काशीपुर के तमाम तालाबों में पल रहे हैं करोड़ों के प्रतिबंधित थाई मांगुर

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मनोज श्रीवास्तव
काशीपुर। भारत सरकार द्वारा थाई मांगुर के पालन, विपणन, संवर्धन पर पूरी तरह प्रतिबंध होने के बावजूद यहाँ क्षेत्र के दर्जनों तालाबों में कारोबारियों द्वारा करोड़ों के प्रतिबंधित मांगुर पाले गए हैं। कानून की आंख में धूल झोंककर किए जा रहे इस गैरकानूनी कारोबार से पर्यावरण ही नहीं वरन इंसानी जिंदगियों पर भी घातक बीमारियों का खतरा मंडराने लगा है। इस बारे में माकूल जवाब देने से जिम्मेदार अधिकारी लगातार कतराते देखे जा रहे हैं। गोरखधंधे से देसी मांगुर का अस्तित्व भी खतरे में है। थाईलैंड में विकसित की गई मांसाहारी मछली मांगूर की विशेषता है कि किसी भी दूषित पानी में यह तेजी से बढ़ती है जहां अन्य मछलियां पानी में आॅक्सीजन की कमी से मर जाती हैं हैं। लेकिन यह जीवित रहती है। थाई मांगुर छोटी मछलियों समेत अन्य जलीय कीड़े मकोड़ो को खा जाती है। इससे तालाब का पर्यावरण भी खराब होता है। बताते हैं कि इसका सेवन मनुष्यों की सेहत के लिए बेहद घातक है। थाई मांगुर के सेवन से गंभीर बीमारियां पनपने लगती हैं इन्हीं तमाम बातों को दृष्टिगत करते हुए वर्ष 2000 में भारत सरकार ने थाई मांगुर के पालन विपणन व संवर्धन पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन इसके बावजूद कम समय में अधिक माल कमाने को लेकर मत्स्य कारोबारी सरकार की आंख में धूल झोंककर यहाँ करोड़ों का मुनाफा कमा रहे हैं। प्रतिबंधित मछली बाजारों में भी खुलेआम बेची जा रही है। जानकारों की माने तो देसी मांगुर लगभग एक वर्ष में तैयार होता है। इसे अनाज व घास फूस खिलाया जाता है जबकि थाई मांगुर से पले तालाब में स्लाॅटर हाॅउस से लाया गया बचा खुचा मांस डाला जाता है। थाई मांगुर लगभग 3 माह में पूरी तरह तैयार हो जाता है। तीन माह के भीतर इसका वजन 2 से 3 किलो हो जाता है। काशीपुर से प्रतिबंधित थाई मांगुर की बड़ी खेप समीपवर्ती राज्य उत्तर प्रदेश में चोरी-छिपे भेजे जाने की खबर है। इस मामले में जब संयुत्तफ मजिस्ट्रेट गौरव सिंघल से मोबाइल फोन पर संपर्क करने का प्रयास किया गया तो फोन नहीं उठ सका। रामनगर रोड पर एक पेपर मिल के पीछे दर्जनों एकड़ भूमि पर लगभग 16 भारी- भरकम तालाबों में मत्स्य पालन किया जा रहा है। इसमें से दो तालाब ऐसे हैं जिसमें 50 कुंतल से अधिक प्रतिबंधित थाई मांगुर पूरी तरह पलकर तैयार है कोरोना महामारी की वजह से मत्स्य कारोबारी उसे अभी ठिकाने नहीं लगा पा रहे हैं। इसी तरह ग्राम बांसखेड़ा में गांव के छोर पर स्थित एक तालाब में श्री राम नामक व्यत्तिफ ने प्रतिबंधित मांगुर की बड़ी खेप पाल रखी है। तालाब की रखवाली में लगाए गए मजदूरों का कहना है कि प्रतिबंधित मछली का सौदा 85 से 90 रूपये प्रति किलो की दर से थोक में तय किया जाता है। कारोबारी दबी जबान यह भी कहते हैं कि उनके इस कार्य की जानकारी संबंधित विभाग के अधिकारियों को बखूबी है। ऐसे ही प्रतिबंधित थाई मांगुर काशीपुर के धनौरी फिरोजपुर समेत जसपुर, बाजपुर, महुआखेड़ा गंज के कतिपय तालाबों में भी पाले जाने की खबर है।
मछली पालक मांसाहारी मांगुर मछली को चोरी छुपे तालाबों में पालन करते रहते हैं । जबकि इसके पालने तथा इसकी बाजार व मंडियों में बिक्री पर केन्द्र सरकार द्वारा बैन लगाया हुआ है । यह देशी मांगुर मछली से एकदम भिन्न है, यह एक अÚीकन प्रजाति होने के साथ मांसाहारी मांगुर मछली पर्यावरण और नदी नालों व तालाबों में रहने वाले जीव-जन्तुओं के लिए बहुत ही हानिकारक है । इसके सेवन करने से बीमारी की संभावना ज्यादा रहती है । क्योंकि मछली पालक ज्यादातर सिलाटर हाउसों से मांस लाकर तालाबों में मछली के भोजन को डालते हैं । देशी मांगूर की अपेक्षा इसमें ज्यादा मुनाफा होने की वजह से चोरी छुपे इसका पालन किया जाता है । सूचना मिलने पर संबंधित अधिकारी समय समय पर छापेमारी करते रहते हैं ।
-डा.एस के शर्मा, सह. निदेशक मतस्य, कृषि विग्यान केन्द्र काशीपुर

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