एनएच मुआवजा घोटालाःतत्कालीन आर्बिट्रेटर की भूमिका संदिग्ध,दून में खलबली
पुख्ता साक्ष्य होने का एसएसआईटी कर रही दावा,बड़ी कार्रवाई के लिए अब शासन के फैसले का इंतजार
देहरादून/रूद्रपुर। बहुचर्चित एनएच भूमि मुआवजा घोटाले की जांच अब अतिम दौर में है। इस जांच की ‘आंच’ अब आईएएस अधिकारी तत्कालीन आर्बिट्रेटर तक पहुंच गयी है। घोटाले में आईएएस अफसर का नाम आने से जहां जिले से लेकर दून तक अफसरों में खलबली मची हुई है वहीं शासन भी इसे लेकर सकते में हैं। माना जा रहा है कि जल्द ही इस घोटाले में एक आईएएस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। बहुचर्चित एनएच 74 भूमि मुआवजा घोटाले की जांच में अब तक आठ पीसीएस अधिकारी नप चुके हैं जबकि कई अन्य कार्मिकों के खिलाफ भी कार्रवाई हो चुकी है। पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हुए इस महाघोटाले को लेकर प्रदेश की मौजूदा सरकार बेहद संजीदा है। घोटाले की जांच जैसे जैसे आगे बढ़ती गयी वैसे वैसे इस घोटाले की कई परतें सामने आती रही है। मामले की जांच अब लगभग अंतिम दौर में है। सूत्रें की मानें तो मामले की जांच कर रही एसआईटी ने अब इस मामले में छोटी मछलियों पर शिकंजा कसने के बाद बड़ी मछलियों को भी जांच के दायरे में ले लिया है। इसमें एसआईटी को सफलता भी मिली है। इस घोटाले का खुलासा पूर्व कमिश्नर डी सैंथिल पांडियन की जांच के बाद हुआ था। पांडियन ने अपनी जांच रिपोर्ट शासन को प्रेषित करके मुआवजा घोटाले का खुलासा किया था। इसके बाद धीरे धीरे यह मामला परत दर परत खुलता गया। शुरूआती जांच में मुआवजे के इस खेल में भूमि अध्याप्ति अधिकारी (एसएलओ) की भूमिका सबसे अहम मानी जा रही थी। जिसके चलते जांच में जुटी एसआईटी ने एसएलओ पर शिकंजा कसा। इस समय तत्कालीन एसएलओ जेल में है। इन छोटी मछलियों के साथ ही एसआईटी ने जांच का दायरा बढ़ाते हुए तत्कालीन आर्बिेट्रेटर जो उस वक्त जिले के जिलाधिकारी भी थे को भी जांच के घेरे में लिया है। दरअसल भूमि अधिग्रहण में मुआवजे के लिए सबसे पहले भूमि अध्याप्ति अधिकारी (एसएलओ) अवार्ड तैयार करते है। जिसके आधार पर प्रभावित व्यक्ति को मुआवजा प्राप्त होता है। यदि एसएलओ के मुआवजा निर्धारण से कोई किसान संतुष्ट नहीं होता तो मामला आर्बिट्रेशन के लिए भेजा जाता है। अमूमन जिसका चार्ज मौजूदा जिलाधिकारी के पास होता है। जहां बाकायदा न्यायालय की तरह अवार्ड को लेकर जिरह होती है। इसमें शासन,एनएच और प्रभावित व्यक्ति का वकील शामिल होता है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद इसमें अंतिम फैसला आर्बिट्रेटर यानि डीएम को करना होता है। सूत्रें की मानें तो मुआवजे के खेल में तत्कालीन आर्बिट्रेटर ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। इसका इशारा पिछले दिनों पकड़े गये पूर्व एसएलओ डीपी सिंह ने भी किया था। इधर अब एसआईटी की जांच रिपोर्ट में भी जिले के तत्कालीन आईएएस अधिकारी का नाम आया है। जांच की रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय के साथ ही शासन को भी भेजी गयी है। इसमें आईएएस अधिकारी के खिलाफ पुख्ता सबूत है, जिससे उनके खिलाफ कार्रवाई तय मानी जा रही है। महाघोटाले की जांच रिपोर्ट में आईएएस अधिकारी का नाम आने से नौकरशाहों में खलबली मची है। अब तक कई अधिकारियों को जेल की सलाखों के पीछे डाल चुकी एसआईटी को अब इस मामले में शासन के फैसले का इंतजार है। माना जा रहा है कि शासन से दिशा निर्देश मिलने के बाद इस मामले में तत्कालीन आईएएस अधिकारी की गर्दन फंसना तय है और आईएएस अधिकारी अगर शिकंजे ंमें आया तो उसे संरक्षण देने वालों का भी पर्दाफाश हो सकता है।
—तो मगरमच्छों का क्या होगा !
देहरादून। जीरो टॉलरेंस के बड़े बड़े दावे करने वाली भाजपा सरकार पर अब उत्तराखण्ड के सबसे बड़े भूमि मुआवजा घोटाले में बड़ी कार्रवाई के लिए परीक्षा की घड़ी सामने आ गयी है। घोटाले की जांच कर रही एसआईटी ने अब छोटी मछलियों के बाद बड़ी मछलियों पर हाथ डालना शुरू कर दिया है। जांच में जिले में रह चुके तत्कालीन आईएएस अधिकारी के खिलाफ पुख्ता साक्ष्य मिलने के बाद अब कार्रवाई के लिए गेंद शासन के पाले में आ गयी है। ऐसे में माना जा रहा है कि आईएएस अधिकारी पर शिकंजा कसा तो उन्हें संरक्षण देने वाले मगरमच्छों की भूमिका के भ्रष्टाचार का भी पर्दाफाश हो सकता है।
सरकार चाहकर भी नहीं बचा पाएगी आईएएस अफसर को
रुद्रपुर। एनएच 74 में हुए करोड़ों के भूमि घोटाले की गाज कुछ आलाअधिकारियों पर गिरना तय हो गया है । अब शासन चाहकर भी इन्हें नहीं बचा पाएगा। सूत्रें के मुताबिक एनएच 74 में हुए करोड़ों के भूमि घोटाले की रिपोर्ट एसआईटी टीम ने तैयार कर शासन को सौंप दी है। जिसमें आर्बिट्रेटर की भूमिका संदिग्ध है। चूंकि मामला मीडिया की सूर्खिया बन चुका है इसलिये शासन भी इस मामले को दबाने से बचेगा। बताया जाता है कि भूमि मुआवजा घोटाले में तत्कालीन अफसरों और काश्तकारों की जांच के बाद एसआईटी को आर्बिट्रेशन में लाये गये कुछ मामलों में जमकर धांधलेबाजी हुई है। अपनी जांच रिपोर्ट एवं अनियमितता के साक्ष्य मिलने के बाद एसआईटी ने उक्त अफसरों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के लिए जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी है। सूत्रें की मानें तो जिस प्रकार की जांच रिपोर्ट शासन को भेजी गयी है उसमें दोषियों का बचना नामुमकिन है। सूत्रें की माने तो बतौर आर्बिट्रेटर दो तत्कालीन अफसरों ने गलत अभिनिर्णय आदेशों को सही दर्शाकर घोटालों को नजरअंदाज कर दिया था। इन दोनों अफसरों के आर्बिट्रेशन न्यायालय में करीब एक दर्जन वाद दायर हुए थे। इस रिपोर्ट का संज्ञान स्वयं डीजीपी ने लिया है। जैसे ही एसआईटी की भेजी रिपोर्ट देहरादून पहुंची तो वहां के आलाधिकारियों में हड़कम्प मचा हुआ है।