सूचना अधिकार व जनहित याचिका का दुरुपयोग रोकने की सख्त आवश्यकता
पंकज वार्ष्णेय ‘निर्भय’
हल्द्वानी, 23 जुलाई। माननीय न्यायालय में लगातार दायर हो रही जनहित याचिकाओं एवं सूचना अधिकार के अंतर्गत मांगी जा रही सूचनाओं की बाढ़ आने से आज समाज में ब्लैकमेलिंग का गलत संदेश भी जा रहा है। कई लोग सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अनावश्यक तथा कई ऐसी सूचनाओं की मांग कर रहे हैं जिससे वह कई लोगों को ब्लैक मेल कर सकें। वहीं कई जनहित याचिकाएं भी माननीय न्यायालय में ऐसी दायर की जा रही हैं जिससे भारत की न्यायिक व्यवस्था प्रभावित हो रही है। आज अक्सर देखा जा रहा है कि माननीय न्यायालय द्वारा जनहित याचिकाओं का संज्ञान लेकर कई ऐसे फैसले दिए जा रहे हैं जिसका न्याय से कोई अभिप्राय नहीं है। बल्कि उन फैसलों से कई लोगों के स्वार्थ सिद्ध भी हो रहे हैं। सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत कई लोग ऐसी अनावश्यक सूचना कई विभागों से मांग रहे हैं जिसका कोई सिर-पैर नहीं है तथा उस सूचना का जन सामान्य के लिए कोई भी लाभ नहीं है। बल्कि उस सूचना से उनका स्वार्थ सिद्ध होने वाला है। अब अगर जनहित याचिका दायर करने वाले तथा सूचना अधिकार मांगने वाले की योग्यता भी तय करने का समय आ गया है। माननीय न्यायालय तथा सरकार को अब एक नया कानून जनहित याचिका दायर करने वालों तथा सूचना अधिकार मांगने वालों के लिए तय करने की आवश्यकता है। जिसके तहत सूचना अधिकार के तहत सूचना मांगने वालों तथा जनहित याचिका दायर करने वालों की योग्यता शिक्षा, चरित्र, उद्देश्य भी स्पष्ट होना आवश्यक हो गया है। और तो और इससे भारत की न्यायिक व्यवस्था प्रभावित न हो इस पर भी चिंतन करना अति आवश्यक हो गया है। ऐसे में भारत की सरकार तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय को कानून बनाने की अति आवश्यकता है। क्योंकि अक्सर देखा जा रहा है कि कई बार कई माननीय न्यायालयों से हत्या व बलात्कार जैसे जघन्य मामलों में सबूतों का अभाव दिखाकर अपराधियों को बाइज्जत बरी कर दिया जा रहा है। वहीं न्यायालय जनहित याचिकाओं के माध्यम से कई लोगों का स्वार्थ सिद्ध करते हुए सरकार की कार्यप्रणाली पर भी असर डाला जा रहा है। इन सब पर माननीय न्यायालय व सरकार का अति गहन चिंतन की आवश्यकता है।
जनहित में होना चाहिए आरटीआई का उपयोगःमिश्रा
हल्द्वानी। उत्तराखंड सरकार के सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के उपनिदेशक योगेश मिश्रा का कहना है कि सूचना अधिकार अधिनियम का इस्तेमाल जनहित में कम हो रहा है। अधिकारिक सूचना लेनी ही चाहिए। उन्होंने कहा कि कई लोग मीडिया की सूर्खियों में बने रहने तथा सोशल मीडिया में छाए रहने के लिए सूचना अधिकार अधिनियम व जनहित याचिका के मौलिक अधिकार का उपयोग व दुरुपयोग कर रहे हैं। जबकि उनका मांगी गई सूचना से विकास का कोई आधार नहीं होता है। उन्होंने कहा कि सूचना अधिकार अधिनियम व जनहित याचिका का दुरुपयोग गलत है। उन्होंने कहा कि सिर्फ जनहित के लिए सूचना अधिकार अधिनियम व जनहित याचिका के मौलिक अधिकार का प्रयोग होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह भी देखने में आ रहा है कि कई बार लोग फर्जी नामों से सूचना अधिकार अधिनियम का दुरुपयोग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सूचना अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद हर विभाग में दो सूचना अधिकारी विशेष रूप से सूचना देने के लिए रखे गए हैं। स्टाफ की कमी की वजह से विभागीय कार्यप्रणाली प्रभावित हो रही है। कई बार औचित्यहीन 25-30 वर्ष पुराना इतिहास सूचना अधिकार के तहत मांगा जाता है जिसका मानवीय दृष्टिकोण से कोई सरोकार नहीं है। जनहित में सरकारी कार्यों में बाधा नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज भी कई विभाग के अधिकारी ऐसे हैं जो बिना आरटीआई के ही जनहित में सूचना उपलब्ध करा देते हैं। जबकि फोन, एसएमएस, पोस्टल आर्डर आदि के माध्यम से सूचना उपलब्ध कराई जा रही है। उन्होंने कहा कि सूचना अधिकार अधिनियम का दुरुपयोग व जनहित याचिकाओं के मौलिक अधिकार का दुरुपयोग नहीं होने के लिए कानून बनना चाहिए।
आधारहीन सूचनाएं न मांगी जाएं: एसएसपी
हल्द्वानी।सूचना अधिकार अधिनियम तथा जनहित याचिकाओं पर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जन्मेजय खंडूरी का कहना है कि कई बार ऐसी सूचनाएं मांगी जाती हैं जो आधारहीन होती हैं, जिनका जनहित से कोई सरोकार नहीं होता है। ऐसी भी जनहित याचिकाएं दायर की जाती हैं जो व्यक्तिगत होती हैं। उन्होंने कहा कि इससे समय और संसाधन दोनों का ही नुकसान होता है। उन्होंने सभी याचीकर्ताओं से अपील की कि वही सूचना मांगें जिससे जनता का हित हो। जिसका केाई औचित्य व आधार हो। उन्होंने कहा कि जो विभागों में समाहित हों। उन्होंने कहा कि अनावश्यक सूचनाओं से जनसामान्य का नुकसान नहीं होना चाहिए। सूचना अधिकार अधिनियम व जनहित याचिकाओं के मौलिक अधिकार का दुरुपयोग भी नहीं होना चाहिए।
अब शक की दृष्टि से देखा जाने लगा है सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं कोःचड्ढा
हल्द्वानी। वरिष्ठ आरटीआई कार्यकर्ता गुरविंदर सिंह चड्ढा का कहना है कि सूचना अधिकार अधिनियम 2005 में आया था, उसके बाद सरकारी कामकाज व सरकारी विभागों में काफी पारदर्शिता आई है। कोई भी भारत का नागरिक 10 रुपये का शुल्क देकर किसी भी विभाग से सूचना प्राप्त कर सकता है। एक समय था जब सड़क, बिजली, पानी, सिलेंडर जैसी कई समस्याओं का सामना जनता को करना पड़ता था, लेकिन सूचना अधिकार अधिनियम आने के बाद इन समस्याओं का काफी निदान हुआ है। वर्तमान में सूचना अधिकार अधिनियम का चंद लोग गलत प्रयोग कर रहे हैं, ऐसे में समस्त सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं को आज शक की दृष्टि से देखा जाने लगा है। वर्तमान में सूचना अधिकार का प्रयोग करने वाले के लिए कोयले की खान में सफेद कपड़े पहनकर जाने के बराबर हो गया है। उन्होंने कहा कि कई लोग समाजहित में सूचना अधिकार अधिनियम का प्रयोग कर रहे हैं। सरकार को गलत लोगों को चिन्हित कर कार्रवाई करनी चाहिए। वर्तमान वर्ष 2018 सूचना अधिकार अधिनियम में काफी बदलाव किए जा रहे हैं जो अच्छे हैं।उन्होंने वास्तविक आरटीआई कार्यकर्ता व जन हित याचिका दायर करने वाले को सरकार से सुरक्षा मुहैया कराने का सुझाव दिया।
जनता के विवेक से ही रोका जा सकता है आरटीआई का दुरुपयोग
हल्द्वानी, 23 जुलाई। उत्तराखंड हाईकोर्ट के पूर्व अपर महाधिवक्ता बिंदेश गुप्ता ने सूचना अधिकार अधिनियम तथा जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग के मामले में कहा कि कानून बनाकर इनका दुरुपयोग रोक पाना संभव नहीं है। इसे जनता के विवेक पर ही लाभदायक बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सूचना अधिकार अधिनियम व जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। उनका दुरुपयोग गहन चिंता का विषय है। अगर इनका दुरुपयोग बंद हो जाए तो यह कानून जनता के हित में है। श्रीमान बिंदेश गुप्ता का कहना था कि ऐसे भी भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक भारतीय नागरिक के मौलिक अधिकारों में किसी भी आधार पर विभेद नहीं किया जा सकता। उनका कहना था कि शैक्षिक, लैंगिंग, आर्थिक, सामाजिक सभी प्रकार से किसी भी कानून में भेदभाव नहीं है। अच्छे कानूनों का उपयोग प्रत्येक नागरिकों के विवेक पर निर्भर करता है। सदुपयोग करने पर वह लाभदायक होगा, दुरुपयोग करेंगे तो वह नुकसानदायक होगा। उनका कहना था कि अगर कोई भी अपराधी अपने बचाव में सूचना अधिकार अधिनियम का इस्तेमाल करता है तो इसमें कोई गलत नहीं है। क्योंकि प्रायः कई बार ऐसा देखने में आया है कि किसी भी मुलजिम की गिरफ्रतारी कहीं से कभी होती है पुलिस उसे कहीं और से और कभी भी दिखा देती है।आज सीसीटीवी कैमरे जगह-जगह होने से इस पर विराम लग रहा है। सूचना अधिकार अधिनियम व जनहित याचिकाओं का फायदा जनता को हो रहा है। इससे पूरे सिस्टम में बदलाव आया है। भविष्य और भी बदलाव आने की उम्मीद है।