्स पलायन की दिशा में आगे बढ़ रहे है मगर आकड़ो पर गौर करे तो अल्मोड़ा 38568 बागेश्वर 11556 टिहरी 7450 पिथौरागढ़ 25904 नैनीताल 23939 चमोली 20765 उत्तरकाशी 12844 चंपावत 12727 रुद्रप्रयाग 11609 परिवार गांव से पलायन कर गये है।
भांग के सौदागरों के लिये महाकाल बने आईपीएस मणिकांत मिश्रा
उत्तराखंड की काशी बागेश्वर जिले में इस बार नए कप्तान मणिकांत मिश्रा अपनी अनूठी कार्यशैली से काफी चर्चित आईपीएस बन गये हैं। उनकी विचारधारा और कार्यशैली का समाज कायल हुआ है। बढ़ते नशे के कारोबार को रोकने के लिये पुलिस प्रशासन द्वारा ग्रामीणों के साथ जागरूकता अभियान भी चला रहा है। ऐक ओर जहां युवा बेरोजगारी के बाद लगातार बढ़ते नशे की लत और आसान तरीके से पैसा कमाने के चक्कर में काले सोने की तस्करी में लग अपना भविष्य बर्बाद करने में लगे हुए है। बीते एक सप्ताह में ही 20 किलो चरस पकड़ी गई है। इस साल अब तक कुल 55 किलो चरस के साथ 28 लोग गिरफ्तार हो चुके है। पहाड़ी जिलों में बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत चरस तस्करी का मुख्य गढ़ है। यहां से प्रतिवर्ष क्विटलों चरस अवैध रुप से दूसरे प्रदेशों में पहुंचाई जाती है। समय के साथ इसकी डिमांड भी लगातार बढ़ते जा रही है। जिले का कार्यभार संभालते ही उन्होंने नशे के सौदागरों को अपनी कार्यशैली से स्पष्ट संदेश दे दिया है उनके कार्यक्षेत्र में नशे के सौदागर नहीं बच पायेंगे। इसके लिए उन्होंने अपने पुलिस महकमे को अपने सांथ लिया है। उनका मानना है कि यदि परिवार सुखी रहे तो हर समस्या को बड़ी ही आसानी से सुलझाया जा सकता है, और पुलिस महकमा ही उनका परिवार है। पुलिस डड्ढूटी में चैबीसों घंटे सिर्फ डड्ढूटी ही है। ताउम्र उनकी खुद की छुट्टियां भी डड्ढूटी की ही भेंट चढ़ जाती हैं। हर अधिकारी अपने रूतबारौब के चलते छुट्टियों को कम करने में अपनी शान समझते रहे हैं। कुछेक विरले अधिकारी ही अपवाद होते आए हैं जो पुलिस महकमे को अपना परिवार समझ उनकी परेशानियों को समझते हैं। आईपीएस मणिकांत मिश्रा भी उन सबमें एक अपवाद हैं जो कि छोटे-बड़े कर्मचारियों की परेशानी को जान-समझ उन्हें राहत देकर उनके मनोबल को बढ़ाने के साथ ही समाज को सुधारने की मुहिम में जुटे हैं। कोरोना काल के दौरान जनजागरूकता के लिये भी आईपीएस मिश्रा की पहल से वैवाहिक जोड़े ने आठवां फेरा लिया था। शांत-सरल स्वभाव मिश्राजी मन और कर्म से भी सात्विक विचारधारा के बताये जाते है। बहरहाल नए पुलिस महकमे की जिम्म्ेदारी और जनभावनाओं के अनुरून नये कप्तान ने जिले में मादक पदार्थों के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया है। समाज के तबके को सांथ लेकर जनजागरूता पोस्टर से चेतना फैलाने के सांथ ही वो खुद नशे के सौदागरों के गढ़ में जाकर ताबड़तोड़ छापेमारी कर नशे को रोकने की पहल कर रहे हैं। अभी तक कप्तान की टीम, भालू की पित्त समेत स्मैक और शराब की करोड़ों की खेप अपराध में लिप्त अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे भेज चुके है। कप्तान मणिकांत मिश्रा का कहना है कि नौजवानों को नशामुक्ति के लिये पे्ररित किया जा रहा है और नशे के खिलाफ उनकी यह मुहिम जारी रहेगी। हांलाकि स्थानीय किसानों को भांग की खेती और उसके व्यवसायिक उपयोग के लिये भी जनजागरूकता और जनकल्याणकारी योजनाओं का कियान्यवयन करने की भी जरूरत है। एक आकड़े के मुताबिक प्रदेश के नौ पहाड़ी जिलों से पलायन करने वालों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। पहाड़ के स्थानीय गरीब लोग भले ही अपनी आजीविका के लिये भी भांग बोते है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वह भांग से सिर्फ नशा फैला रहे है। चिंतन करने की जरूरत है कि जिस प्रकार पहाड़ से लेकर मैदानी क्षेत्रों में स्मैक, डग्स, नशे के इंजेक्शन पुलिसवालांे की मिलीभगत से धड़ड़ल्ले से बेची जा रही है और सब मौन साधे हुए रहते है। कुछ माफिया तो जेल की हवा खाने के बाद फिर धंधा शुरू कर देते है। प्रदेश के कई जिलों में कच्ची शराब की तस्करी दिन रात होती रहती है लेकिन जितनी संजीदगी पहाड़ के सीमांत जिले बागेश्वर में यह अमानवीय एवं दुर्तात हरकतें पुलिस प्रशासन द्वारा की जा रही है उससे ग्रामीणों में आक्रोश भी व्याप्त हो रहा है। ग्रामीणों की माने तो भले ही इस कार्यवाही का विरोध इसलिये नहीं किया है क्योंकि वह नहीं चाहते कि राज्य में भांग का उपयोग नशे के रूप में किया जाये। मगर क्या पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड के वह तमाम शुभचिंतक को जो निरंतर स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने की बात कहते है, काश्तकारों और पशुपालकों के भोजन का प्रमुख व्यंजनों में शामिल होने वाली औषधीय गुणों के भरपूर इस भांग के रेशो से बनी जैकेट कैबिनेट के मंत्रियों और अफसरों को गिफ्ट किये जाते हैं तब जेहन में यह बात नहीं आती है कि आखिर यह भांग नशा फैला रही है और गैर कानूनी तरीके से खेतों में ही बोई जा रही है। भांग बोने के लिये सरकार की योजनायें धरातल पर उतरने के लिये जिला प्रशासन की बेरूखी भी स्थानीय लोगों को स्वरोजगार देने में बड़ी चुनौती साबित हो रही है। बहरहाल सरकार के पास कोई कार्ययोजना नहीं जिससे भांग की खेती को बढ़ावा दिया जाये। यहां के छोटे और असंगठित किसानों को ऐसी कार्यवाही से बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। इतना ही नहीं आने वाले चुनाव में भी भांग की खेती का मुद्दा बन सकता है। पहाड़ से पलायन कर चुके लोगों के बंजर खेतों में कुछ लोग भांग बो रहे है,निश्चित तौर पर स्मैक की बढ़ती तस्करी को रोकने में विफल पुलिस महकमे को पहले शराब के कारखाने और नशे के इंजेक्शन की बिक्री को रोकना चाहिये। खेती करने वाले किसानों को छूट मिलनी चाहिये बशर्ते वह भांग के पेड़ से सिर्फ चरस आदि को व्यापार का हिस्सा नहीं बनाये । हिमालयी जनपद के दूरस्थ क्षेत्रों में लोगों द्वारा अवैध रूप से भांग की खेती कर चरस की तस्करी किये जाने के सम्बन्ध में समय-समय पर सूचनाएं जनपद पुलिस को मिल रही थी। अक्टूबर माह की घटना के अनुसार पुलिस कप्तान श्री मणिकांत मिश्रा पुलिस बल ;40 पुलिस अधिकारी/कर्मचारीद्ध के साथ जनपद के दूरस्थ क्षेत्र ग्राम- छोटी पन्याली, शामा, कपकोट रवाना हो गये, जो सड़क से लगभग 5 किमी पैदल मार्ग पर स्थित है। जहां पर छोटी पन्याली में ग्रामीण कुंवर सिंह द्वारा अवैध रूप से लगभग 50-60 नाली भूमि में भांग की खेती की जा रही थी। ग्रामीण द्वारा अवैध रूप से भांग की खेती किये जाने पर पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में पुलिस बल द्वारा 50-60 नाली भूमि में उगाई गयी भांग की खेती को नष्ट किया गया। साथ ही पुलिस अधीक्षक द्वारा ग्रामीणों को भांग/चरस से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में जागरूक करते हुए सभी को हिदायत दी गयी कि कोई भी व्यत्तिफ भाँग की खेती करते हुये पाया गया तो संबंधित के विरु( नियमानुसार कानूनी कार्यवाही की जायेगी। वहीं भांग की खेती करने पर भू स्वामी कुंवर सिंह पुत्र श्री कल्याण सिंह निवासी- छोटी पन्याली, शामा, कपकोट के विरू( एनडीपीएस एक्ट की धाराओं के अन्तर्गत कार्यवाही की जाएगी। इस दौरान जनपद पुलिस द्वारा नशे के विरू( चलाये जा रहे अभियान में लोग का जनसहयोग भी बढ़-चढ़ कर मिल रहा है। पहाड़ी जनपद में ग्रामीणों के खेतों को उजाड़ने की पुलिस कार्यवाही से लोगों में आक्रोश भी व्याप्त हुआ है। सोशल मीडिया पर बागेश्वर पुलिस की कार्यवाही के बाद स्थानीय एवं प्रदेश के युवा वर्ग ने तीखी टिप्पणी व्यक्त करने के साथ ही बहुउपयोगी भांग और नशे के अलग अलग पहलुओं को उजागर कर समाज का ध्यान भी बखुबी आकर्षित किया है। कुछ यूजर की टिप्पणियों के अनुसार अवैध शराब के बेखौफ स्मगलरों को पुलिस के सरक्षण में पनाह मिल रही है। जबकि कुछ दबंग लोग जेल से छूटने के बाद भी नशे का धधा करते रहते ह है। एक फेसबुक यूजर ने लिखा है कि जरूरी नहीं है भांग की खेती चरस गांजा को ही उपज दे रही है भांग बहुत सारे पहाड़ी व्यंजनौ में सहायक का काम भी करता है मगर यहां पर इतने बड़े पैमाने पर उगाना संदेहास्पद है शोध के मुताबिक औद्योगिक किस्म की भांग की खेती की औसत लागत करीब 60,000 रुपये प्रति एकड़ है। इस फसल से प्रति एकड़ प्रतिफल 2 लाख से 2.5 लाख रुपये तक मिल सकता है, बशर्ते कि पौधों के फूल ;जिनसे मैरिजुआना बनाया जाता हैद्ध नहीं तोड़े जाएं। शोध के मुताबिक इसकी खेती में इतना भारी प्रतिफल इसलिए मिलता है क्योंकि औद्योगिक भांग की फाइबर, काॅस्मेटिक एवं दवा, एमडीएफ प्लाईबोर्ड बनाने और निर्माण उद्योग में भारी मांग है। लेकिन कुछ लोगो का यही रोजी रोटी का आसरा है जी भांग के खिलाफ तो आप कार्यवाही कर लिए क्या आप इस तरह की कार्यवाही अवैध शराब के खिलाफ भी करते हैं ? गांव मै खुले आम हर दुकान मै शराब मिल रही है।
खूब भांग की खेती करो, पुलिस को बंदर और सुअर भगाने की ट्रेनिंग भी दी जाए
सोशल मीडिया पर पुर्व मुख्यमंत्री माननीय श्री हरीश रावत जी भी कह चुके हैं कि उत्तराखण्ड के लोगों खूब भांग की खेती करो और स्वरोजगार और स्थानीय उत्पादों के लिये एक दूसरे को प्रेरित करो। दूसरे यूजर के अनुसार गलत बात है एक तरफ उत्तराखण्ड सरकार भांग को औषधिय पोधा कह कर किसानों को इसकी खेती करने हेतु उजागर कर रहीं हैं दूसरी तरफ हमारे बिभाग द्वारा किसानों की फसल नष्ट किया जाता है यदि यह गलत है हमारे जनपद में बिकने वाले अन्य मादक पदार्थ पर भी रोक लगाई जानी चाहिए और यदि प्रदेश सरकार को इस पर रोक लगाना ही है तो जब इसकी बुआई की जाती है तब ही रोक लगाई जानी चाहिए ताकि किसानों द्वारा उस भूमि में अन्य फसलों का उत्पादन कर सकें। एक अन्य फेसबुक यूजर ने लिखा है कि बागेश्वर में पुलिस ने अब भांग के खेत भी उजाड़ने शुरू कर दिये हैं जिससे उसकी आजीविका और खेतीबाड़ी भी चैपट हो रही है। पहाड़ी जिलों में जंगली जानवरों, बंदरों के आतंक से जो खेती बाड़ी चैपट हो रही है उसे रोकने के लिये ग्रामीणों को सहयोग करने की जरूरत है। एक अन्य यूजर के अनुसार नजरिये से देखें तो ये बहुत अच्छा काम किया। पर दूसरी ओर से या उन गरीब किसान या पहाड़ के लोगों की ओर से देखें तो यह बहुत निराशाजनक काम किया है क्योंकि सरकार ही बोलती है कि पहाड़ बचाओ पहाड़ बचाओ ऐसे तो खाक बचेगा पहाड़। इन गरीब किसानों का पेट पालने का 1 ही तो जरिया है और हो ही क्या रहा है पहाड़ में। हां ये काम अवैध है पर इस पर भी टेक्स लगाओ इसका भी लाइसेंस जारी करो।जिस तरह से सराब पर किया है।एक नजीरिये से उन किसानों की ओर से देखा जाय तो पूरे साल भर की खेती 1 मिनेट में स्वाहा कर दी गई। एक अन्य यूजर के अनुसार जिस जिस ने यह भांग की खेती नष्ट की है क्या उन्होंने भांग की चटनी खाई है खाई है या नहीं खाई है यह कोई तरीका नहीं होता है किसी के पास पैसा होता है किसी के पास नहीं होता है जिसके पास होता है वह तो इसको खरीदता है जिसके पास नहीं होता है वह इसको बोलता है फिर भी गरीब रहता है क्यों यह तो सब्र होनी चाहिए बागेश्वर पुलिस अधीक्षक महोदय का सराहनीय कदम अगर इस तरह की कार्यवाही लगातार की जायें। पूर्व में भी बागेश्वर जनपद के अनेक पुलिस अधीक्षकों द्वारा इस तरह की कार्यवाहियां शुरू की गयी लेकिन कुछ माह बाद वही ढाक के तीन पात । सबसे पहले जो अवैधानिक रूप से शराब का आयात निर्यात हो रहा है गाँव के अंदर लघु वाहनों के द्वारा उस पर कार्यवाही करनी चाहिए गाँव मे कोई भी दुकान, इस तरह की नहीं है जहा पर शराब नहीं मिलती हो 800 सौ रुपये से 1000 तक बिकती है और दुकानों मे ताश खेलना तो वहां का एक अहम काम हो गया है.और दुकान भी बिना लाइसेंस की चल रही है गाँव मे पूरी तरह से जंगलराज चल रहा है शासन को सबसे पहले इनके उपर कार्यवाही करनी चाहिए जिसे हमारी युवा पीढ़ी इस राह मे न जा सके. बाकी भांग की खेती लोग केवल नशीली पदार्थों की तस्करी के लिए ही नहीं करते उसे लोगों को साग सब्जी रस्सी और डंठल को ईंधन के रूप मे जलाने के लिए भी प्रयोग मे लाते है यदि अवैधानिक है तो लोगों को बुवाई के समय ही कार्यवाही करनी चाहिए जिसे लोग अन्य फसलों को उगा सके,उत्तराखंड सरकार को इसके लिए कोई विकल्प ढूंढना चाहिए। सरकार को सिर्फ वहीं चीज अवैध और गैरकानूनी लगती है जिनसे उनकी जेब में टैक्स नहीं जाता है। सरकार रोजगार नहीं दे पा रही । नहीं जंगली जनवरों से सुरक्षा कोई फसल कैसे होगी । पहाड़ के लोगों का ऐसे मरना है, सहब आप ने भी अपना योगदान भरपूर दिया। सरकार शराब के फैक्ट्रियों को चलाती है,उसे उतराखण्ड के ग्रामीण इलाकों में भांग की खेती से एलर्जी है जैसेकि सारे देश में ये ही एकमात्र नशे का कारण है।अगर यही कार्यवाही जब फसल छोटी थी तब की जाती तो बेहतर होता।फसल नष्ट होने का दर्द भी नहीं होता।मित्र पुलिस से विनम्र है कि अगले साल से पहले ही यह कार्यवाही जरूर करें। पुलिस बल को नशीली पदार्थ नष्ट करने के अलावा बंदर और सुअर भगाने की ट्रेनिंग भी दी जाए । इससे ग्रामीण क्षेत्र में नशीली पदार्थ का खात्मा हो सकता है कृपया करके पुलिस बल को ट्रेनिंग प्रदान करने की कृपा करें। अन्य फसले बन्दर और सूवर नष्ट कर देते है इसलिये मजबूरी मै भी आदमी यह फसल तैयार करता है। भांग का उपयोग केवल नशे के किया जाता है ऐसा भी नही है। मेंने देखा है अक्सर जो डरते हैं उन्हें ही डराते हैं लोग, हम मेहनत करते हैं अपना परिवार पालने, हमी से जलते हैं हमारे ही लोग? तो हम पलायन नहीं करें तो क्या करें? हमें ही क्यों परेशान करते हैं हमारे ही लोग? अगर उत्तराखंड में भांग की खेती बंद कर दिया जाए तो उत्तराखंड में दारु की दुकान भी बंद होनी चाहिए। कभी अवैध खनन वालो और ठेके वालो के वहाँ तोड़ फोड़ करता कोई नही मिलता। एक अन् य यूजर ने लिखा है कि सबसे पहले दारू के ठेके बन्द होने चाहिए दारू भी तो एक नसा है । भांग धतूरा गाजा तो भोले शंकर का भोग है । इसको कोई नहीं मिटा सकता जय भोले बाबा। भांग की वैध रुप से खेती कैसे करें महोदय कृपया मार्ग दर्शन करने की कृपा करें । मेरे कुछ दोस्त इस तरह खुशी जाहिर कर रहे हैं कि मानो उन्हें बहुत कुछ मिल गया हो। दोस्तो हमें मिला कुछ नही बल्कि हम पहाड़ी लोगों के अन्दर एक दूसरे के प्रति जलन की भावना होती है हमें सिर्फ एक दूसरे के प्रति खुंदक निकालनी होती है हमें न्याय अन्याय व सही गलत से कोई लेना देना नही होता । क्या हमने कभी सोचा कि उस इन्सान ने किस मजबूरी में वो चार पेड़ भांग के बोये होंगे । क्या हमें अपने पहाड़ों में आजीविका के कोई साधन नजर आते हैं । खेतों में कितनी मेहनत करने के बाद भी दो रोटी नसीब नहीं होती लोगों को, क्या इस पुलिस और इस सरकार ने हमारी इस समस्या के बारे में कोई पहल की । जंगली जानवरों पर रोक लगाने के लिये कोई प्रयास किये । इसलिए हमें इस खेती को बरबाद करने पर इतना खुश नहीं होना चाहिए बल्कि उस व्यत्तिफ की मदत करनी चाहिए। इसकी सीमित खेती हमारे पूर्वजों के टाइम से होती है आज से नहीं । उत्तर प्रदेश के टाइम से होती है आज से नहीं । आजकल सब लोग सुर्खियों में आना चाहते हैं इसलिए सुर्खियों में आने के लिए एक गरीब की फसल को नुकसान पहुंचाया गया और इतना ही नहीं उस पर अनेक आपराधिक धाराएं भी लगाई गई होंगी । हां यह काम तब गलत होता जब वह तस्करी करके लाखों करोड़ों रुपये कमा रहा होता । इस मकसद और इतनी ज्यादा खेती भी नहीं कर रहा था वो। कुछ दोस्तो ने बिल्कुल सही कहा और लिखा है कि जिन माध्यमों से सरकार और पुलिस की कमाई नहीं होती वो सब काम खराब हैं अन्यथा सब सही हैं इसलिए मैं सभी दोस्तो से कहना चाहता हूं कि अपने बीच छोटे मोटे मतभेदों के कारण किसी को अपने ऊपर हावी ना बनाएं नहीं तो आने वाले समय में हम सब इनकी तानाशाही के शिकार हो जायेंगे। हमें मिलजुलकर ऐसी सभी ताकतों को रोकना होगा। सहमत लोग अपनी प्रतिक्रिया जरुर दें। अगले साल 2022 मैं चुनाव होने वाले हैं। देखते हैं अगले साल में 1 भी भाग का पेड़ काटते हैं या नहीं। धन्यवाद । जय हिन्द जय उत्तराखंड।
नोट- यह आलेख फेसबुक पर मिली प्रतिक्रियाओं से संकलित किया गया है(अतः संकलित प्रतिक्रियाओं से न्यूज पोर्टल उत्तरांचल दर्पण का लोकतांत्रिक भावनाओं को सम्मान देना ही प्राथमिक उद्देश्य है)