भारत को कोरोना से निपटनें हेतु अपनाना होगा चाईना व साउथ कोरिया माडल
भारत को लाकडाउन के साथ ही बड़े स्तर पर टैस्टिंग, वैंटीलेटर्स व स्वास्थ्य सुविधाओं के चार स्तरीय चाईना माडल की करनी होगी तैयारी
चाइना के वुहान से प्रारम्भ हुये कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद पूरी दुनिया मे कोरोना से लड़ने के दो मॉडल सामने आए हैं। अनेको देशो नें इस पर सफलतापूर्वक नियंत्रण पा लिया, तो अनेको देशो में लाशो के अंबार लग गये। आिऽर इसकी वजह क्या है। हमनें अनेको देशो की योजनाओ को देऽा तो पाया कि सारा ऽेल सरकार के राजनैतिक निर्णय से बने माडलो का है। इन सभी माडल्स को हम प्रमुऽतः दो तरह से बांट सकते है। प्रथम इटली का मॉडल है व दूसरा दक्षिण कोरिया का मॉडल है।
ईटली माडल-यह इटली का मॉडल क्या है, । आपको बताते हैं कि इटली में 20 फरवरी को यहां पहला कोरोना पॉजिटिव केस मिला था। 3 दिनों के भीतर यानि कि 23 फरवरी को एक साथ 130 लोग कोरोना पॉजिटिव मिले। इटली की सरकार नें सभी बड़े शहरो को लाक डाउन घोषित कर दिया। लेकिन वास्तव में सच्चाई यह थी कि इटली की सरकार कोविड-19 को ईतने बड़े स्तर पर फैल जाने के लिए तैयार नहीं थी। इटली के प्रधानमंत्री नें अपनी ही नीतियों को सही से लागू नहीं किया। उल्टे मिलान शहर में तो चीनियों के समर्थन में कैंपेन शुरू कर दिया गया, ताकि समरसता की भावना को प्रर्दशित किया जा सके। बड़ी संख्या में लोगो के सैंपल लेने की बजाये केवल संदिग्धों के सैंपल भरे गये। इससे सही संख्या में मरीज सामने नहीं आ पाये, लेकिन यह मर्ज चुपचाप अंदर ही अंदर आम जनता को अपनी गिरफत में लेता गया।
आिऽरकार 8 मार्च को को इटली के प्रधानमंत्री के चेतने तक 7000 से अधिक लोग कोरोना पॉजिटिव थे। तब जाकर इसे नेशनल इमरजेंसी घोषित किया गया लेकिन तब तक देर हो चुकी है और संक्रमण काफी फैल चुका था। अब इटली कोरोना का सबसे बड़ा केन्द्र बनकर उभरा, जहां रोजना सैकड़ों लोग मर रहे है।
चीन व दक्षिण कोरिया माडल-अब चीन दक्षिण कोरिया के तरीके पर हम गौर करते हैं। उन्होनें संपूर्ण देश में लाक डाउन की बजाये केवल प्रभावित क्षेत्रे में लाक डाउन किया तथा ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच का माडल अपनाया,चाहेवह संदिग्ध थे या नहीं। चीन में बिमारी फैलने पर पहले तो उसे छुपाया व हल्के अंदाज में लिया, लेकिन एक बार सरकार के कमर कस लेने के साथ ही चीनी सरकार नें विषाणुओं की संरचनाओ को समझनें व इस विषाणु की पहचान हेतु वैज्ञानिकों को लगा दिया। इसके साथ ही दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों व बायोटेक कंपनियों को टेस्ट किट तैयार करने के आदेश दिये गये । कंपनियों ने इसे कर दिऽाया। इसी के साथ ही जनवरी बीतते-बीततेे साउथ कोरिया ने प्रतिदिन 20 हजार आबादी का कोरोना वायरस टेस्ट करने की क्षमता विकसित कर ली——
दक्षिण कोरिया सरकार ने 50 ड्राइव थ्रू टेस्ट स्टेशन कर मुफत जांच प्रारम्भ की। इसमें प्रति टेस्ट दस मिनट का समय लगा । चंद घंटो में रिजल्ट आने लगे । इन फोन बूथनुमा सेंटर मे नेगेटिव एयर प्रेशर रऽा गया ताकि कमरे से बाहर हवा का कोई भी पार्टिकल न जा सके- इससे संक्रमण फैलने का डर बहुत कम हो गया। इन जांचो से मिले रिजल्टो के डाटा को स्टडी कर तमाम पोजिटिव मरीजों के मोबाईल डाटा से उनके आने जाने के स्थलो, संपर्क में रहने वाले उनके परिजनों व अपरिचितो लोगो के सैंपल लिये गये। उन्हें आगाह कर आईसोलेट किया गया।
तुलना व परिणाम-अब इन दोनों देशों के माडलो की तुलना करते हैं। इटली के हालात बहुत भयावह है। वहीं सही योजना अपनाने से दक्षिण कोरिया ने अपनी जनता को बचा लिया है।
भारत-अब भारत की बात करें तो हम पायेंगे कि भारत में सर्वप्रथम लाक डाउन के दिन शाम को 5 बजे सभी के द्वारा इसे एक इवेंट की तरह से सेलीब्रेट कर इसे मिलान के लोगो के स्वभाव जैसा ही पायेंगें। मिलान के मेयर चीनी समाज के लोगो को गले मिल रहे थे, तो भारत के बड़े शहरों में जुलूस निकालने से लेकर सर्वाजनिक चर्चा हेतु हर गली मोहल्ले में लोग एकत्र हो गये थे। रही बात सैंपलो की, विगत 15 मार्च तक प्रतिदिन मात्र 100 सैंपलो के बाद अब हम 1000 सैंपल प्रतिदिन तक पहुंचे हैं। बुधवार रात तक केवल 24254 लोगो की जांच हुई है, जबकि हमारी कुल क्षमता (सरकारी व निजी मिलाकर) 20000 सैंपल प्रतिदिन की है। हमनें सैंपलो को फ्री में करने की बजाये निजी क्षेत्र से कराने पर 4500 रूप्ये का रेट रऽा है, जो आम भारतीय के हिसाब से बहुत ज्यादा है। होना तो यह चाहिये कि हमारी सरकार को निजी क्षेत्र को सब्सिडी देकर आम जनता को निःशुल्क देकर पूरी टैस्टिंग क्षमता का उपयोग कर मिले डाटा को संग्रहित करना चाहिये, उने मोबाईल ट्रैक कर संपर्क में आने वालो को चिन्हित करना चाहिये। इस अनुभव से हम यह कह सकते हैं कि हमें लाकडाउन के साथ-साथ आम जनता की टैस्टिंग, वैंटीलेटर्स की व्यवस्था व बड़े पैमाने पर आईसोलेशन वार्डाे व चिकित्सा की पूरी व्यवस्था करनी चाहिये इस ऽतरे को तभी टाला जा सकेगा। भारत में केवल मात्र लाकडाउन की व्यवस्था पर्याप्त नहीं है।
-सुशील गाबा
लेऽक एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर कार्यरत है। उनके द्वारा निजी तौर पर आंकड़ों के विष्लेशण से निकले यह विचार उनके निजी है।