भूख से तड़प कर मासूम बालिकाओं की मौत से मानवता शर्मसार

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-पंकज वार्ष्णेय- हल्द्वानी, 29 जुलाई। हे भगवान! हमारे देश में कितनी राजनीति होगी यह आज बहुत चिंता का विषय है। भले ही हमारे देश और राज्यों की सरकारें बड़े-बड़े दावे करती थम नहीं रही हैं कि हमने ये कर दिया, हमने वो कर दिया, हमने ये काम कर दिया हमने वह काम कर दिया लेकिन देश में आज भी मासूम बच्चियों के भूख से मरने की हृदयविदारक व्यथा से आज हमारी आत्मा रो रही है। देश में आज भी इतनी बुरी स्थिति है कि जिस देश में वर्षभर में 2 से 4 बार तक कन्या पूजन करके करोड़ों कन्याओं के सम्मान की हम रक्षा करने की शपथ लेते हैं। वहीं भूख से तीन मासूम बालिकाएं मर गईं। इस हैरतअंगेज घटना के बावजूद हमारे देश की क्या बल्कि किसी भी राज्य की सरकारों की आत्मा इस तरह की हृदय विदारक घटना पर चिंतन करने की बजाय राजनीति करने में ही उलझी हुई हैं। देश का बड़ा दुर्भाग्य है कि आज हमारे देश के उस राज्य की केजरीवाल सरकार अपने हक, अधिकार पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा कर न्याय पाते हैं, उस राज्य का गवर्नर भी सुप्रीम कोर्ट में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है और तो और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशों में जाकर 200 गौमाता (गाय) दान देकर आता है। लेकिन उन्हीं के नाक के नीचे तीन मासूम बालिकाएं भूख से तड़प कर मर गई यह बड़ा चिंता का विषय है। मैं तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके मन की बात में सवाल पूछना चाहता हूं कि अब इन मासूम बालिकाओं के भूख से तड़प-तड़प कर मरने के बाद अब उनका मन क्या कहता है। क्या उन्होंने कोई प्रायश्चित किया, इतना बड़ा सामाजिक अपराध हो गया। राजनीति का ढिंढोरा पूरे देश में पीटने वाली भारतीय जनता पार्टी कहां सो रही है।  मैं उस कांग्रेस से भी पूछना चाहता हूं कि इतनी बड़ी घटना के बाद क्या आप लोगों की आंखें बंद हैं, क्या अभी भी आप कुंभकर्णीय नींद में सोए हैं। बहरहाल अभी तो मेरा सवाल इन सरकारों के साथ-साथ देश में बढ़ते उन धर्म के ठेकेदारों से भी है जो बड़े-बड़े उपदेशों का बखान करके समाजसेवा का और भंडारे, लंगर, दावतें कराने की गाथा प्रस्तुत करते हैं। यूं तो हिंदू धर्म के ठेकेदार साल में नवरात्र, सावन आदि पर्वों पर हजारों भंडारे करके लाखों लोगों को भोजन कराने का दावा करते हैं, मुस्लिम धर्म के लोग भी लंगर और दावतें कराने की बातें करते हैं।  मुस्लिम धर्म के अनुसार कोई भी मुस्लिम अपने घर में 40 दिन से अधिक का अनाज आदि सामान नहीं रख सकता और उसकी नैतिक जिम्मेदारी होती है कि उसका पड़ोसी भूखा तो नहीं है यह भी उसको देखना है। वहीं दूसरी ओर सिख धर्म में पूरे देश में गुरुद्वारों में गरीबों को भोजन कराने की बात कही जाती है तथा साल में कई बार लंगर कराकर हजारों लोगों को भोजन कराया जाता है। ईसाई धर्म के अनुसार भी सेवा भाव उनका पहला कर्तव्य है। परंतु यह शर्मनाक स्थिति है कि देश में चारों धर्म के हजारों व्याख्याकारों के बावजूद देश की तीन मासूम बालिकाएं भूख से तड़प-तड़प कर मर गई। न तो हमारे देश की और न हमारे उस राज्य की सरकारें जागी जहां यह घटना घटित हुई। राजनीति का ढिंढोरा पीटने वाले नेताओं ने इस सामाजिक मानवीय अपराध पर भी राजनीति के अलावा कुछ नहीं किया। समाज के उन धर्मों के ठेकेदारों से भी मेरा सवाल है कि दिल्ली में उनका कोई भी अनुयायी या कार्यकर्ता नहीं रहता है। आखिर इतनी बड़ी हृदयविदारक घटना हमारे देश में हो गई और हम लोग राजनीति कर बड़े-बड़े उपदेश दे रहे हैं। बड़ा ही शर्मनाक है। आज पूरे देश को इस घटना के बाद बेहद चिंता की ही जरूरत नहीं है बल्कि देश में आज भी हमें कुंभकर्णीय नींद से जागकर पुनः ऐसी स्थिति न हो उस पर विचार और कार्य करने की अति आवश्यकता है। देश के नेताओं और धर्म के ठेकेदारो जागो। आगे कोई भी निरपराध मानव भूख से तड़प-तड़प कर न मरे।

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