भ्रष्टाचार के ‘स्टिंग’ से फिर जख्मी हुआ उत्तराखंडः हरदा बोले,आर्थिक ब्लैकमेलिंग की चपेट में तीसरे मुख्समंत्री,त्रिवेंद्र भी झेल लेंगे

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देहरादून(उत्तरांचल दर्पण ब्यूरो)। पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस महासचिव हरीश रावत एक बार फिर भाजपा सरकार पर हमलावर हो गये है। इस बार कांग्रेस नेता हरदा ने भ्रष्ट्राचार के मुद्दे पर जहां मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को घेरा है। मीडिया से वार्ता करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि स्टिंगबाज राज्य की राजनीति की सफाई करने के बजाय उसे और गंदा कर रहे हैं। इसके लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और उनकी पार्टी को इसके लिए प्रायश्चित करना चाहिए। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने शुक्रवार को प्रदेश मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर तीऽा हमला बोला। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री पर लगे आरोपों को जानदार माना है। इनकी जांच होनी चाहिए। हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक दो दिन के भीतर एफआइआर भी दर्ज की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि स्टिंगकर्ता ने कांग्रेस सरकार के दौरान भी स्टिंग किया था, इस आधार पर मुख्यमंत्री को दोषमुत्तफ़ नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि स्टिंगबाजी से ये साफ हो गया कि इससे राज्य की राजनीति प्रभावित हो रही है। उस समय भाजपा का प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व स्टिंगकर्त्ता की गणेश वंदना कर रहा था। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बिहार में महागठबंधन जीतने जा रहा है। पुलवामा में पाकिस्तानी साजिश का ऽुलासा होने के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में कांग्रेस महासचिव हरीश रावत ने कहा कि कांग्रेस ने उस वत्तफ़ जो सवाल उठाए थे, वे आज भी कायम हैं। कश्मीर में सेना की तैनाती के बावजूद इतनी बड़ी मात्र में आरडीएक्स कैसे पहुंचा। आरडीएक्स को लेकर घूम रही गाड़ी सीआरपीएफ के काफिले के पास कैसे पहुंच गई। केंद्र सरकार इस साजिश का पूर्वानुमान नहीं लगा सकी। जबकि इस घटना की जानकारी से अनजान पीएम नरेंद्र मोदी डिस्कवरी चैनल की शूटिंग में व्यस्थ थे। वहीं पूर्व सीएम व कांग्रेस महासचिव हरीश रावत ने अपनी सरकार के कार्यकाल में डेनिस शराब को लेकर तथाकथित भ्रष्टचार के आरोपो का जिक्र कर नई बहस छेड़ दी है। इतना ही नहीं पूर्व सीएम ने शोसल मीडिया पर एक के बाद कई पोस्ट लिखे है जिसमें उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार को जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि तकनीकी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने भले ही हाईकोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन के एक हिस्से पर रोक लगा दी, मगर शेष आदेश अपनी जगह पर है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने फेसबुक पर अपनी पोस्ट में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए खिला है कि मैं जहां आजकल रहता हूं, वहां थोड़ा एकांत है। मैं एकांत में सोच रहा था कि, सम्मानित हाईकोर्ट ने जो जजमेंट दिया अब उस जजमेंट के आलोक में इतना निश्चित है कि श्री त्रिवेंद्र सिंह जी की सरकार जानी चाहिये, क्योंकि सम्मानित हाईकोर्ट ने बहुत महत्वपूर्ण और स्पष्ट आदेश सी-बी-आई- जांच का दिया है, यदि इसके बावजूद श्री त्रिवेंद्र जी की सरकार बनी रहती है तो यह राजनीतिक बेहयाई होगी, मगर मामला यहीं पर समाप्त नहीं हो रहा है, यह तीससी सरकार है जिसको स्टिंग का दंश झेलना पड़ा है। पहली सरकार डा- रमेश पोखरियाल जी की थी, वो भी उत्तराऽंड से घायल होकर के गये थे, दूसरी सरकार हरीशरावत की थी जिसको ऐसी राजनीतिक अस्थिरता झेलनी पड़ी कि राज्य के विकास और प्रशासनिक स्थिरता पर गहरी चोट पड़ गई, बल्कि उसी दिन शुरुआत हो गई कि हम 70 की विधानसभा में 11 पर आकर ठहर गये और अब श्री त्रिवेंद्र सिंह जी की सरकार है। जरा आप गहराई से विवेचना करें, क्या ये सारे कालऽंड में हुये स्टिंग सार्वजनिक जीवन में स्वच्छता के पक्ष में हुये हैं या राजनीतिक बेईमानी और आर्थिक ब्लैक मेलिंग के लिये हुये हैं? सार्वजनिक जीवन में यदि पत्रकार स्टिंग करते हैं तो मैं उसका स्वागत करता हूं, मगर उद्देश्य यदि कुछ और हो तो राज्य के लिए यह स्थिति ऽतरनाक है। पोऽरियाल जी झेल गये, हरीश रावत ने भी झेल लिया है, त्रिवेंद्र सिंह जी झेल लेंगे, झेल लेंगे चाहे कुछ घायल हो जाएं, मगर राज्य पर तो निरंतर घाव लगते जा रहे हैं। भाजपा चाहे कितना ही हम पर दोष मढ़ने की कोशिश करे, मगर इस स्टिंग के मोंस्टर को उत्तराऽंड में ऽड़ा करने के लिये जो लोग भी दोषी हैं, वो सब भाजपा में विद्यमान हैं और समय-समय पर भाजपा के नेताओं ने अपनी राजनीति के लिये इसका उपयोग भी किया है, आज उनके मुख्यमंत्री इस स्टिंग की चपेट में हैं, तो भाजपा फड़फड़ा रही है, मगर यह सत्य भाजपा झुठला नहीं सकती कि माननीय हाईकोर्ट का जो आदेश है, वो गंभीर है। तकनीकी आधार पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भले ही हाईकोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन के क्रियान्वयन के एक हिस्से पर रोक लगा दी है, मगर शेष आदेश तो अपनी जगह पर ऽड़ा है, इसलिये मुख्यमंत्री जी से नैतिक आधार पर त्यागपत्र मांगना तर्कसंगत है। गौर हो कि देहरादून के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत ने उमेश शर्मा के िऽलाफ ब्लैकमेलिंग, दस्तावेजों की कूटरचना और गलत तरीके से बैंक ऽातों की जानकारी हासिल करने का आरोप लगाते हुए इसी साल सात जुलाई को देहरादून के राजपुर थाने में मुकदमा दर्ज कराया था। मुकदमे में कहा गया था कि उमेश शर्मा ने सोशल मीडिया में ऽबर चलाई कि प्रो- रावत व उनकी पत्नी डॉ- सविता रावत के ऽाते में नोटबंदी के दौरान झारऽंड से अमृतेश चौहान ने 25 लाऽ की धनराशि जमा करवाई। इस धनराशि को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को देने को कहा गया। इस वीडियो में डॉ- सविता रावत को मुख्यमंत्री की पत्नी की सगी बहन बताया गया। प्रो- रावत के अनुसार ये सभी तथ्य असत्य हैं। उमेश शर्मा ने उनके बैंक के कागजात कूटरचित तरीके से बनाए। साथ ही बैंक ऽातों की सूचना भी गैर कानूनी तरीके से प्राप्त की। इस बीच सरकार ने आरोपित उमेश शर्मा के िऽलाफ गैंगस्टर भी लगा दी थी। आरोपित उमेश शर्मा ने अपनी गिरफ्रतारी पर रोक के लिये नैनीताल उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। उनकी ओर से पूर्व कानून मंत्री व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवत्तफ़ा कपिल सिब्बल ने पैरवी की। उनकी दलील थी कि नोटबंदी के दौरान हुए लेनदेन के मामले में उमेश शर्मा के िऽलाफ झारऽंड में मुकदमा दर्ज हुआ था, जिसमें वह पहले से ही जमानत पर है। इसलिए एक ही मुकदमे के लिये दो बार गिरफ्रतारी नहीं हो सकती। पत्रकार उमेश कुमार व अन्य के िऽलाफ देहरादून में भी मामला दर्ज किया था। 16 अक्टूबर को इस मामले में कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रऽ लिया था। झारऽंड के अमृतेश चौहान ने गौसेवा आयोग अध्यक्ष बनने को दिए दिए थे 25 लाऽ, जो प्रो- रावत व उनकी पत्नी डॉ सविता के बैंक ऽाते में जमा करने को कहा था। यह रकम मुख्यमंत्री को मिलनी थी। न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी की एकलपीठ ने सीबीआई से मामले में केस दर्ज करने को कहा। आदेश में एसपी सीबीआइ देहरादून को दो दिन के भीतर केस दर्ज कर जांच शुरू करने को कहा गया। पत्रकार उमेश शर्मा द्वारा दिऽाए गए वीडियो में प्रथमदृष्टया आपराधिक षडयंत्र जैसी बात नही है। वहीं एक अन्य पोस्ट में पूर्व सीएम हरदा ने सरकार पर तंज कसा है। उन्होंने लिखा कि पूरा उत्तराखंड बड़ी उत्सुकता से षणमुगम रिपोर्ट का इंतजार कर रहा है और मुझे भी इंतजार है क्योंकि मैं, अपने राज्य की ब्यूरोक्रेसी का प्रशंसक न सही तो कम से कम उनका हिमायती जरूर रहा हूं, तो मैं देखना चाहता हूं कि जिनकी हिमायत करता था उनमें रीढ़ की हड्डी है या नहीं, तो बड़ी उत्सुकता से पूरे राज्य को षणमुगम प्रसंग में जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा है। पूर्व सीएम ने एक अन्य पोस्ट में लिखा है कि मैंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल की कुछ चर्चित बातों को याद करता हूं तो मुझे लगता है कि मैंने अपने मन में कुछ चीजों को इतना सही और सार्वजनिक रूप से उपयोगी मान लिया कि मैं उनके क्रियान्वयन पर तुल गया, सार्वजनिक जीवन के व्यक्ति को कभी जिद्दी नहीं होना चाहिये। मैंने अपने कई निर्णयों को जिद्द की हद तक आगे बढ़ाया उनमें से कुछ को लीज पर भूमि देने का और दूसरा मामला डेनिस के रूप में कुछ समय तक शराब के प्रचलन का भी है और भी कुछ ऐसे प्रकरण हैं। मेरी सोच कितनी सही थी और मैं कहां पर गलत था! मैं इन दोनों पर आपसे अपने विचार साझा कर रहा हूँ।

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