लाॅकडाउन से संकट में लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ

सैकड़ों मीडिया कर्मियों के सामने खड़ा हुआ रोजी रोटी का संकट

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चिराग तले अंधेरा की कहावत आपने सुनी होगी यह कहावत सच साबित हो रही है। कोरोना संक्रमण की वैश्विक आपदा में जहां गरीब से लेकर अमीर तक सभी को सरकार राहत देने की बात कर रही है वहीं इस आपदा में प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे मीडिया के लिए सरकार अभी तक सिर्फ कोरे आश्वासन ही मिल रहे हैं। संकट के इस दौर में आज तमाम छोटे और मध्यम अखवारों और उनसे जुड़े मीडिया कर्मियों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। आज मीडिया से जुड़े हजारों लोग बेरोजगार हो चुके हैं। जब तक अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आती तब तक इन मीडिया कर्मियों के सामने संटकर बरकरार रहना तय है। कहने को मीडिया को लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ कहा जाता है लेकिन संकट के इस समय में लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ सरकार के साथ खड़ा तो है लेकिन सरकार मीडिया के साथ खड़ी नजर नही आ रही है। हालातों के सामने लाचार हो चुके मीडिया कर्मियों के सरकार ने अभी तक कोई राहत देने वाली घोषणा नहीं है। उत्तराखंड की ही बात करें तो यहां पर सैकड़ों की संख्या में लघु और मध्यम समाचार पत्र और पत्रिकाएं समाज में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। सरकार की योजनाओं के प्रचार प्रसार से लेकर जनसमस्याओं को सरकार तक पहुंचाने में सेतु का काम कर रहे इन समाचार पत्रों के सामने आज बड़ा संकट खड़ा हो गया है। इन समाचार पत्रों में काम करने वाले हजारों लोगों की रोजी रोटी का एक ही आसरा है। कोरोना के चलते आज तमाम समाचार पत्र बंद हो चुके हैं या फिर सोशल मीडिया के माध्यम से ही संचालित हो रहे हैं। आय के साधन ;विज्ञापनद्ध बंद होने से अधिकांश समाचार पत्र के मालिकानों ने कर्मचारियों की छुट्टी कर दी है क्यों कि उनके सामने भी मजबूरी है कि वह कर्मचारियों का वेतन कहां से दें। क्यों कि विज्ञापन बाजार पर ही निर्भर है और लाॅकडाउन के चलते बाजार से विज्ञापन मिलने की कोई उम्मीद रखना बेमानी है। 3 मई के बाद लाॅकडाउन खुलता भी है तो भी बाजार को पटरी में आने में 6 माह या साल भर का समय लग सकता है। ऐसे में अगले करीब एक साल तक समाचार पत्रों को विज्ञापनों से वंचित होना पड़ेगा और विज्ञापनों के बिना अखबार चलने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज संकट के इस समय में सरकार और विभिन्न समाजसेवी संगठन जरूरतमंदों के लिए हर मदद कर हरसंभव प्रयास कर रहे हैं परंतु किसी ने भी समाज का आईना सबके समक्ष पेश करने वाले कलमकारों और उनके परिवारों की ओर ध्यान नहीं दिया।लाॅक डाउन के चलते आज मीडिया से जुड़े तमाम लोगों की स्थिति दयनीय हो चुकी है इस स्थिति में वह न कुछ कर पाने और न कुछ कह पाने की स्थिति में है। समाज के हर वर्ग की आवाज को बुलंद करने के लिए हर खतरे से भी खेलने वाले कलमकार आज अपनी मदद के लिए सरकार से कुछ कह पाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे। अपनी दयनीय हालत में भी आज तमाम कलमकार कोरोना के खतरे के बीच भी जरूरतमंदों की आवाज को शासन प्रशासन तक पहुंचाने की कोशिश में लगातार जुटे हुए हैं। मेरा प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री से आग्रह है कि पूरे उत्तराखंड में समाचार पत्रों से विभिन्न समाचार पत्रों से जुड़े पत्रकार कर्मचारी जो खासकर लघु श्रेणी में आते हैं की ओर भी विशेष ध्यान दिया जाये। आपदा के इस समय में उनको भी आर्थिक मदद करके राहत पहुंचाई जाये। क्यों कि मीडिया से जुड़े अधिकांश परिवार इसपर ही निर्भर हैं। सैकड़ों ऐसे भी मीडिया कर्मी हैं जो अपने घरों से दूसरे शहरों में जाकर मकान किराए लेकर काम कर रहे हैं। ऐसे में वह कैसे परिवार का पालन पोषण करेंगे और कैसे कराया मकान का किराया चुकाएंगे यह सोचनीय विषय है।
अशोक गुलाटी, वरिष्ठ पत्रकार

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